ठोस प्रयत्न जरूरी

ग्रामीण विकास मंत्रालय सामाजिक, आर्थिक एवं जातिगत जनगणना के आधार पर विभिन्न कल्याण योजनाओं को समेकित रूप देने पर विचार कर रही है. इस प्रक्रिया में स्वास्थ्य, शिक्षा, रोजगार और सामाजिक सुरक्षा मंत्रालय ों के अंतर्गत चलनेवाली योजनाओं के बीच इंफ्रास्ट्रक्चर तथा संसाधनों की साङोदारी के जरिये वंचित परिवारों को लाभान्वित करने के लिए बहुआयामीय […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | July 21, 2015 1:25 AM
ग्रामीण विकास मंत्रालय सामाजिक, आर्थिक एवं जातिगत जनगणना के आधार पर विभिन्न कल्याण योजनाओं को समेकित रूप देने पर विचार कर रही है. इस प्रक्रिया में स्वास्थ्य, शिक्षा, रोजगार और सामाजिक सुरक्षा मंत्रालय ों के अंतर्गत चलनेवाली योजनाओं के बीच इंफ्रास्ट्रक्चर तथा संसाधनों की साङोदारी के जरिये वंचित परिवारों को लाभान्वित करने के लिए बहुआयामीय रणनीति बनायी जा रही है.
हाल में प्रकाशित जनगणना की सूचनाओं के अनुसार, 56 फीसदी ग्रामीण परिवारों के पास जमीन नहीं है और 74.49 फीसदी परिवारों की मासिक आय पांच हजार रुपये से कम है. मंत्रालय महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी योजना (मनरेगा) की खामियों को दूर करने की दिशा में भी काम कर रहा है.
अभी 51.4 फीसदी परिवारों की आमदनी का स्नेत मजदूरी है. देश की 15 फीसदी आबादी को लक्षित इस योजना से ग्रामीण भारत में लाभ तो पहुंचा है, पर विश्व बैंक की एक रिपोर्ट में बताया गया है कि इससे गरीबी कम करने में अपेक्षित सफलता नहीं मिल सकी है.
वित्त वर्ष 2014-15 में मनरेगा के तहत हर परिवार को औसतन 39 दिनों का ही रोजगार मिल सका था, जबकि इसमें 100 दिनों के रोजगार का लक्ष्य है. साथ ही, मजदूरी का भुगतान करने में देरी का आंकड़ा 70 फीसदी से भी अधिक रहा था. यह पिछले आठ वर्षो का सबसे खराब आंकड़ा है. जनगणना में रेखांकित 5.37 करोड़ भूमिहीन परिवारों तक मनरेगा को सफलतापूर्वक ले जाना एक बड़ी चुनौती है. सरकार को यह भी सुनिश्चित करना चाहिए कि इस योजना के तहत प्रभावी इंफ्रास्ट्रक्चर तैयार हों, जो गांवों और गरीबों के विकास के ठोस आधार बन सकें.
परियोजनाओं का निर्धारण करते समय इस बात को ध्यान में रखना जरूरी है. मनरेगा का बेहतर कार्यान्वयन विकसित राज्यों में हुआ है, जबकि पिछड़े राज्यों का प्रदर्शन बेहद निराशाजनक रहा है. इस कमी को दूर करने के साथ योजना लागू करते समय पिछड़े राज्यों के विभिन्न क्षेत्रों की जरूरत का पूरा ध्यान रखा जाये.
इस संदर्भ में यह स्वागतयोग्य है कि केंद्र सरकार राज्यों के श्रम बजट को जनगणना से मिली सूचनाओं पर आधारित करने की दिशा में सक्रिय है और इसके लिए एक बजटीय रूप-रेखा भी बनायी गयी है.
ग्रामीण समृद्धि के बिना देश के विकास की कल्पना भी संभव नहीं है. जनगणना की सूचनाएं बहुत चिंताजनक हैं. उम्मीद है कि केंद्र और राज्य सरकारें सहभागिता के साथ गांवों और वंचित परिवारों की बेहतरी के लिए ठोस उपाय और प्रयत्न करेंगी.

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