आर के सिन्हा
राज्यसभा सांसद, भाजपा
बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने बीते दिनों ऐलान किया कि अगली बार वह सत्ता में आएंगे तो बिहार में शराबबंदी लागू कर देंगे. यह बहुत अच्छी बात है. मदिरापान की लगातार बढ़ती लत से देश और समाज को हो रहे भारी नुकसान के मद्देनजर शराबबंदी के अभियान के लिए उन्हें तुरंत एक्टिव हो जाना चाहिए.
यहां गौरतलब है कि 1990 के दशक के शुरुआती सालों में हरियाणा में मुख्यमंत्री बंसीलाल ने भी शराबबंदी की पहल की थी, पर हरियाणा ने उनका साथ नहीं दिया था. हालांकि बंसीलाल सख्त मुख्यमंत्री थे. उन्हें आधुनिक हरियाणा का शिखर नेता माना जाता है. लेकिन, शराबबंदी के प्रयास में वे बुरी तरह फेल हुए थे. इसलिए शराबबंदी के अभियान की योजना बनाते वक्त उन कारणों पर भी गौर किया जाना चाहिए, जिसके चलते हरियाणा में शराबबंदी की योजना फेल हो गयी थी.
पटना में महिलाओं की एक कार्यशाला में नीतीश कुमार ने शराबबंदी की दिशा में काम करने की बात कही. इस मौके पर उन्होंने कहा कि महिलाओं के उत्थान के बिना समाज का उत्थान संभव नहीं है. उनकी ये सारी बातें बहुत अच्छी हैं. इसलिए इस दिशा में तुरंत ही काम शुरू करने की जरूरत है. साथ ही, बेहतर होगा कि आगामी बिहार विधानसभा चुनाव के दौरान सभी दल अपने-अपने घोषणापत्र में शराबबंदी को शामिल करते हुए इस पर प्राथमिकता के आधार पर अमल करें.
माना जा सकता है कि शराबबंदी कार्यक्रम अभी केवल गुजरात और केरल में लागू हो पाया है. इसे अखिल भारतीय स्तर पर लागू करने की सख्त जरूरत है. केरल में सरकार का उद्देश्य अगले दस सालों में शराब को पूरी तरह से प्रतिबंधित करना है. शुरुआत में सात सौ बार और शराब बेचनेवाली कुछ दुकानें बंद की जाएंगी और हर महीने शराब मुक्त दिनों की संख्या बढ़ायी जाएंगी. इस समय केरल में प्रति व्यक्ति शराब की खपत करीब आठ लीटर प्रति वर्ष है, जो भारत में सबसे ज्यादा है.
हमारे देश में शराब की खपत लगातार बढ़ रही है. आप किसी भी शहर की शराब की दुकान के पास से गुजर जाइये, आपको समझ आ जायेगा कि मदिरापान को लेकर समाज में क्रेज किस तरह से बढ़ रहा है. राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली के मिडिल क्लास आवासीय क्षेत्र मयूर विहार में शराब की 10 से ज्यादा दुकानें हैं, लेकिन सभी के आगे हमेशा भीड़ लगी रहती है. इन्हें देख कर डर लगता है. आखिर कैसे एक आवासीय इलाके में शराब की इतनी सारी दुकानें खुलने दी गयीं!
विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार, करीब तीस फीसदी भारतीय अल्कोहल का सेवन करते हैं. इनमें चार से 13 फीसदी लोग तो नियमित रूप से शराब का सेवन करते हैं. शराब का सेवन दिल, दिमाग, लीवर और किडनी की दो सौ से भी ज्यादा किस्म की बीमारियों को न्योता देता है.
मुंह, लीवर और स्तन समेत कैंसर की कई किस्मों का सीधा संबंध शराब के सेवन से है. आश्चर्य की बात है कि इन आंकड़ों के बावजूद सरकारें इस गंभीर स्थिति पर कोई ध्यान नहीं दे रही हैं. अफसोस की बात यह भी है कि टीवी चैनलों और अखबारों में कुछ दूसरे उत्पादों के बहाने शराब की विभिन्न किस्मों के लुभावने विज्ञापन भी दिखाये और छापे जा रहे हैं.
इन लुभावने विज्ञापनों से आकर्षित होकर अब कम उम्र के किशोर भी शराब की बोतल को मुंह लगा रहे हैं. कम उम्र के किशोरों में शराब पीने की बढ़ती प्रवृत्ति का उनके भविष्य और रोजगार पर सीधा असर पड़ता है. शराब का लगातार बढ़ता सेवन समाज के हर तबके के लोगों को समान रूप से प्रभावित करता है. शराब पीकर काम पर आनेवाले कर्मचारियों की वजह से देश की उत्पादकता प्रभावित होती है.
हालांकि शराब की बिक्री से मिलनेवाले भारी राजस्व ने सरकारों के कदमों में बेड़ियां डाल रखी हैं. राजस्व को ध्यान में रख कर ही पूर्वोत्तर राज्य मिजोरम ने 18 वर्षो से जारी शराबबंदी खत्म कर दी है. लेकिन, राजस्व के नाम पर देश के भविष्य से खिलवाड़ नहीं किया जा सकता. शराब और सिगरेट की बिक्री से होनेवाली आमदनी को उसकी वजह से होनेवाले स्वास्थ्य खर्च के साथ जोड़ कर देखा जाना चाहिए और इस संबंध में नीति बनाने से पहले नफा-नुकसान का पूरा हिसाब होना चाहिए.
बिहार ही नहीं, बल्कि पूरे देश में शराबबंदी की दिशा में तत्काल कदम उठाये जाने की जरूरत है. शराब की बढ़ती खपत पर अंकुश लगाने के लिए केंद्र सरकार को भी एक राष्ट्रीय नीति बनानी चाहिए. सरकार एक निश्चित उम्र से पहले किसी के शराब पीने को कानूनी जुर्म बना कर इस समस्या पर काफी हद तक अंकुश लगा सकती है.
इसके साथ ही किशोरों को शराब बेचने की स्थिति में विक्रेता के खिलाफ कार्रवाई का प्रावधान भी रखा जाना चाहिए. देश में जहरीली शराब पीने से हर साल सैकड़ों लोग बेमौत मारे जा रहे हैं. इसलिए जहरीली शराब के सौदागरों के खिलाफ कड़ी-से-कड़ी कार्रवाई करने की जरूरत है.