औद्योगिक विकास होगा फुस्स

डॉ भरत झुनझुनवाला अर्थशास्त्री दुनियाभर में मैन्यूफैरिंग ढीली पड़ती जा रही है. मई 2015 में वैश्विक उत्पादन सूचकांक 51.9 था, जो जून में 51.3 रह गया है. सूचकांक घटने का अर्थ है कि वृद्धि की दर घट रही है. चीन की मुद्रा में लगातार आ रही गिरावट का एक प्रमुख कारण वहां मैन्यूफैरिंग क्षेत्र में […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | July 28, 2015 1:12 AM
डॉ भरत झुनझुनवाला
अर्थशास्त्री
दुनियाभर में मैन्यूफैरिंग ढीली पड़ती जा रही है. मई 2015 में वैश्विक उत्पादन सूचकांक 51.9 था, जो जून में 51.3 रह गया है. सूचकांक घटने का अर्थ है कि वृद्धि की दर घट रही है. चीन की मुद्रा में लगातार आ रही गिरावट का एक प्रमुख कारण वहां मैन्यूफैरिंग क्षेत्र में सुस्ती बतायी जा रही है. वहीं भारत में मैन्यूफैरिंग के सूचकांक में भारी गिरावट आयी है.
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा देश को ग्लोबल मैन्यूफैरिंग हब बनाने के अथक प्रयासों को इस पृष्ठभूमि में देखना चाहिए. सही है कि पिछले एक वर्ष में जनरल इलेक्ट्रिक, बीएमडब्ल्यू, पैनासोनिक तथा सैमसंग भारत में उद्योग लगाने को बढ़े हैं. यह ऊंट के मुंह में जीरा के समान है. देश को वैश्विक मैन्यूफैरिंग हब बनाने में पहला रोड़ा बढ़ते वेतन का है.
एक अध्ययन के अनुसार, किसी समय क्यूबा में मजदूर की दिहाड़ी 25 रुपये, बंग्लादेश में 46 रुपये, किरगिस्तान में 61 रुपये तथा भारत में 128 रुपये थी. तमाम देशों में भारत से कम वेतन पर श्रमिक उपलब्ध हैं. अत: सस्ते वेतन के आकर्षण में उद्योग भारत के स्थान पर दूसरे देशों में जायेंगे.
श्रमिकों की आवश्यकता भी कम होती जा रही है. उत्तर प्रदेश की एक चीनी मिल में 40 वर्ष पूर्व 2,500 श्रमिक मेहनत करके 2,000 बोरी चीनी का उत्पादन करते थे. आज उसी मिल में 500 श्रमिकों के द्वारा 8,000 बोरी चीनी का उत्पादन किया जा रहा है. क्योंकि ट्रकों से गन्ने को उतारना, बायलर में बगास को झोंकना, सेंट्रीफ्यूगल में चीनी को साफ करना आदि अब ऑटोमेटिक मशीनों द्वारा किया जाने लगा है.
दूसरी समस्या उत्पादित माल की मांग की है. तीन प्रकार की खपत होती है. भोजन, जो कृषि क्षेत्र में उत्पादित होता है. कपड़ा, टीवी, कार आदि, जो मैन्यूफैरिंग क्षेत्र में बनता है. सिनेमा, कंप्यूटर गेम्स, टूरिज्म, जो सेवा क्षेत्र द्वारा आपूर्ति की जाती है. एक आदमी कितना ही अमीर हो जाये, वह दो रोटी ही खाता है.
वह एक के स्थान पर तीन टीवी लगा सकता है, फिर भी मैन्यूफैर्ड माल की खपत की सीमा है. इसकी तुलना में सेवाओं की खपत लगभग असीमित है. अत: कृषि की मांग में वृद्धि न्यून, मैन्यूफैरिंग में वृद्धि सामान्य और सेवाओं में वृद्धि अधिकाधिक हो रही है. इसलिए विकसित देशों में सेवा क्षेत्र का हिस्सा 90 प्रतिशत तक होता है, मैन्यूफैरिंग का 9 प्रतिशत और कृषि का एक प्रतिशत. ऐसे में मैन्यूफैरिंग पर जोर देना डूबते जहाज पर चढ़ने जैसा है.
तीसरी समस्या वैश्विक बाजार में ग्लट की है. चीन ने उद्योगों में जरूरत से ज्यादा निवेश किया है. वहां तमाम कंपनियां बंद पड़ी हैं, चूंकि विश्व बाजार में डिमांड नहीं है. चीन ने विश्व बाजार में सस्ता माल बेचने के लिए अपनी जनता के मानवाधिकारों तथा हवा-पानी को नष्ट किया है.
जैसे चीनी कंपनी को गंदा पानी नदी में डालने की अनुमति हो और भारत की कंपनी को ट्रीटमेंट प्लांट लगाना पड़े, तो भारत का माल महंगा पड़ेगा. चीन के सस्ते माल से कंपटीट करने के लिए भारत को अपनी नदियों को भी नष्ट करना पड़ेगा. भारत में पर्यावरण को नष्ट करना आसान नहीं होगा. तदानुसार, यहां माल की लागत ज्यादा आयेगी.
चौथी समस्या जमीन और बिजली की है. अमेरिका की तुलना में भारत में जमीन तिहाई और जनसंख्या चौगुनी है. हमारे लिए उद्योगों के लिए जमीन उपलब्ध कराना कठिन है. भूमि अधिग्रहण विधेयक पर चल रहा द्वंद्व इस समस्या का द्योतक है. हमारे पास बिजली भी नहीं है.
हमारा कोयले का भंडार मात्र 150 साल के लिए पर्याप्त है. हम आयातित कोयले, यूरेनियम तथा तेल पर निर्भर हैं. ऐसे में नये उद्योगों को बिजली उपलब्ध कराना कठिन होगा. भारत के लिए इंडोनेशिया से कोयला लाकर बिजली बनाना महंगा पड़ेगा. इन परिस्थितियों के चलते भारत को वैश्विक मैन्यूफैरिंग हब बनाना नामुमकिन होगा. इसीलिए मोदी के प्रयासों के बावजूद मैन्यूफैरिंग उत्पादन शिथिल है.
मोदी को मैन्यूफैरिंग के स्थान पर सेवा क्षेत्र को प्रमोट करना चाहिए. सेवा में क्यूबा और बांग्लादेश के सस्ते श्रम का मुकाबला करना हमारे लिए संभव है, चूंकि यहां जरूरत स्किल की है, न कि शरीर की. सेवा क्षेत्र का बाजार बढ़ रहा है. सेवा क्षेत्र में चीन के माल का ग्लट भी नहीं है.
इसमें भूमि और बिजली की जरूरत भी कम होती है. उतनी ही रकम का उत्पादन मैन्यूफैरिंग के स्थान पर सेवा क्षेत्र में किया जाये, तो दस प्रतिशत भूमि और बिजली की ही जरूरत होती है. समस्या है कि सेवा क्षेत्र में नौकरशाहों के लिए कमीशन खाने के अवसर कम होते हैं.
मैन्यूफैरिंग में जमीन का अधिग्रहण, लाइसेंस, बिजली कनेक्शन, बिक्रीकर इत्यादि में अफसरों को पर्याप्त घूस मिलती है. अस्पताल, सॉफ्टवेयर तथा शिक्षा जैसे क्षेत्रों में कमीशन के अवसर कम होते हैं. मोदी सरकार को इन्हीं नौकरशाहों द्वारा चलाया जा रहा है, इसलिए मोदी को मैन्यूफैरिंग ही रास आ रहा है, सेवा क्षेत्र पर उनका ध्यान नहीं है.

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