रक्षक का इंतजार करना छोड़े नारी
जिस तरह एक सिक्के के दो पहलू होते हैं, ठीक उसी प्रकार नारी का जीवन भी है. एक तरफ ईश्वर ने नारी में एक असीम शक्ति दी है, जिससे वह पूरे समाज की कायापलट कर सकती है. वहीं, पुरुष और उनके बनाये इस समाज ने नारी को इतना मजबूर कर दिया है कि वे अपनी […]
जिस तरह एक सिक्के के दो पहलू होते हैं, ठीक उसी प्रकार नारी का जीवन भी है. एक तरफ ईश्वर ने नारी में एक असीम शक्ति दी है, जिससे वह पूरे समाज की कायापलट कर सकती है. वहीं, पुरुष और उनके बनाये इस समाज ने नारी को इतना मजबूर कर दिया है कि वे अपनी शक्ति ही भूल गयी है.
आज जब भी कोई महिला अपनी खुशियों के लिए अधिकारों की मांग करती है, तो उसे अपने रिश्तों को आहुति देनी पड़ती है. घर से बाहर निकलते ही महिलाओं पर सबसे पहले ईल टिप्पणी करनेवाला भी एक पुरुष ही होता है. घर वापस आने पर अंगुली उठानेवाला भी कोई पुरुष ही होता है.
मैं देश और समाज के उन तमाम महिलाओं से सवाल पूछना चाहती हूं कि आखिर वे कब तक अपनी नारी शक्ति को दबा कर रखेंगी. हम उस देश की नारियां हैं, जहां रानी लक्ष्मी बाई जैसी वीरांगनाएं पैदा हुई हैं. क्या आज की महिलाओं को देश की वीरांगनाओं से कुछ सीखने को नहीं मिला है? अब भी नारियों को जागने और अपनी ताकत के इस्तेमाल करने का वक्त है. मां दुर्गा को शक्ति का रूप कहा जाता है.
उन्होंने राक्षसों का विनाश करने के लिए देवताओं के आने का इंतजार कहां किया था? जिस प्रकार मां दुर्गा ने आगे बढ़ कर संसार के दुष्टों का संहार किया था, उसी प्रकार महिलाओं को भी आगे आकर समाज में व्याप्त असमाजिक तत्वों का विनाश करना होगा.
हम क्यों अनैतिकता के वशीभूत पुरुषों के आगे घुटने टेक कर बढ़ावा देते हैं. आज भी हमें अपनी ताकत का एहसास कराने के लिए किसी जामवंत का इंतजार क्यों हैं? यह बात सही है कि भारत की नारियों के कुछ कर गुजरने का माद्दा है, लेकिन हमेशा एक रक्षक का इंतजार रहता है. देश की नारियां करक्षक का इंतजार करना छोड़ें.
मनोरमा सिंह, जमशेदपुर