।। जाहिद खान ।।
स्वतंत्र टिप्पणीकार
गुजरात विधानसभा में पेश कैग की रिपोर्ट में कहा गया है कि राज्य में हर तीसरा बच्चा कुपोषित है. राज्य में पहले के मुकाबले कुपोषण में और भी वृद्घि हुई है.ये आंकड़े गुजरात के विकास मॉडल की कड़वी हकीकत सामने लाते हैं.
प्रधानमंत्री पद के दावेदार नरेंद्र मोदी विकास के गुजरात मॉडल के बारे में बड़े–बड़े दावे करते हैं, लेकिन इसकी कड़वी हकीकत भी समय–समय पर सामने आती रहती है. नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक यानी कैग ने अपनी हालिया रिपोर्ट में गुजरात में कुपोषण की जो तसवीर पेश की है, वह आंखें खोलनेवाली है.
गुजरात विधानसभा के मॉनसून सत्र में पेश कैग की रिपोर्ट में कहा गया है कि राज्य में हर तीन बच्चों में से एक कुपोषित है. मासिक प्रगति रिपोर्ट में हर तीसरे बच्चे का वजन तय मानकों के मुकाबले बेहद कम पाया गया. राज्य में पहले के मुकाबले कुपोषण में और भी वृद्घि हुई है. मोदी की पिछली सरकार के कार्यकाल 2007 से 2012 में कुपोषण में चार फीसदी का इजाफा हुआ.
यहां तक कि गुजरात की राजधानी अहमदाबाद में भी कुपोषित बच्चों की तादाद ज्यादा है. रिपोर्ट में कहा गया है कि लड़कियों को दिये जानेवाले पोषक आहार में भी भेदभाव होता है. उनके आहार में 33 प्रतिशत की कमी आयी है. कुपोषण से निपटने के लिए संजीदगी का अभाव हर स्तर पर है.
राज्य में 75 हजार 480 आंगनवाड़ी की जरूरत थी, लेकिन 50 हजार 225 आंगनवाड़ी ही खोली गयीं. इनमें भी लगभग दो हजार केंद्र पूरी तरह से निष्क्रिय हैं. इसलिए केंद्र सरकार की समेकित बाल विकास योजना के फायदे से राज्य के एक करोड़ 87 लाख बच्चे वंचित रह गये.
गुजरात सरकार और भाजपा कैग की इस रिपोर्ट को नकारने में लगी है. राज्य सरकार का कहना है कि उसने 2007-2012 के बीच कुपोषित बच्चों को अतिरिक्त पूरक पोषणयुक्त आहार मुहैया कराया. बाल–कुपोषण मिटाने के लिए ‘बलम सुखम’ नामक योजना भी शुरू की, जिसके अच्छे नतीजे आये. सरकार के इन दावों को यदि सही मान लें, तो सवाल है कि फिर वहां कुपोषण की समस्या क्यों गहराती चली गयी?
इसी साल अगस्त में गुजरात विधानसभा में एक सवाल के लिखित जवाब में महिला एवं बाल विकास मंत्री वासुबेन त्रिवेदी ने कहा कि ‘राज्य के 14 जिलों में तकरीबन छह लाख तेरह हजार बच्चे कुपोषित हैं और बारह जिलों के आंकड़े उपलब्ध नहीं हैं.’ जिन जिलों के आंकड़े नहीं हैं, हो सकता है कि उनकी स्थिति और भी खराब हो.
करीब दो साल पहले आयी भारत मानव विकास रिपोर्ट में भी कहा गया था कि गुजरात में प्रति व्यक्ति आय ज्यादा होने के बावजूद कुपोषण के मामले में वह पिछड़े राज्यों की कतार में है. यही नहीं शिशु मृत्यु दर भी गुजरात में ज्यादा है.
भारत मानव विकास रिपोर्ट के मुताबिक राज्य में अनुसूचित जाति और जनजाति की महिलाएं सबसे ज्यादा कुपोषित हैं. 2010-11 के आर्थिक सर्वेक्षण के आंकड़ों के मुताबिक महिलाओं में खून की कमी के लिहाज से भारत के बीस प्रमुख राज्यों में गुजरात पहले नंबर पर था.
जाहिर है, जहां महिलाओं की सेहत अच्छी नहीं होगी, बच्चों में कुपोषण उसकी स्वाभाविक परिणति होगी. लिंगानुपात को देखें, गुजरात में प्रति हजार पुरुष सिर्फ 880 महिलाएं हैं, जबकि बिहार में यह अनुपात प्रति हजार पुरुष पर 920 महिलाओं का है. ये आंकड़े गुजरात में महिला सशक्तीकरण के तमाम दावों की हवा निकालते हैं.
देश में गुजरात के विकास मॉडल का जिस तरह से ढिंढोरा पीटा जाता है, उनमें ऐसी कड़वी हकीकत की चर्चा नहीं की जाती. समेकित विकास के लिहाज से गुजरात की तसवीर बदरंग है. मोदी राज में गुजरात में कैसा विकास हुआ है, इसके लिए कुछ और आंकड़ों पर नजर डालना चाहिए. मानव विकास सूचकांक के मामले में गुजरात फिलहाल नौवें स्थान पर, तो भूख सूचकांक में वह बिहार और ओड़िशा के समकक्ष है. इस मामले में वह उत्तर प्रदेश और राजस्थान से भी पीछे है.
स्कूल में बच्चों के टिकने और जीवन प्रत्याशा दर के मामले में भी गुजरात दूसरे राज्यों– महाराष्ट्र, हिमाचल प्रदेश, पंजाब, हरियाणा, तमिलनाडु और कर्नाटक आदि–से काफी पीछे है. प्रति व्यक्ति आय के मामले में गुजरात देश में नौवें स्थान पर है. शिक्षा और सार्वजनिक स्वास्थ पर खर्च करने के मामले में भी गुजरात हरियाणा से पीछे है.
जाहिर है, गुजरात सरकार राज्य के लोगों की बुनियादी जरूरतों को पूरा नहीं कर पायी है. इस मोरचे पर उसके खाते में नाकामी ही ज्यादा है. 2011 की जनगणना के मुताबिक गुजरात में सिर्फ 34 फीसदी ग्रामीण आबादी को ही शौचालय उपलब्ध हैं. बीजेपी विकास के जिस गुजरात मॉडल के अनोखा होने का दावा करती है, उसकी यह कुछ छोटी–छोटी मिसाल भर है. कई क्षेत्रों में गुजरात देश के उन राज्यों से भी पीछे है, जिन्हें पिछड़ा कहा जाता है. जाहिर है, गुजरात के विकास की कहानी राज्य के हजारों–लाखों लोगों की उपेक्षा के साथ लिखी गयी है. क्या कोई ऐसा विकास मॉडल पूरे देश का विकास मॉडल हो सकता है!