युवाओं की बदहाली का जिम्मेवार कौन
पिछले दशक में सर्व शिक्षा अभियान के तहत नागरिकों को साक्षर बनाने की पहल से अवश्य ही विश्व पटल पर भारतीय साक्षरता दर उच्च हुई है, पर यह सोचने के लिए एक गंभीर विषय है कि क्या साक्षर होना ही किसी देश या राज्य के विकास का पैमाना है? यह एक विडंबना ही है कि […]
पिछले दशक में सर्व शिक्षा अभियान के तहत नागरिकों को साक्षर बनाने की पहल से अवश्य ही विश्व पटल पर भारतीय साक्षरता दर उच्च हुई है, पर यह सोचने के लिए एक गंभीर विषय है कि क्या साक्षर होना ही किसी देश या राज्य के विकास का पैमाना है?
यह एक विडंबना ही है कि एक तरफ सरकार साक्षरता की बढ़ती दर से अपने को विकसित होना समझती है, तो दूसरी ओर विश्व में सबसे अधिक शिक्षित बेरोजगार युवाओं को रोजगार देने की नाकामी पर मौन धारण कर लेती है. भारत में लगभग 65 प्रतिशत युवा हैं, पर अधिकांश बेरोजगारी की मार से बदहाल हैं.
बीए–एमए की डिग्री हासिल करने के बाद क्या ये युवा मनरेगा के तहत मिलनेवाले सौ दिन की रोजगार के लिए जद्दोजहद करें? जिसकी स्थिति भी सरकार की मेहरबानी से दयनीय है! लगातार खबरें प्रकाशित होती रहती हैं कि सरकारी विद्यालयों में शिक्षा का स्तर निरंतर निम्न होता जा रहा है, परंतु इस ओर कोई ध्यान न देते हुए सरकार शिक्षा पर कम और मिड–डे मील पर अधिक ध्यान देती है.
यह जानते हुए कि मिड डे मील से कहीं अधिक महत्वपूर्ण शिक्षा के स्तर को ऊंचा करना है. शिक्षा की बदहाल स्थिति से शिक्षित बेरोजगारों की एक बड़ी फौज जमा हो गयी है. क्या इसके लिए सरकारें जिम्मेदार नहीं हैं? सरकारें अपने स्वार्थ और वोट की गंदी राजनीति से युवाओं को बेबसी के दलदल में धकेल रही हैं. यदि गुणवत्तापूर्ण शिक्षा के साथ आठवीं से ही व्यावसायिक पाठ्यक्रम लागू किये जायें, तो अवश्य ही युवाओं की स्थिति बदहाल होने से बचायी जा सकती है.
यह झारखंड के युवाओं का दुर्भाग्य है कि खनिज संपदा से परिपूर्ण राज्य में भी उन्हें रोजगार के साधन मुहैया नहीं हो पाते. इस दिशा में युवा नेताओं से कुछ उम्मीद अब भी बची है.
मो शमीम अहमद, हजारीबाग