कश्मीर में घुसपैठ और जनरल कियानी
।। पुष्परंजन ।। (ईयू–एशिया न्यूज के नयी दिल्ली संपादक) जनरल कियानी का आगे अमेरिका किस रूप में इस्तेमाल करेगा, इसका हमें इंतजार करना चाहिए, लेकिन अमेरिका के ‘माइ डियर’ जनरल कियानी जो कुछ फैसले कश्मीर पर लेते रहे हैं, उससे क्या व्हाइट हाउस या सीआइए वाकिफ था? पाकिस्तान ने एक साथ तीन फ्रंट खोल रखे […]
।। पुष्परंजन ।।
(ईयू–एशिया न्यूज के नयी दिल्ली संपादक)
जनरल कियानी का आगे अमेरिका किस रूप में इस्तेमाल करेगा, इसका हमें इंतजार करना चाहिए, लेकिन अमेरिका के ‘माइ डियर’ जनरल कियानी जो कुछ फैसले कश्मीर पर लेते रहे हैं, उससे क्या व्हाइट हाउस या सीआइए वाकिफ था?
पाकिस्तान ने एक साथ तीन फ्रंट खोल रखे हैं. पहला कश्मीर, दूसरा, अफगानिस्तान से लगा कबीलाई इलाका और तीसरा, पाकिस्तान के अंदरूनी हिस्से में जारी आतंकी घटनाएं. इन तीनों में से कश्मीर एक ऐसा मोरचा है, जिस पर पाकिस्तान की सेना, सत्ता, विपक्ष के नेता और वहां के आतंकवादी एक–दूसरे की राय का समर्थन करते हैं.
कश्मीर के केरन सेक्टर में घुसपैठ को लेकर पाकिस्तान का मीडिया जिस तरह से चुप है, उससे यह बात तो स्पष्ट है कि एक सोची–समझी योजना के तहत सारा कुछ हो रहा है. घुसपैठियों के कब्जे से बरामद अत्याधुनिक हथियारों का जखीरा, इलेक्ट्रॉनिक उपकरण इसका सुबूत पेश करते हैं कि वे पूरी तैयारी के साथ आये हैं और उन्हें ट्रेनिंग व असलहे उपलब्ध कराने में पाक सेना का हाथ है.
कश्मीर में घुसपैठ की यह पहली या आखिरी कहानी नहीं है. यह बात भी नहीं है कि यह अचानक हुआ, या सरकार को इससे आगाह नहीं किया गया था. इस साल जनवरी के पहले हफ्ते में मिलिट्री इंटेलिजेंस ने केंद्र सरकार को सूचना भेजी थी कि नियंत्रण रेखा के उस पार कोई दस हजार मुजाहिदीन कश्मीर में घुसपैठ के लिए तैयार हैं.
भारतीय सेना के प्रवक्ता राजेश कालिया ने कई महीने पहले ही उन चार सौ मीटर वाली कई सुरंगों के बारे में बताया था, जिसमें ऑक्सीजन की सुविधाएं पाक सेना ने दे रखी थीं, ताकि घुसपैठिये रेंग कर आसानी से कश्मीर की ओर निकल सकें. सवाल यह है कि इन सूचनाओं के आधार पर हमारे रणनीतिकार घुसपैठ रोकने की मुकम्मल तैयारी क्यों नहीं करते?
केरन सेक्टर में घुसपैठ के खिलाफ ऑपरेशन जितना लंबा खींचेगा, हमारी सुरक्षा व्यवस्था की खिल्ली उतनी ही उड़ेगी. हर रोज हम गिनती कर रहे हैं कि केरन सेक्टर में घुसपैठ का आज 14वां दिन है, आज 15वां दिन है. नयी दिल्ली में चुप्पी सरकार और सुरक्षा तंत्र की कमजोरी की मिसाल बनती जा रही है.
जब तक टीवी चैनलवाले ‘ग्राउंड जीरो’ तक नहीं जाते, स्टूडियो में ‘एक्सपर्ट’ ब्लडप्रेशर बढ़ानेवाली बहस नहीं करते, सरकार सोती रहती है. ‘ग्राउंड जीरो’ तक जाने और उसकी तसवीरें दिखाने की होड़ में टीवी के कुछ रिपोर्टर भूल जाते हैं कि हम दुश्मन को पूरे इलाके की स्थिति से रू–ब–रू करा रहे हैं. करगिल में ऐसा ही हुआ था.
कम–से–कम इतनी छूट पाकिस्तान, श्रीलंका या चीन की सरकारें अपने मीडिया को नहीं देतीं. ‘ग्राउंड जीरो’ से रिपोर्टिग के नाम पर क्या यह मीडिया की आजादी का दुरुपयोग नहीं है? क्या यह देश की सुरक्षा से खिलवाड़ नहीं है? इन सवालों पर बहस होनी चाहिए. इंडियन टेलीविजन के वे वही चेहरे हैं, जो लगातार सीमा पार पाकिस्तान जाते हैं, दोस्त–दुश्मन के साथ शॉपिंग करते हैं और बिरयानी खाते हैं.
