संस्थाओं की गरिमा

संसद के मॉनसून सत्र में लंबित महत्वपूर्ण विधेयकों पर बहस शुरू नहीं हो सकी है. गुरुवार को भी दोनों सदनों का कामकाज हंगामे की भेंट चढ़ गया. हंगामा कर रही कांग्रेस सत्ता पक्ष के तीन नेताओं के इस्तीफे की अपनी जिद पर कायम है. इस मुद्दे पर सत्ता पक्ष के बहस के लिए तैयार होने […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | July 24, 2015 2:29 AM
संसद के मॉनसून सत्र में लंबित महत्वपूर्ण विधेयकों पर बहस शुरू नहीं हो सकी है. गुरुवार को भी दोनों सदनों का कामकाज हंगामे की भेंट चढ़ गया. हंगामा कर रही कांग्रेस सत्ता पक्ष के तीन नेताओं के इस्तीफे की अपनी जिद पर कायम है.
इस मुद्दे पर सत्ता पक्ष के बहस के लिए तैयार होने के बावजूद गतिरोध टूटने की कोई सूरत नजर नहीं आ रही. कांग्रेस यह भी नहीं देख पा रही है कि संसद में बहस से भागने की उसकी इस रणनीति की कई स्तरों पर आलोचना हो रही है. यहां तक कि पार्टी नेता शशि थरूर ने भी संसद में हंगामा करने की रणनीति को गलत बताया.
लेकिन, पार्टी आलाकमान ने इस पर गौर करने की बजाय, खबरों के मुताबिक थरूर को ही जमकर फटकार लगा दी. यह सही है कि यूपीए टू के कार्यकाल में घोटाले सामने आने पर भाजपा ने भी ठीक इसी तरह से संसद को ठप करने की रणनीति अपनायी थी, लेकिन कांग्रेस को यह भी समझना होगा कि ‘ललितगेट’ मामले में सुषमा स्वराज द्वारा की गयी सिफारिश और ‘टूजी’ या ‘कोलगेट’ जैसे घोटालों में उसके मंत्रियों की संलिप्तता की प्रकृति बिल्कुल अलग है. कांग्रेस जिन भाजपा नेताओं के इस्तीफे पर अड़ी है, किसी घोटाले में उनकी संलिप्तता के ठोस सबूत सामने नहीं आये हैं; न किसी चाजर्शीट में उनके नाम हैं, न ही किसी जांच रिपोर्ट में उन पर सीधे आरोप लगाये गये हैं.
दुर्भाग्य से सत्ता पक्ष ने भी गतिरोध तोड़ने की कोशिशें छोड़ आक्रामक रुख अख्तियार कर लिया है. भाजपा ने कुछ कांग्रेसी मुख्यमंत्रियों पर घपलों के आरोप लगा कर बताना चाहा है कांग्रेस की रणनीति उस पर ही भारी पड़ेगी. ऐसे आरोप-प्रत्यारोपों के बीच संसद जैसी सर्वोच्च लोकतांत्रिक संस्था की गरिमा की चिंता किसी को नहीं है.
लोकतंत्र को मजबूती प्रदान करनेवाली संस्थाएं यदि अपनी भूमिका में खरे नहीं उतरें, उनका क्षरण शुरू हो जाये, तो यह लोकतंत्र के लिए चिंता की बात है. संसद की महत्ता और गरिमा इस बात में है कि वहां बहस के जरिये ऐसे कारगर कानून बनाये जाएं, जिनसे देश के प्रत्येक नागरिक के हक की रक्षा हो सके. परंतु, जिन मुद्दों पर बहस संसद में होनी चाहिए, उन पर बात प्रेस कॉन्फ्रेंस के जरिये हो रही है.
पक्ष और विपक्ष को यदि बात करने का यह तरीका ही मुफीद लगता है, तो पूछा जा सकता है कि उनके सांसदों को संसदीय कार्यवाही के भत्ते क्यों दिये जाने चाहिए? लोकतांत्रिक संस्थाओं की महत्ता और गरिमा बनाये रखने की जवाबदेही दोनों की है- खबरों में बने रहने के लिए रोज हंगामा करनेवालों की भी और अपने रुख से हंगामे को तूल देनेवालों की भी.

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