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दूसरा डॉ कलाम कहीं दिखता नहीं
अनुज कुमार सिन्हा वरिष्ठ संपादक प्रभात खबर डॉ अब्दुल कलाम ने अपनी जिंदगी जी. जब इस दुनिया से विदा हुए तो भी शिक्षक की भूमिका निभाते हुए. यही तो उनकी इच्छा थी. दुनिया शायद यह तय नहीं कर पायेगी कि डॉ कलाम को किस रूप में याद किया जाये? भारत के पूर्व राष्ट्रपति के रूप […]
अनुज कुमार सिन्हा
वरिष्ठ संपादक
प्रभात खबर
डॉ अब्दुल कलाम ने अपनी जिंदगी जी. जब इस दुनिया से विदा हुए तो भी शिक्षक की भूमिका निभाते हुए. यही तो उनकी इच्छा थी. दुनिया शायद यह तय नहीं कर पायेगी कि डॉ कलाम को किस रूप में याद किया जाये? भारत के पूर्व राष्ट्रपति के रूप में, महान वैज्ञानिक के रूप में, शिक्षक के रूप में या फिर श्रेष्ठ-आदर्श इनसान के रूप में.
सभी रूपों में अव्वल. इसलिए दूसरा कलाम नहीं दिखता और शायद भविष्य में भी न दिखे. सच्चे कर्मयोगी. निधन भी हुआ तो काम करते वक्त.कभी यह नहीं समझा कि उम्र हो गयी, काम कम करना है.
जैसे-जैसे उम्र बढ़ती गयी, काम करने का जज्बा बढ़ता गया. इतना महान व्यक्ति और इतनी सरलता, जमीन से इतना जुड़ा हुआ व्यक्ति. पल-पल देश की चिंता, समाज के सबसे नीचे तबके के लोगों की चिंता, उन्हें सम्मान दिलाने की चिंता, देश को दुनिया के मानचित्र पर अव्वल लाने की चिंता. न सिर्फ चिंता, बल्कि उसके लिए बढ़ती उम्र में भी पूरे देश में घूम-घूम कर नया भारत बनाने का प्रयास भी किया, युवाओं और बच्चों को दिशा देने का अभियान छेड़ दिया.
27 जुलाई को कलाम गुवाहाटी से आइआइएम के कार्यक्रम में भाग लेने जा रहे थे. आगे की गाड़ी में एक सुरक्षाकर्मी खड़ा होकर जा रहा था. डॉ कलाम को पीड़ा हुई. अपने सहयोगी से कहा- ‘वह सुरक्षाकर्मी बहुत देर से खड़ा है. थक जायेगा. उसे वायरलेस से कहो कि वह बैठ जाये.’ डॉ कलाम को बताया गया कि वह उन्हीं की सुरक्षा के लिए खड़ा होकर गाड़ी पर जा रहा है. वायरलेस से संपर्क नहीं हो सका. जब शिलांग में गाड़ी रुकी तो डॉ कलाम उस सुरक्षाकर्मी से मिलने उसके पास गये. उससे हाथ मिलाया और उससे इस बात के लिए क्षमा मांगी कि उनके कारण उस जवान को खड़ा रहना पड़ा. जवान अवाक् था. कलाम की विनम्रता ऐसी थी कि क्षमा मांगने पहुंच गये.
इतिहास में ऐसे उदाहरण विरले ही होंगे. गरीब से गरीब व्यक्ति का सम्मान तो मानो उनके खून में था.
गरीबी देखी थी, उससे संघर्ष किया था. कड़ी मेहनत के बल पर सर्वोच्च स्थान पाया था. बड़े पद पर रहने के बावजूद पुराने दिनों, पुराने साथियों और समाज के सबसे निचले पायदान पर बैठे गरीब लोगों के लिए उनके मन में खास इज्जत थी. राष्ट्रपति बनने के बाद जब वे पहली बार केरल गये, तो राजभवन में उनके सम्मान में भोज का आयोजन हुआ.
राष्ट्रपति की ओर से अतिथियों को बुलाना था. आम तौर पर ऐसे समारोह में उच्च पदों पर बैठे लोगों को आमंत्रित किया जाता है, लेकिन कलाम ने अपने एक पुराने परिचित मोची और एक छोटे होटल के मालिक को बुला कर यह सम्मान दिया. उस होटल में डॉ कलाम अकसर खाना खाने जाते थे. शीर्ष पदों पर पहुंच कर संबंधों को निभाने का यह अद्भुत गुण कलाम के कद को कई गुना बढ़ा देता है.
हर जीव-जंतु की वे चिंता करते थे. हर किसी के चेहरे पर मुस्कान रहे, यही तो वे चाहते थे. जब वे डीआरडीओ में थे तो किसी भवन की छत की मापी हो रही थी. किसी ने सुझाव दिया-छत की दीवार पर टूटे कांच के टुकड़े रख कर मापी ले ली जाये. डॉ कलाम ने यह कहते मना कर दिया कि उस दीवार पर चिड़िया बैठती है, कांच से घायल हो जायेगी. इस हद तक किसी जीव के बारे में कोई संत ही सोच सकता है.
15 जून, 2012 को वे ‘प्रभात खबर’ के दफ्तर में आये थे. अतिथि संपादक की भूमिका में. सभी संस्करणों के संपादकों से बात की थी, अपनी राय भी दी थी. अखबार में नकारात्मक न्यूज की जगह सकारात्मक न्यूज लेने और गांवों की खबरों को छापने का सुझाव दिया था.
कहा था- ‘ऐसी खबरों को चुनो, जिन्हें लोग पढ़ें तो निराश न हों.’ समाज में लोग अच्छा काम भी कर रहे हैं, जिनमें प्रतिभा है, उन्हें आगे बढ़ाने के लिए अखबार निकालने का सुझाव दिया था. जब वे खबरों का चयन कर रहे थे, उनका विजन साफ झलक रहा था. उन्होंने हर वर्ग को बौद्धिक तौर पर समृद्ध करने का प्रयास किया. जब भी वे जनप्रतिनिधियों से मिलते, उन्हें समझाते. लेकिन अफसोस है कि उनके तमाम प्रयास के बावजूद भारतीय राजनीति में अपेक्षाकृत सुधार नहीं हो सका.जीवन के अंतिम दिन भी अपने सहयोगी से उन्होंने कहा था- संसद में गतिरोध खत्म नहीं हो रहा.
इसके लिए कुछ करना चाहिए. लेकिन, उन्हें मौका नहीं मिला. जीवन के एक-एक मिनट को वे कीमती मानते थे. इसलिए चाहते थे कि संसद में समय का सदुपयोग हो, सार्थक बहस हो, जिससे देश गढ़ने में मदद हो. जीवन के अंतिम क्षणों में भी वे देश की चिंता करते रहे.
सांसदों-विधायकों के पास एक अवसर आया है. संसद-विधानसभाओं में माननीय सदस्य जैसा आचरण करते हैं, अगर उसमें सुधार ला पायें और जैसा कलाम चाहते थे, उस रास्ते पर चलें, तो राजनीति का स्तर बढ़ सकता है. संसद की गरिमा बढ़ सकती है. यही तो कलाम सोचते थे. ऐसे महान व्यक्ति की कमी हर किसी को खलेगी.
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