सीमा पर शांति जरूरी

भारत और पाकिस्तान के प्रधानमंत्रियों की रूस में मुलाकात से उपजी अमन की उम्मीदें कुछ ही दिनों में धूमिल दिखने लगी हैं. उफा वार्ता के दौरान भी पाक सेना की गोलाबारी में दो भारतीय जवान शहीद हो गये थे. अब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की कश्मीर यात्र से पहले भी बीते कुछ दिनों में पाक की […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | July 18, 2015 1:59 AM
भारत और पाकिस्तान के प्रधानमंत्रियों की रूस में मुलाकात से उपजी अमन की उम्मीदें कुछ ही दिनों में धूमिल दिखने लगी हैं. उफा वार्ता के दौरान भी पाक सेना की गोलाबारी में दो भारतीय जवान शहीद हो गये थे. अब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की कश्मीर यात्र से पहले भी बीते कुछ दिनों में पाक की ओर से गोलाबारी हो चुकी हैं. अपनी नापाक हरकतों के बीच पाकिस्तान ने आरोप मढ़ा है कि नियंत्रण रेखा पर भारतीय सेना के हमले में चार नागरिक मारे गये हैं और उसके क्षेत्र में मार गिराया गया ड्रोन भारत ने भेजा था, जबकि खबरों के मुताबिक ऐसे ड्रोन पाकिस्तान में ही उपलब्ध हैं.

भारत-पाक सीमा और नियंत्रण रेखा पर ऐसी दुर्भाग्यपूर्ण घटनाएं व आरोप-प्रत्यारोप दोनों देशों के राजनयिक और सैन्य संबंधों के चिरस्थायी तत्व बन गये हैं. इनसे शांति बहाली की कोशिशें बार-बार विफल हो रही हैं. भारत-पाकिस्तान के बीच करीब 1,800 मील लंबी सीमा दुनिया की सबसे विवादास्पद सीमाओं में से है, जहां तीन युद्ध लड़े जा चुके हैं और बड़ी संख्या में जानें जा चुकी हैं. इन दोनों परमाणु हथियार संपन्न देशों के पास विशालकाय सेनाएं हैं. दुनिया की तीसरी बड़ी सैन्यशक्ति वाले देश भारत की भौगोलिक और सुरक्षा जरूरतों के कारण इसका औचित्य है. भारत अपने सकल घरेलू उत्पादन का 1.75 फीसदी ही रक्षा पर खर्च करता है, जबकि पाकिस्तान का मौजूदा खर्च उसकी जीडीपी का 2.54 फीसदी है. पाक के पास विश्व की सातवीं सबसे बड़ी सेना है. भारत सरकार ने अपनी सेना को अत्याधुनिक बनाने के लिए पिछले दिनों कई लंबित योजनाओं और खरीद को मंजूरी दी है.

लेकिन, साथ में सरकार ने पाकिस्तान और चीन के साथ तनाव में कमी लाने की कोशिशें भी की हैं. दक्षिण एशिया में दुनिया के सर्वाधिक गरीब लोग रहते हैं, जिनकी परेशानियों के समाधान की जिम्मेवारी दोनों देशों के नेतृत्व की ही है. भारत और पाक के करोड़ों युवा हिंसा, अविश्वास और कटुता के अभिशप्त इतिहास से परे, शांति और समृद्धि से युक्त भविष्य के आकांक्षी हैं.

अब तक का अनुभव बताता है कि युद्धों, झड़पों, तनावों और विषाक्त बयानों ने अमन-चैन की दिशा में आगे बढ़ने में कोई मदद नहीं की है. जवाबी हमले और चेतावनियों की कूटनीतिक कोशिशें भी अपर्याप्त सिद्ध हुई हैं. ऐसे में कुछ पल ठहर कर सोचने की जरूरत है कि क्या हम गांधी के बताये रास्ते पर चल कर शांति और सहयोग की कोई नयी इबारत नहीं लिख सकते? परस्पर विश्वास पर आधारित साझा विकास में ही दोनों पड़ोसी देशों का हित निहित है.

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