चौतरफा फर्जीवाड़ा
नकली डिग्रियों और अवैध दाखिले की खबरों के बीच बड़ी संख्या में वकीलों की डिग्रियां फर्जी होने के बात सामने आयी है. बार काउंसिल ऑफ इंडिया के अध्यक्ष मनन कुमार मिश्र ने ये सनसनीखेज खुलासा किया है कि देश के कुल वकीलों में 30 फीसदी के पास जाली डिग्रियां हैं. चेन्नई में अधिवक्ताओं की बैठक […]
नकली डिग्रियों और अवैध दाखिले की खबरों के बीच बड़ी संख्या में वकीलों की डिग्रियां फर्जी होने के बात सामने आयी है. बार काउंसिल ऑफ इंडिया के अध्यक्ष मनन कुमार मिश्र ने ये सनसनीखेज खुलासा किया है कि देश के कुल वकीलों में 30 फीसदी के पास जाली डिग्रियां हैं. चेन्नई में अधिवक्ताओं की बैठक में उन्होंने बताया है कि अदालतों में सक्रि य वकीलों में से 20 फीसदी फर्जी डिग्रीधारक हैं. इन फर्जी वकीलों से पेशे की गुणवत्ता पर गंभीर असर होने के साथ आम लोगों को भी नुकसान उठाना पड़ रहा है. मिश्र की मानें, तो उद्दंड और आक्र ामक वकीलों की जमात में ऐसे ही लोग शामिल हैं.
अदालतें आम आदमी की उम्मीद का आसरा होती हैं और लोगों की गुहार वकीलों के जरिये ही अभिव्यक्त होती है. निश्चित रूप से नकली डिग्रीवाले वकीलों के होते न्याय की आशा नहीं की जा सकती है.
अगर न्यायालयों की इस हालत को व्यापमं जैसे घोटालों, परीक्षा में पर्चे लीक होने की घटनाओं, फर्जी डिग्रियों के आधार पर बहाल हुए शिक्षकों तथा बिना उचित लाइसेंस व प्रशिक्षण के लोगों का इलाज कर रहे डॉक्टरों आदि के साथ रख कर देखें, तो यह अनुमान लगाना मुश्किल नहीं है कि हमारे देश की मौजूदा स्थिति किस हद तक निराशाजनक हो चुकी है. फर्जी डिग्री बनानेवाले गिरोहों के पकड़े जाने की खबरें भी आती रहती हैं, पर यह कारोबार थमने का कोई नाम नहीं ले रहा है. विडंबना यह भी है कि विश्वविद्यालय अनुदान आयोग हर वर्ष फर्जी विश्वविद्यालयों की सूची जारी करता है, फिर भी ये कथित संस्थाएं सक्रिय बनी रहती हैं और कानून की पहुंच से भी बची रहती हैं.
पिछले साल नकली डॉक्टरों की धर-पकड़ का देशव्यापी अभियान चला था, पर आज भी ऐसे नीम हकीम हर शहर और कस्बे में अपनी दुकान लगाये देखे जा सकते हैं. ऐसे लोग सिर्फ देश में ही नहीं, विदेशों में भी फर्जी डिग्रियों के आधार पर नौकरियां करने का दुस्साहस करते हैं. वर्ष 2014 में सऊदी अरब में 250 भारतीय इंजीनियरों की डिग्रियां फर्जी पायी गयी थीं. आश्चर्य की बात है कि देशभर में डिग्रियां बेचनेवाले संस्थान चल रहे हैं और वे खुलेआम अपना प्रचार भी करते हैं. जो लोग पकड़े जाते हैं, उन्हें या तो मामूली सजाएं मिलती हैं या वे छूट जाते हैं. अब समय आ गया है कि सरकारी तंत्र के साथ-साथ विभिन्न पेशों का लाइसेंस देनेवाले संगठन तथा नियामक संस्थाएं कड़ाई और मुस्तैदी से फर्जीवाड़े पर नकेल लगाने के लिए जरूरी कदम उठायें.