वो शक्ति या उम्मीद को तलाशती आंखें
।। प्रदीप चंद्र केशव ।। (प्रभात खबर, जमशेदपुर) देश भर में दुर्गा पूजा की धूम है. महाशक्ति पर अपार विश्वास ही है कि पूरा हिंदुस्तान मां के दरबार में नतमस्तक है. किसी ने जीवन में कुछ पाया, तो उस सब का श्रेय माता रानी को देने में कोई हिचक नहीं. ऐसे में हम क्यों पीछे […]
।। प्रदीप चंद्र केशव ।।
(प्रभात खबर, जमशेदपुर)
देश भर में दुर्गा पूजा की धूम है. महाशक्ति पर अपार विश्वास ही है कि पूरा हिंदुस्तान मां के दरबार में नतमस्तक है. किसी ने जीवन में कुछ पाया, तो उस सब का श्रेय माता रानी को देने में कोई हिचक नहीं. ऐसे में हम क्यों पीछे रहें. यहां हम चर्चा कर रहे हैं देवों के देव महादेव की. घटना पुरानी जरूर है.
तब मैं स्कूली शिक्षा प्राप्त कर रहा था. उम्र वही होगी 13-14 की. किशोरावस्था में ही छोटा सा कांवर लेकर मां और पिताजी के साथ तीन बार सुलतानगंज से देवघर की पैदल यात्र कर चुका था. इसी दौरान गांव में एक साथी को देवघर जा कर पूजा करने की इच्छा हुई. मैं घर में बोल कर कुछ रुपयों के साथ देवघर चला आया. साथी के साथ मैंने भी बाबा भोले को जल अर्पित किया.
इसके बाद हम दोनों यहां के एक छविगृह में रात्रि शो में चल रहे ‘साजन’ फिल्म देखने लग़े. फिल्म शुरू होते ही मेरी तबीयत खराब होने लगी थी. पूजा के दौरान भींग जाने व उन्हीं कपड़े में घंटों रहने के कारण संभवत: यह हालत हुई थी. मेरी ही तरह मेरे साथी के पास भी नाम मात्र के पैसे थे, इस कारण कोई होटल ले कर रहने की स्थिति में नहीं थे. यहां हमारा कोई नहीं था. देवघर से 90 किलोमीटर दूर घर जाने के लिए रात में कोई बस या ट्रेन भी नहीं थी.
धर्मशाला में रह कर रात गुजारनी थी. मैं काफी डर गया, तरह–तरह के विचार मन में आने लगे. शरीर कांप रहा था. मुझे तब कंबल या गर्म कपड़े की आवश्यकता थी. साथी फिल्म देखने में व्यस्त था. मैने छविगृह से बाहर निकल कर कई बार चाय पी और शरीर को गर्म रखने की कोशिश करने लगा. लेकिन शरीर अब भी कांप रहा था. ईश्वर से बस यही प्रार्थना करता रहा कि कोई जान–पहचान का मिल जाये और हमें रात भर का सहारा दे दे.
कई बार बाबा भोले को याद किया. एक ही शब्द निकल रहा था, आप ही हमारे सहारे हैं, हमें शक्ति दें, कुछ भी करें, ताकि हम बच सकें. मैं छविगृह के दरवाजे के बाहर बैठा रहा. जो कोई भी अंदर से निकल रहा था, उसे टकटकी लगाये देखे जा रहा था. शायद कोई जान पहचान का निकल आये.
फिर सोचता घर से इतनी दूर कौन यहां होगा. अगर कोई होगा भी शहर में, तो यह जरूरी नहीं वह रात वाली शो देखने यहां आया ही हो. तभी फिल्म का मध्यांतर हुआ. इस दौरान जो भी चेहरे सामने आते, उसे मैं उम्मीद भरे निगाहों से देखता. इसी दौरान वह हुआ, जो हम चाह रहे थे. हमारे गांव का ही एक युवक अंदर से निकल रहा था, जो देवघर में एक साल से पढ़ाई कर रहा था.
उसने आश्चर्य से मुझे देखा. मेरी स्थिति को देख वह मुझे अपने साथ ले गया. पूरी रात उसके कमरे में कटी. इस घटना से मुझे ईश्वरीय शक्ति का अहसास हुआ. वहीं कई ने इस घटना को मात्र संयोग करार दिया. पता नहीं आप क्या सोचते हों..