अलग चश्मों के अलग नजारे
।। मो जुनैद ।। प्रभात खबर, पटना एक बात पहले ही साफ कर दूं. अपना इरादा फिल्म मिस्टर इंडिया के जादुई लाल चश्मे से दो–चार कराने का कतई नहीं है. न ही फिल्म सुहाग में समीर साहब के बोल, गोरे–गोरे मुखरे पे काला–काला चश्मा पर नुक्ताचीनी करने का. हम तो चाचा जी के चश्मे के […]
।। मो जुनैद ।।
प्रभात खबर, पटना
एक बात पहले ही साफ कर दूं. अपना इरादा फिल्म मिस्टर इंडिया के जादुई लाल चश्मे से दो–चार कराने का कतई नहीं है. न ही फिल्म सुहाग में समीर साहब के बोल, गोरे–गोरे मुखरे पे काला–काला चश्मा पर नुक्ताचीनी करने का.
हम तो चाचा जी के चश्मे के बारे में बात करना चाहते हैं. वर्षो पहले देखा कि गांव के छोटे–बड़े लोगों के अलावा महिलाएं परदेस से आये संदेश, यानी चिट्ठी लेकर चाचा जी के पास पहुंचतीं और कहतीं, जरा पढ़ दीजिए न! देखिए तो सब कुछ ठीक है न? चाचा कहते, बेटा जरा चश्मा लाना तो.
चश्मा लगाते ही चाचा मानो भविष्यवक्ता हो जाते. इधर उनके होंठ हिलते, उधर सामने वाले के चेहरे पर कभी खुशी के भाव, तो कभी तनाव. दिन भर मजमा लगा रहता. कई लोगों ने चाचा को चुनौती देने का मन बनाया. शहर में जाकर पढ़नेवाला चश्मा खोजा, दुकानदार चश्मा देता. लोग लगाते, लेकिन काला अक्षर भैंस बराबर. लोग कहते कि नहीं भाई! यह पढ़नेवाला चश्मा नहीं है.
चाचा जी के पास तो ऐसा चश्मा है कि उससे हर चीज फटाफट पढ़ी जाती है. आखिरकार दुकानदार खीज कर कहता, साक्षर होने से कुछ नहीं होता, शिक्षित होना पड़ता है. जाइये चाचा के चश्मे में जरूर जादू होगा. लोग सिर पीट कर कहते कि हाय! कहां से लाऊं चाचा का चश्मा.
खैर, आज लोग शिक्षित हो गये. अब चाचाजान उम्र के आखिरी पड़ाव पर हैं, लेकिन चश्मे की चमक बरकरार है. पिछले दिनों मैंने पूछा इसकी वजह क्या है? उन्होंने कहा कि बेटा! मेरे पास कई तरह के चश्मे हैं. सबका लेंस अलग–अलग है. मेरे पास तो पॉलिटिकल चश्मा भी है. मैंने पूछा, यह क्या बला है? उन्होंने फरमाया, इसे यों समझो. सुशील कुमार मोदी जब नीतीश जी के साथ थे, तो बिहार में हर तरफ विकास दिख रहा था. इसका मतलब उस समय उनके पास दूसरा चश्मा था यानी नीतीश जी टाइप का. आज अलग हुए तो उनके चश्मे से क्या दिखता है? इसी तरह आडवाणी का चश्मा कभी बताता था कि मोदी बेहतर लीडर हैं, लेकिन आज उनके चश्मे में उनका फिगर पीएम के लिए फिट नहीं बैठता है, जबकि राजनाथ जी व सुशील मोदी का चश्मा उनको केंद्र की कुरसी पर विराजमान देखता है.
लालू जी का चश्मा लगा कर देखो तो बिहार में विनाश दिखेगा और नीतीश के चश्मे से देखोगे तो हर तरफ विकास दिखेगा. सोनिया जी का चश्मा अलग है, तो मनमोहन व राहुल का चश्मा अलग. नमो के चश्मे की बात ही निराली है. अपुष्ट खबरों से पता चला है कि इन नेताओं के चश्मों का क्लोन इस बार लोस चुनाव में सभी कार्यकर्ताओं को जनता में बांटने के लिए दिया जायेगा, ताकि कोई फील गुड महसूस करे, तो कोई भारत निर्माण को निहारे.
लेकिन महंगाई, भ्रष्टाचार जैसे मुद्दे उन्हें दिखाई नहीं दें. वैसे राज की बात बताऊं बेटा! चश्मे में गुण बहुत है सदा राखियो संग, जब जहां जैसे जरूरत पड़े नैयन पर लियो चढ़ाए.