चिंता की कोई बात क्यों नहीं है?
जागो मोहन प्यारे! वर्षो की घोर निद्रा में सोये हुए इस देश के प्रधानमंत्री और उनके अनुयायी रक्षा मंत्री नींद की आगोश में सोये देश के प्रति अपने कर्तव्यों को तिलांजलि दे चुके हैं. अगर जनता त्रसदी से उबर कर इनकी निद्रा तोड़ने की कोशिश भी करती है तो क्षणिक मौन व्रत भंग कर मात्र […]
जागो मोहन प्यारे! वर्षो की घोर निद्रा में सोये हुए इस देश के प्रधानमंत्री और उनके अनुयायी रक्षा मंत्री नींद की आगोश में सोये देश के प्रति अपने कर्तव्यों को तिलांजलि दे चुके हैं.
अगर जनता त्रसदी से उबर कर इनकी निद्रा तोड़ने की कोशिश भी करती है तो क्षणिक मौन व्रत भंग कर मात्र यही बोल पाते हैं कि ‘चिंता की कोई बात नहीं’. रक्षा मंत्री अपनी सहनशीलता की मिसाल देने में इस कदर अडिग खड़े हैं कि उन्हें देश के जवानों का खून पानी प्रतीत हो रहा है. आये दिन पड़ोसी देशों से खूनी वारदातों की सूचना सिलसिलेवार देखने–सुनने को मिल रही है.
चाहे वह पाकिस्तान के घुसपैठिये हों या फिर चीन के दबंग सैनिक, भारत माता का चीर हरण दुनिया की भरी सभा में डंके की चोट पर कर रहे हैं, लेकिन इस देश के प्रधानमंत्री या रक्षा मंत्री में श्रीकृष्ण जैसी करुणा कहां? बातचीत से विषम परिस्थितियों का हल निकालने का हवाला देते हमारे नायक यह भूल जाते हैं कि सीमाओं पर तैनात सैनिक भी उन्हीं की तरह इनसान हैं.
उचित सुविधाओं का अभाव, सटीक निर्णय लेने की अक्षमता, कुटिल राजनीति, सनिकों के प्रति नजर अंदाजगी न सिर्फ हमारे सैनिकों के मनोबल के लिए घातक है, बल्कि इस देश को भी पुन: अधीनता की ओर अग्रसर कर रही है.
कागजों पर बड़ी–बड़ी उपलब्धियां गिनाने से, जनता से लुभावने वादे करने से, लंबी–लंबी डींगें हाकने से इस देश की सूरत नहीं निखरेगी. हमें अपनी आजादी की कीमत पहचानते हुए इसकी आबरू की रक्षा के लिए स्वयं भी तत्पर होना होगा. आखिर कब तक हम अपने भाई–बंधुओं के खून से होली खेलने की छूट पड़ोसी देशों को देते रहेंगे? क्या हमारी राजनीति इतनी अपंग है कि सबकुछ लुट जाये फिर भी हम यह दिलासा दें कि ‘चिंता की कोई बात नहीं’!
लक्ष्मी रंजना, हिनू, रांची