व्यापमं की व्यापकता व एमपी सरकार

एक कहावत है कि हमाम में सभी नंगे हैं. मध्य प्रदेश सरकार के विषय में यह बिलकुल सटीक बैठता है. लोकसभा में जब नोटों के बंडल लहराये जा रहे थे, तो कई लोगों ने इसी मुहावरे का इस्तेमाल किया था, जो शत-प्रतिशत सही नहीं था. अब भी चरित्रवान लोग हैं और लोकसभा में भी होंगे. […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | July 18, 2015 2:00 AM

एक कहावत है कि हमाम में सभी नंगे हैं. मध्य प्रदेश सरकार के विषय में यह बिलकुल सटीक बैठता है. लोकसभा में जब नोटों के बंडल लहराये जा रहे थे, तो कई लोगों ने इसी मुहावरे का इस्तेमाल किया था, जो शत-प्रतिशत सही नहीं था.

अब भी चरित्रवान लोग हैं और लोकसभा में भी होंगे. उन्हें इस प्रकार की टिप्पणियों से चोट अवश्य पहुंचती होगी. ऐसा नहीं है, तो फिर सत्येंद्र दुबे, एस मंजूनाथ, यशवंत सोनावणो, रेल सफर में बदमाशों से टकराने वाले सेना के जांबाज पुलिस के अधिकारी आखिर मारे ही क्यों जाते? किसी प्रदेश का मुख्य सचिव मुख्यमंत्री का विश्वस्त और प्रतिरूप माना जाता है. अगर वे ही संदेह के घेरे में हो, तो मुख्यमंत्री का पाक-साफ बताने में मुश्किल हो जाता है. ऐसे में राज्य सरकार द्वारा करायी जानेवाली जांच निष्पक्ष कैसे हो सकती है? मुख्यमंत्री को अपना सम्मान सुरक्षित रखने के लिए राष्ट्रपति शासन की सिफारिश कर देनी चाहिए. अब वे चाहें भी तो मंत्रिमंडल से मंजूरी मिलना आसान नहीं है.

व्यापमं घोटाले के संदर्भ में हाल ही में मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह और केंद्रीय गृह मंत्री राजनाथ सिंह के बयान लोगों के गले से नीचे नहीं उतर रहे हैं. थोक भाव में पुलिस, पत्रकार और नागरिकों की हत्या हो रही है. ऊपर से बाबूलाल गौड़ और विजयवर्गीय के बयान घाव पर नमक छिड़कने का काम कर रहे हैं. यह भी संभव है कि आत्महत्या करनेवालों में अच्छे छात्र और सक्षम अधिकारी भी शामिल हों. दुर्भाग्य से लोगों की मृत्यु के कारणों की जांच नहीं हो रही है. इस व्यापमं मामले में प्रधानमंत्री को हस्तक्षेप कर मध्य प्रदेश की सरकार और नागरिकों के भविष्य को सुरक्षित करने का काम करना चाहिए.

विश्वनाथ झा, देवघर

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