तेलंगाना का गठन और राजनीति

दूसरे राज्य पुनर्गठन आयोग के अध्यक्ष फजल अली ने तेलंगाना और शेष आंध्र के रिश्ते को ‘एक भोली–भाली लड़की और नटखट लड़के के बीच का गंठबंधन’ कहा था. उनकी चिंताओं को नजरअंदाज करते हुए तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू ने कहा था कि इस भोली लड़की (तेलंगाना) को इस विवाह को निभाने या इससे अलग होने […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | October 7, 2013 2:53 AM

दूसरे राज्य पुनर्गठन आयोग के अध्यक्ष फजल अली ने तेलंगाना और शेष आंध्र के रिश्ते को एक भोलीभाली लड़की और नटखट लड़के के बीच का गंठबंधन कहा था. उनकी चिंताओं को नजरअंदाज करते हुए तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू ने कहा था कि इस भोली लड़की (तेलंगाना) को इस विवाह को निभाने या इससे अलग होने का अधिकार होगा.

नेहरू ने ऐसा कहा भले था, लेकिन वे जानते थे कि भारत के संविधान के मुताबिक ऐसे रिश्ते पर फैसले का अधिकार साथियों को होकर, पंच यानी केंद्र के पास होता है. पृथक तेलंगाना राज्य की कम से कम पांच दशक पुरानी मांग को तार्किक परिणति के नजदीक ले जाते हुए केंद्रीय मंत्रिमंडल ने आखिरकार तेलंगाना के गठन पर मुहर लगा दी है.

इस फैसले के बाद तटीय आंध्र में हिंसक उबाल की स्थिति है. विजयनगरम में कफ्यरू लगा दिया गया है. बिजली कर्मचारियों की हड़ताल ने जनजीवन को अस्तव्यस्त कर दिया है. पूरे मसले पर राजनीति शुरू हो गयी है. आंध्र के छह केंद्रीय मंत्रियों ने फैसले के विरोध में इस्तीफा दे दिया है. इस बंटवारे को रोकने के लिए जगनमोहन रेड्डी अनशन पर बैठे हैं. तेलंगाना के मसले पर जारी राजनीति का दौर गंभीर चिंता का विषय है.

एक तरफ केंद्र की यूपीए सरकार पर यह आरोप लगाया जा रहा है कि उसने सभी पक्षों से व्यापक सलाहमशविरा किये बगैर 2014 के चुनाव को नजर में रखते हुए यह फैसला किया है. वहीं दूसरी तरफ, प्रादेशिक दल भी भावनाओं की लपट पर सियासी रोटियां सेंकने के लिए कटिबद्ध नजर रहे हैं. इस राजनीति के बीच जो चीज गायब है, वह है राज्य और राज्य के लोगों के भविष्य की चिंता.

होना यह चाहिए था कि सारे पक्ष मिल कर तेलंगाना और शेष आंध्र के पुनर्गठन और पुनर्रचना के लिए विकासमूलक नीतियों का खाका तैयार करें. हैदराबाद में काम कर रहे सीमांध्र और रायलसीमा के लोगों की आशंकाओं को दूर करें. एक ऐसे सौहाद्रपूर्ण माहौल का निर्माण करें, जिसमें तेलंगाना और शेष आंध्र के लोग बेहतर भविष्य की उम्मीद और भाईचारे के साथ रह पायें. तेलंगाना का गठन लगभग तय है. ऐसे में, अतीत की ओर देखने से अच्छा है, भविष्य की फिक्र करना. इसी में वहां की आम जनता की भलाई है.

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