कानून के इकबाल के लिए कैसी उत्सुकता!

आकार पटेल,वरिष्ठ पत्रकार इब्राहिम ‘टाइगर’ मेमन के भाई याकूब मेमन को इस महीने के अंत में फांसी पर लटकाया जाना है. उसे जिस जज पीके कोडे ने सजा सुनायी थी, उन्हें मैं पिछले दो दशकों से जानता हूं. आतंकवाद के मामलों के लिए बनी उनकी अदालत का मैं रिपोर्टर हुआ करता था. कोडे ने जब […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | July 21, 2015 1:30 AM
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आकार पटेल,वरिष्ठ पत्रकार
इब्राहिम ‘टाइगर’ मेमन के भाई याकूब मेमन को इस महीने के अंत में फांसी पर लटकाया जाना है. उसे जिस जज पीके कोडे ने सजा सुनायी थी, उन्हें मैं पिछले दो दशकों से जानता हूं. आतंकवाद के मामलों के लिए बनी उनकी अदालत का मैं रिपोर्टर हुआ करता था.
कोडे ने जब याकूब मेमन को साजिश रचने के लिए मौत की सजा दी थी, तो उनके फैसले ने कुछ लोगों को हैरान कर दिया था, जिसमें याकूब के वकील सतीश कनसे भी शामिल थे.
कुछ साल पहले कनसे ने ‘रेडिफ डॉट कॉम’ की शीला भट्ट को बताया था, ‘याकूब ने कभी पाकिस्तान में सैन्य प्रशिक्षण नहीं लिया. उसने बम या आरडीएक्स नहीं लगाये थे, ना ही बाहर से हथियार लाने में उसकी कोई भूमिका थी. जिन लोगों को सजा-ए-मौत सुनायी गयी थी, वे इन प्राणघातक गतिविधियों में से किसी न किसी एक में शामिल थे. याकूब के खिलाफ इनमें से किसी भी अपराध के आरोप नहीं थे.’
लेकिन जो भी हो, अब उसे लटका दिया जायेगा और इस मामले में ऐसा पहली बार होगा.याकूब पर मुकदमा चलानेवाले उज्वल निकम (जिन्होंने अजमल कसाब के बिरयानी मांगने के बारे में चर्चित झूठ बोला था) ने याकूब मेमन के बारे में यह राय जाहिर की थी : ‘जब उसे पहली बार अदालत में लाया गया था, मुङो याद पड़ता है कि वह एक शांत और कम बोलनेवाला व्यक्ति मुङो लगा था.
वह एक चार्टर्ड एकाउंटेंट है, इसलिए सबूतों के बारे में उसने विस्तार से नोट लिये. वह शांत और अलग-थलग रहनेवाला था, कभी दूसरों से नहीं घुलता-मिलता था और केवल अपने वकील से ही बात करता था. वह समझदार आदमी था और उसने अपनी पूरी सुनवाई पर बारीकी से नजर रखी.’
अदालत में अपनी मौजूदगी के दौरान मैंने भी यही बात नोटिस की थी. मेमन चुप था और सब कुछ बारीकी से देख रहा था. उसे भावुकता दिखाते हुए मैंने सिर्फ एक बार देखा. यह बात साल 1995 के आखिर या 1996 की शुरु आत की रही होगी.
उस समय मामले की सुनवाई कर रहे जज जेएन पटेल कई अभियुक्तों को जमानत दे रहे थे. एक उम्मीद थी, लेकिन यह मेमन भाइयों के लिए नहीं थी. मुङो याकूब का चीखना और हिंसक हो जाना (बिना किसी को चोट पहुंचाये) याद है. उसने कहा था, ‘टाइगर सही था. हमें वापस नहीं लौटना चाहिए था.’
मुङो ताज्जुब होगा अगर वह इन वर्षो में बदल गया हो. मीडिया रिपोर्टे बताती हैं कि वह अभी नागपुर में कैद-ए-तन्हाई (जो कि सुप्रीम कोर्ट के अनुसार गैरकानूनी है) में है और जल्लाद का इंतजार कर रहा है. इस बीच उसके लिए अदालत से राहत का आखिरी प्रयास चल रहा है.
