आदित्यपुर (जमशेदपुर) स्थित मुथूट फाइनांस के दफ्तर से ढाई करोड़ का सोना व नकदी लूट लेने के मामले में सबसे अहम बात यह है कि इसमें इसी दफ्तर के सुरक्षागार्डो की संलिप्तता पायी गयी है.
यह हैरतअंगेज है. जब सुरक्षा गार्ड ही अपराध करने पर उतारू हो जायें तो फिर क्या कहना? वैसे देखा जाये तो यह पहला मामला नहीं है जिसमें ‘रक्षक ही भक्षक’ बन गया हो. देश के कई हिस्सों में पहले भी इस तरह की वारदात होते रहे हैं. सवाल यह उठता है कि इसके बावजूद भी लोग सबक नहीं लेते. इसमें सबसे बड़ी लापरवाही सिक्यूरिटी एजेंसियों की है.
एक तरह से देखा जाये तो कई सिक्यूरिटी एजेंसियां सिर्फ खाने–कमाने का धंधा बन कर रह गयी हैं. बहुत कम ही एजेंसियां ऐसी हैं जो अपने लिए बने गाइडलाइन का पालन करती हैं. महत्वपूर्ण बात तो यह है कि सरकारी से लेकर निजी संस्थाओं तक और कई अति महत्वपूर्ण व संवेदनशील स्थानों पर इन सुरक्षा गार्डो को तैनात कर दिया जाता है.
ऐसे में हमेशा ही इस बात की आशंका बनी रहती है कि जाने कब क्या हो जाये? सिक्यूरिटी एजेंसियों की बात करें तो ये कई बार बिना जांच–पड़ताल के ही सुरक्षा गार्डो की बहाली कर लेती हैं. जैसे– निर्धारित गाइडलाइन के अनुसार यह सुनिश्चित करना आवश्यक है कि जिस गार्ड की भरती हो रही है उसके खिलाफ पहले से कोई एफआइआर दर्ज नहीं हो. उसके स्थायी निवास का पूरा पुख्ता ब्योरा व कागजात मौजूद हो. उसका एकेडमिक कागजात होना आवश्यक है.
एजेंसियों को इस बात को भी सुनिश्चित करना आवश्यक है कि वे डय़ूटी के दौरान हमेशा यूनिफॉर्म में हों और नेमप्लेट और बैज लगा हुआ हो. आदित्यपुर के मुथूट फाइनांस में हुए लूटकांड में जो बात सामने आ रही है उसके अनुसार सिक्यूरिटी एजेंसी ने निर्धारित गाइडलाइन का पालन नहीं किया. जो गार्ड आरोपी हैं उसमें से एक पर औरंगाबाद (बिहार) में 11 विभिन्न आपराधिक मामले दर्ज हैं.
दूसरा आरोपी उसी का रिश्तेदार है. यह चिंताजनक है कि इस कदर की लापरवाही से आखिर किस प्रकार सुरक्षा का पुख्ता दावा किया जा सकता है. उम्मीद की जानी चाहिए कि न सिर्फ इस मामले में, बल्कि अन्य सिक्यूरिटी एजेंसियों पर भी प्रशासनिक नकेल कसी जायेगी.