लोकाचार का पाठ
‘दिल मिले ना मिले हाथ मिलाते रहिए’- लोकाचार तो यही पाठ पढ़ाता है. लोकाचार को निभाने की जिम्मेदारी सबकी है. राजनेता की तो शायद सबसे ज्यादा, क्योंकि आज के मीडियामुखी समाज में राजनीति छवि केंद्रित हो चली है. कैमरे की आंख प्रमुख राजनेताओं पर हर पल होती है और राजनेताओं की भावमुद्राओं की टेलीविजनी छवियों […]
‘दिल मिले ना मिले हाथ मिलाते रहिए’- लोकाचार तो यही पाठ पढ़ाता है. लोकाचार को निभाने की जिम्मेदारी सबकी है. राजनेता की तो शायद सबसे ज्यादा, क्योंकि आज के मीडियामुखी समाज में राजनीति छवि केंद्रित हो चली है. कैमरे की आंख प्रमुख राजनेताओं पर हर पल होती है और राजनेताओं की भावमुद्राओं की टेलीविजनी छवियों के बड़े राजनीतिक अर्थ निकाले जाते हैं.
संसद की पहले दिन की कार्यवाही बाधित रही. कार्यवाही को बाधित करने के पीछे कांग्रेस के अपने तर्क और सत्ताधारी दल से मतभेद हो सकते हैं, लेकिन लोकाचार के तकाजे से यह तो अपेक्षा रखी ही जा सकती है कि कांग्रेस के प्रमुख नेता के रूप में सोनिया गांधी मौजूदा प्रधानमंत्री से अपने राजनीतिक मतभेद को निजी मनभेद के स्तर तक न ले जायें. संसद की पहले दिन की कार्यवाही शुरू होने के पलों में कुछ ऐसा ही हुआ.
प्रधानमंत्री शिष्टाचारवश सेहत का हाल-चाल पूछने सोनिया गांधी की सीट तक गये, और खबरों में आया है कि प्रधानमंत्री की इस सहृदयता के प्रति सोनिया गांधी ने अपनी तरफ से कोई विशेष गर्मजोशी नहीं दिखायी. प्रधानमंत्री ने मुलायम सिंह यादव से भी सेहत का हाल-चाल पूछा, लेकिन वहां स्थिति दूसरी थी. दोनों के बीच तकरीबन पांच मिनट की बात हुई. जाहिर है, प्रधानमंत्री ने मुलायम सिंह और सोनिया गांधी से राजनीतिक मतभेद को परे रखते हुए अपनी तरफ से मेल-मुलाकात का एक सिलसिला कायम करना चाहा, लेकिन सोनिया गांधी के विपरीत, मुलायम सिंह का बरताव का तरीका गर्मजोशी भरा था.
अब यह तर्क देना तो बाल की खाल निकालना ही कहलायेगा कि सोनिया गांधी और प्रधानमंत्री दोनों दिल्ली में ही रहते हैं, सो अलग से संसद में हाल-चाल जानने की ऐसी क्या जरूरत आन पड़ी! ठीक ऐसे ही, यह कहना भी बात पर नमक-मिर्च लगाना ही कहलायेगा कि सोनिया गांधी देश के लोकाचार को अभी आत्मसात नहीं कर पायी हैं.
बहरहाल, इसे एक राजनीतिक असावधानी के रूप में जरूर ही देखा जाना चाहिए. मीडिया के प्रभुत्व से भरे वक्त में सामान्य व्यवहार में बरती गयी ऐसी असावधानियां नकारात्मक छवि बनाने का काम करती हैं.
किसी सजग राजनेता के लिए यह जरूरी है कि वह अपने व्यवहार से अपने समर्थकों के लिए एक नजीर कायम करें. एक बड़ी पार्टी के अध्यक्ष के रूप में सोनिया गांधी के बरताव में अगर प्रधानमंत्री के सौहार्द के प्रत्युत्तर में पर्याप्त गर्मजोशी झलकती, तो इसे एक नेता का नजीर कायम करनेवाला बरताव माना जाता, लेकिन इस मामले में वे चूक गयीं.