यह समाज और देश की विडंबना है कि कोई भी नेता घोटाला और स्कैम में सजा पाता है तो यहां की जनता पागलों की तरह मातम मनाती है और यश गान करती है. ऐसी मानसिकता और नैतिकता से देश का भला सोचना बेवकूफी है.
इन नेताओं पर राष्ट्रद्रोह का मुकदमा चलना चाहिए और देश और समाज से गद्दारी करने के लिए फांसी की सजा भी कम है. बहुत दु:ख की बात है कि मीडिया भी भी इसी राह पर है. जब तक व्यक्ति अपने निजी स्वार्थ, जात–पात, धर्म से ऊपर नहीं उठेगा, तब तक इस देश पर माफिया, दलालों, भ्रष्ट और देश द्रोही शासन करते रहेंगे. जिस देश की जनता की सोच और व्यवहार इतना घटिया, संकीर्ण और स्वार्थी हो, वह समाज एक दिन रसातल में निश्चित जायेगा. यहां आत्म–निरीक्षण की जरूरत है. जरूरत है पहले खुद को सुधारने की, तब देश सुधरेगा.
सतीश कुमार सिंह, ई–मेल से