सुरंग के जरिये घुसपैठ और कवर फायरिंग के दरम्यान सीमा पार करनेवाली घटनाओं को रोकने में इजराइल एक्सपर्ट माना गया है. हम इजराइल से क्यों नहीं सूचनाएं साझा कर सकते? अमेरिका ने बहुत पहले सोमालिया, यमन, इराक, अफगानिस्तान जैसे देशों में इजराइल की ‘घुसपैठियों को मॉनीटर करने और मिसाइलों द्वारा मार गिरानेवाली’ तकनीक को अपना लिया था.
दूसरी ओर, घुसपैठ रोकने की भारतीय तकनीक अब भी दूसरे विकसित देशों से दसियों साल पीछे है. ऐसा लगता है कि नयी दिल्ली में बैठी सुरक्षा रणनीतिकारों की एक लॉबी बाबा आदम जमाने में बने रहना चाहती है.
पाकिस्तान की तरफ गौर से देखिए, तो यह बात साफ हो जाती है कि 2007 के बाद जो कुछ कश्मीर में हो रहा है, उसमें दो टर्म से सेनाध्यक्ष रहे जनरल आशफाक परवेज कियानी की अहम भूमिका रही है. पाकिस्तान में आम चुनाव से पहले जनरल कियानी ने आह्वान किया था कि लोग उसी पार्टी को वोट दें, जो कश्मीर को मुख्य एजेंडा मानती हो. क्या एक सेना प्रमुख को अपनी हदों में नहीं रहना चाहिए? हम खुशनसीब हैं कि भारत में ऐसे हालात नहीं हैं.
पाकिस्तान के ‘लोकतंत्र’ को लेकर जो लोग वाह–वाह करते हैं, वे क्यों भूल जाते हैं कि इस देश को अब भी सेना के जनरल, आइएसआइ के एजेंट और आतंकवादी संगठन अपने–अपने तरीके से चला रहे हैं.
पाकिस्तानी सेना की सूचना शाखा ‘इंटर सर्विस पब्लिक रिलेशंस’ ने सोमवार को जनरल कियानी का बयान जारी किया, जिसमें उन्होंने कहा कि ‘रिटायरमेंट के बाद मेरी नयी जिम्मेवारी को लेकर मीडिया में कुछ समय से बहस चलती रही है. 29 नवंबर, 2013 को सेनाध्यक्ष के ओहदे का मेरा अंतिम दिन है और मैं इस दिन अवकाश ग्रहण कर रहा हूं.’
इस स्पष्टीकरण से पहले हर रोज खबरों में तीतर–बटेर मारे जाते थे कि जनरल कियानी सेना के तीनों कमान को मिला कर बननेवाली ‘ज्वाइंट चीफ ऑफ स्टाफ कमेटी’ के प्रमुख बनाये जायेंगे, जो सेना और सरकार को दिशा देती रहेगी. यह भी कयास लगते रहे कि जनरल कियानी सरकार के सुरक्षा सलाहकार बनेंगे, या फिर अमेरिका में राजदूत. पर ऐसा क्या हुआ कि पासा ही पलट गया?
यह स्पष्टीकरण सरकार के बदले पाक सेना की सूचना शाखा, ‘इंटर सर्विस पब्लिक रिलेशंस’ की ओर से आना कई ऐसे सवाल खड़े करता है. सबसे पहला सवाल तो यह है कि क्या प्रधानमंत्री नवाज शरीफ कश्मीर पर बनायी गयी जनरल कियानी की रणनीति में कोई बदलाव चाहते थे? या अमेरिका जनरल कियानी को इस तरह की जिम्मेवारी दिये जाने के पक्ष में अब नहीं है?
पिछले दिनों ‘वॉल स्ट्रीट जनरल’ में एक खबर छपी थी कि जनरल कियानी सेना में अपने अहम रोल वाले पद के लिए लॉबिंग कर रहे हैं. कियानी ने एक जगह कहा था कि पाकिस्तान में ‘लीडरशिप’ बदलने का सही समय नहीं है. हमें साल–दो साल इंतजार करना चाहिए. इसका अर्थ यह भी निकलता है कि कियानी राजनीति का रिमोट कंट्रोल अपने हाथ में लेना चाहते हैं.
कियानी सेना के ऐसे जनरल रहे हैं, जिन्हें अमेरिका ने अफगान सीमा से लगे उत्तरी वजीरिस्तान को कंट्रोल करने के वास्ते लगाया था. उन्हें 2010 में तीन साल का ‘एक्सटेंशन’ भी इसी आधार पर अमेरिका के कहने पर दिया गया था. अब अमेरिका 2014 में जिस तरह से अपनी अफगान रणनीति को बदल रहा है, उसमें जनरल कियानी की कोई भूमिका नहीं रह जाती है.
जनरल कियानी का आगे अमेरिका किस रूप में इस्तेमाल करेगा, इसका हमें इंतजार करना चाहिए, लेकिन एक सवाल का उत्तर हर भारतवासी चाहेगा कि अमेरिका के ‘माइ डियर’ जनरल कियानी जो कुछ फैसले कश्मीर पर लेते रहे हैं, उससे क्या व्हाइट हाउस या सीआइए वाकिफ था?