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बेरोजगारों को दिखा रहे हैं दिवास्वप्न

फिलवक्त झारखंड सामान्य स्नातक छात्रों के लिए सरकारी नियुक्ति के दृष्टिकोण से अनुकूल नहीं है. कई मंत्री और अधिकारी सिर्फ यहां के युवाओं को दिवास्वप्न दिखा रहे हैं. वास्तविक स्थिति इसके विपरीत है. हालात ये हैं कि सरकारी विभागों में इंटर और स्नातक स्तर के कई पद वर्षो से रिक्त पड़े हैं, मगर उस पर […]

फिलवक्त झारखंड सामान्य स्नातक छात्रों के लिए सरकारी नियुक्ति के दृष्टिकोण से अनुकूल नहीं है. कई मंत्री और अधिकारी सिर्फ यहां के युवाओं को दिवास्वप्न दिखा रहे हैं. वास्तविक स्थिति इसके विपरीत है. हालात ये हैं कि सरकारी विभागों में इंटर और स्नातक स्तर के कई पद वर्षो से रिक्त पड़े हैं, मगर उस पर नियुक्ति नहीं हो रही है.

हर साल झारखंड में दो लाख से अधिक छात्र स्नातक की परीक्षा पास करते हैं. ऐसे में कई स्नातक स्तरीय पदों को खंडित विज्ञापन के माध्यम से 50 और सौ की संख्या में आवेदन मांगना न्यायोचित और युक्तिसंगत प्रतीत नहीं होता. यदि इतनी कम संख्या में स्नातक स्तर पर नियुक्ति के लिए आवेदन मांगे जायेंगे, तो राज्य के बेरोजगारों का क्या हाल होगा? ऐसे पदों पर नियुक्ति के लिए अन्य राज्यों से भी आवेदन भेजे जाते हैं. अभी हाल ही में सचिवालय सहायक, जेपीएससी सहायक, अवर उत्पाद निरीक्षक और सहायक निरीक्षक के पदों पर नियुक्ति के लिए खंडित आवेदन मंगाये गये. आम तौर पर ऐसी परीक्षाओं का प्रारूप प्राय: एक समान ही होता है. लेकिन झारखंड कर्मचारी चयन आयोग की ओर से हर माह मांगे जानेवाले आवेदन की वजह से यहां के गरीब छात्रों को आर्थिक परेशानियों का सामना करना पड़ता है.

एक सरकारी पद पर नियुक्ति के लिए एक आवेदक को सैकड़ों रुपये खर्च करने पड़ते हैं. बेरोजगारी की स्थिति में आवेदन करने के लिए भी गरीब छात्रों के पास पैसों का अभाव होता है. यही वजह है कि आज झारखंड में सरकारी नौकरी पाना एक दिवास्वप्न जैसा हो गया है. खास बात यह कि सरकार में बैठे मंत्री बेरोजगारों को सपने दिखाते हैं, लेकिन विभागों में कुर्सियों पर बैठे बाबू अपना उल्लू सीधा कर रहे हैं.

अंशु मोहन सहाय, जामताड़ा, झारखंड

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