क्यों सरकार को याकूब मेनन को फांसी नहीं देनी चाहिए, इस पर जोरदार तर्क देते हुए मेरे दोस्त, फस्र्टपोस्ट डॉट कॉम के आर जगन्नाथन ने एक बेहतरीन लेख लिखा है. वह कहते हैं, कम से कम तब तक हड़बड़ी तो न की जाये, जब तक कि फैसला गले के नीचे न उतर जाये. वह दलील देते हैं कि राजीव गांधी और पंजाब के मुख्यमंत्री बेअंत सिंह की हत्या के मामलों में जिन्हें फांसी दी जानी थी, उन्हें अभी तक फांसी पर नहीं लटकाया गया है.
तमिलनाडु विधानसभा की दया अपील के बाद राजीव की हत्या करनेवाले संतन, मुरु गन और पेरारीवलन की फांसी की सजा कम कर दी गयी थी. बेअंत सिंह के हत्यारे बलवंत सिंह राजाओना ने बड़े फा से अपना गुनाह कबूल किया था और खुद को फांसी दिये जाने की मांग की थी, लेकिन उसे अभी तक जिंदा रखा गया है. शायद पंजाब विधानसभा की कोशिशों की वजह से भी ऐसा है.
जगन्नाथन लिखते हैं, ‘एक चीज सबको नजर आती है कि जहां एक गुनाहगार करार दिये गये खूनी या राजनीतिक हत्यारे या आतंकवादी के पास मजबूत राजनीतिक समर्थन होता है, वहां न तो सरकार और ना ही अदालतें निष्पक्ष न्याय देने की हिम्मत जुटा पाती हैं.
अब जरा गौर कीजिए कि जब हत्यारों की एक अलग किस्म जैसे अजमल कसाब, अफजल गुरु और अब शायद याकूब मेमन की बात आती है, तो कैसे वही केंद्र, राज्य और अदालतें ‘कानून का इकबाल’ कायम करने को उत्सुक हो उठती हैं. ये सभी मुसलमान हैं, और इनके फांसी के तख्ते तक पहुंचने की एकमात्र साझा वजह इनके पास राजनीतिक समर्थन की कमी होना है.’
मैं इससे सहमत हूं और इसी वजह से मैं मानता हूं कि मेमन को फांसी दे दी जायेगी. हालांकि, ऊपर जिन राजनीतिक हत्याओं का जिक्र है, वे मुंबई धमाकों से पहले हुई थीं.
इस फांसी के साथ ही, धमाके मामले में अदालती प्रक्रिया से मेरे लंबे जुड़ाव का अंत हो जायेगा. मैं इस अपराध के अभियुक्तों से पहले दिन एक रिपोर्टर के रूप में मिला था. उस दिन देर शाम मैं मुंबई के ऑर्थर रोड जेल पहुंचा था.जेल के दरवाजे बंद थे, पर वहां दर्जन भर महिलाएं खड़ी थीं. इनमें से ज्यादातर बुर्का पहने थीं.
ये औरतें अपने पतियों, बेटों या भाइयों, जो विचाराधीन कैदी थे और जिन्हें जमानत नहीं मिली थी, को घर का खाना देने की अनुमति के लिए आवेदन जमा करना चाहती थीं. इन औरतों को अंगरेजी लिखनी नहीं आती थी और उनमें से एक ने मुझसे लिखने को कहा था. मैंने उन सबके लिए अनुमति के आवेदन लिखे थे.
जैसे ही मैंने लिखना खत्म किया, एक पहरेदार जेल के फाटक से बाहर आया और जेल के सबसे ऊपरी सिरे पर एक अंधेरी खिड़की की ओर इशारा करते हुए बोला कि जेलर मुझसे मिलना चाहते हैं.
मुङो हीरेमठ नामक जेलर के पास पहुंचाया गया. उन्होंने मुझसे पूछा कि मैं क्या कर रहा था. मैंने उन्हें बताया तो वो नरम पड़े. उन्होंने खुद ही मुङो जेल दिखाने का प्रस्ताव किया और पूछा, ‘क्या आप संजय दत्त से मिलना चाहते हैं?’ मैंने हां कहा और इस तरह से मैं धमाके के अभियुक्त लोगों को जान पाया. नियमति रूप से उनसे कोर्ट और जेल में मिलते हुए.
इनमें से कुछ दत्त जैसे लोग फिर से जेल में हैं. शांत और मध्यवर्ग से आनेवाले मोहम्मद जिंद्रान जैसे कुछ लोग मार दिये गये हैं. और अब, याकूब को फांसी पर लटकाने की तैयारी है.
(अनुवाद : सत्य प्रकाश चौधरी)
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