बदसलूकी में भी है ‘मेरा भारत महान’
अफशां अंजुम एंकर, एनडीटीवी उत्तर प्रदेश के बरेली के आठ गांवों की लड़कियां पढ़ने में आगे हैं, तेज हैं, लेकिन उनकी स्कूल जाने की हिम्मत टूट रही है. शेरगढ़ गांव के एक स्कूल में पढ़नेवाली इलाके की करीब दो सौ लड़कियों में से एक-एक कर हरेक की कोशिश बेकार जा रही है. 35 लड़कियों ने […]
अफशां अंजुम
एंकर, एनडीटीवी
उत्तर प्रदेश के बरेली के आठ गांवों की लड़कियां पढ़ने में आगे हैं, तेज हैं, लेकिन उनकी स्कूल जाने की हिम्मत टूट रही है. शेरगढ़ गांव के एक स्कूल में पढ़नेवाली इलाके की करीब दो सौ लड़कियों में से एक-एक कर हरेक की कोशिश बेकार जा रही है. 35 लड़कियों ने स्कूल जाना पूरी तरह से छोड़ दिया है. वजह? उनके लिए स्कूल जाने का रास्ता इतना आसान नहीं है.
कुल दस किलोमीटर की दूरी में पहले तीन किलोमीटर से ज्यादा पैदल चलना पड़ता है. लेकिन असल मुश्किल तब आती है, जब इन्हें 2.5 किलोमीटर नदी पार करनी पड़ती है, वह भी चपटी नाव पर.
यह रास्ता क्यों खौफनाक है? यहां रोज इनका इंतजार करते लड़के ठीक उसी वक्त नहाने आते हैं, आपस में गाली-गलौज शुरू करते हैं, पानी फेंकते हैं, इनके गीले हो जाने पर वीडियो बनाते हैं और कुछ तो हाथ पकड़ने के लिए भी पास आ जाते हैं. लड़कियों में से कइयों ने पुलिस के पास जाने की कोशिश भी की, लेकिन वे कहती हैं कि रिपोर्ट खुद उन्हीं के परिवार के खिलाफ लिख दी गयी, यह कह कर कि उन्होंने बेचारे लड़कों की पिटाई की है!
हमारे देश के हर कोने में लड़कियों के लिए नये-नये इम्तिहान इंतजार करते रहते हैं. चाहे हरियाणा के गुड़गाव जैसे बड़े शहर में किसी हाइ-प्रोफाइल पोजिशन पर काम करनेवाली कोई महिला हो या फिर राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली की किसी बस में कॉलेज जाती कोई छात्र हो.
लेकिन, संघर्ष की भी अपनी सीमाएं होनी चाहिए. एक ऐसे देश में, जहां रोटी खाना संघर्ष है, वहां सांस लेने की छूट तो होनी चाहिए, स्कूल जाने की आजादी तो होनी चाहिए. न्यूज-चैनल हमें यह तो बताते हैं कि दुनिया में क्या हो रहा है, लेकिन यह भी हकीकत है कि इन कहानियों के बीच इंसानियत कभी-कभी दम तोड़ देती है.
बरेली के गांवों से हम क्या उम्मीद कर सकते हैं? जब दिल्ली के आनंद पर्वत में 32 बार चाकू घोंप कर एक लड़की की हत्या होती है और दिल्ली के मुख्यमंत्री को इसके बदले में अपनी रिकॉर्डेड आवाज टीवी चैनलों पर चलवानी पड़ती है, मिन्नतें करते हुए, कि प्रधानमंत्री ‘समय निकाल कर’ राजधानी की सुरक्षा के बारे में भी सोचें. बरेली के सांसद कहते हैं कि हम लोग इस डर से कुछ नहीं कर पाते कि यह मामला सियासी रंग ले लेगा.
आपको गुस्सा आना चाहिए, लेकिन ऐसे मुद्दों पर सिर्फ चिल्लाने या दूसरों को मारने के लिए नहीं. यह समझने के लिए कि पूरी दुनिया हमें सिर्फ बॉलीवुड और क्रिकेट के लिए ही नहीं जानती, बल्कि औरतों के साथ बदसलूकी में भी ‘मेरा भारत महान’ है.
छोटे-छोटे कस्बों में पढ़ाई करने के लिए बेचैन बच्चियों को सिर्फ घर के पास एक स्कूल ही नहीं चाहिए, उन्हें आस-पास ऐसे परिवार और मां-बाप भी चाहिए, जो अपने बेटों को सिखाएं कि इन्हीं लड़कियों में कल उनकी बेटियां भी हो सकती हैं, जिन्हें स्कूल छोड़ने का जिम्मा उन्हें शायद खुद उठाना पड़ेगा. अब अगर आपको इस घटना पर गुस्सा न आया, तो फिर किसी बात पर नहीं आना चाहिए.