किसिम-किसिम के हमारे ‘बो शिलाई’
।। जावेद इस्लाम ।। प्रभात खबर, रांची पिछले महीने की ही बात है. हमारे मीडिया में चीनी ‘बो शिलाई’ खूब चमका था. भाई, यह दीपावली के लिए चीन से आनेवाली रंगीन झालर का नाम नहीं है. बो शिलाई चीनी कम्युनिस्ट पार्टी के एक बड़े नेता हैं, जिन्हें वहां की अदालत ने भ्रष्टाचार के जुर्म में […]
।। जावेद इस्लाम ।।
प्रभात खबर, रांची
पिछले महीने की ही बात है. हमारे मीडिया में चीनी ‘बो शिलाई’ खूब चमका था. भाई, यह दीपावली के लिए चीन से आनेवाली रंगीन झालर का नाम नहीं है. बो शिलाई चीनी कम्युनिस्ट पार्टी के एक बड़े नेता हैं, जिन्हें वहां की अदालत ने भ्रष्टाचार के जुर्म में उम्रकैद की सजा दी है और चुनाव लड़ने सहित सारे राजनीतिक हकों से वंचित कर दिया है.
अब ये जनाब चीन की जेल में बैठ कर सोच रहे होंगे कि काश! उनका जन्म जंबूद्वीप के महान भारतवर्ष में हुआ होता, जहां ‘बो शिलाइयों’ को राजनीतिक अभयदान प्राप्त होने की महान संस्कृति फल–फूल रही है. हमारे ‘बो शिलाई’ छाती ठोंक कर चुनाव लड़ते ही हैं, बल्कि जीत गये तो मंत्री का पद और हार गये तो बोर्ड–निगमों–आयोगों की चेयरमैनी तक पाते हैं.
किसिम–किसिम के, छोटे–बड़े, कितने ही ‘बो शिलाई’ इस दल या उस दल में चार चांद लगा रहे हैं. हमारे खांटी लोकतंत्र की खांटी खासियत है यह. मगर अब लगता है कि इन पर आफत आने लगी है. बुरा हो भ्रष्टाचार विरोधी जनांदोलनों का, बुरा हो मीडिया का, बुरा हो उच्चतम न्यायालय की सक्रियता का कि ‘बो शिलाइयों’ के बुरे दिन आने शुरू हो गये हैं. बुरा हो युवराज का, तीसमार खां बनने के फेर में विधेयक और अध्यादेश की ऐसी की तैसी करा दी.
इसके बाद इन दलों के वक्ताओं–प्रवक्ताओं के बदले हुए सुर तो देखिए. मिले सुर मेरा तुम्हारा का अलाप तज कर केवल हम ही हैं तीसमार खां का राग छेड़ रहे हैं. और सरकारी पार्टी की एकता के क्या कहने, चित भी मेरी और पट भी मेरी को चरितार्थ करते पूरा रैंक एंड फाइल ‘ऑल आर प्राइम मिनिस्टर्स मेन’ से क्षण भर में ‘ऑल आर युवराज्स मेन’ हो गये.
ऐसा कि रंग बदलनेवाले गिरगिट को भी शर्म आ गयी. लालू जी–मिश्र जी की जोड़ी और रशीद मसूद तो अंदर हुए, पर अभी कितने ही ‘बो शिलाई’ बाहर मजे मार रहे हैं. बनते–बिगड़ते चुनावी समीकरणों में ‘बो शिलाइयों’ की अहमियत जो है! साथ ही ये चुनावी कोष प्रबंधन में योगदान भी करते हैं. इस मामले में सभी पार्टियों का दर्शन एक रहा है, और एक है.
तुम्हारे खेमे के ‘बो शिलाई’ दागी–भ्रष्टाचारी, हमारे खेमे के सदाचारी. पंडित सुखराम से लेकर बाबू सिंह कुशवाहा तक कितने ही नायाब नमूने रहे हैं. खूब बोलनेवाले प्राइम मिनिस्टर इन वेटिंग मोदी जी, येदियुरप्पा के विरुद्ध मुंह खोल रहे हैं क्या? रेड्डी बंधुओं के प्रति कांग्रेस की नरमदिली का राज क्या है? दो–चार के जेल चले जाने से इत्मीनान नहीं हुआ जा सकता.
‘बो शिलाई–वाद’ के विरुद्ध जन आंदोलन तेज करना होगा. बहस राहुल–मोदी पर नहीं, बल्कि देश की मौजूदा आर्थिक नीति पर होनी चाहिए, जो रोज नये ‘बो शिलाई’ पैदा कर रही है. भ्रष्टाचार की जननी आर्थिक नीतियों को अंगीकार करें और सदाचार–नैतिकता के लिए चीत्कार करें, इससे अच्छा राजनीतिक पाखंड और क्या हो सकता है?