समय से पहले चेत जाना बेहद जरूरी
पेड़-पौधे सृष्टि के संपूर्ण प्राणिजगत के जीवन का मूल आधार हैं. पेड़-पौधों की वजह से ही हमें जीने के जरूरी तीनों मूलभूत तत्वों- वायु, जल और भोजन की प्राप्ति होती है. बड़े ही दुर्भाग्य की बात है कि सब कुछ जानते हुए भी पढ़े-लिखे तथा ज्ञानी समाज अपने ही पैरों पर कुल्हाड़ी मारे जा रहा […]
पेड़-पौधे सृष्टि के संपूर्ण प्राणिजगत के जीवन का मूल आधार हैं. पेड़-पौधों की वजह से ही हमें जीने के जरूरी तीनों मूलभूत तत्वों- वायु, जल और भोजन की प्राप्ति होती है. बड़े ही दुर्भाग्य की बात है कि सब कुछ जानते हुए भी पढ़े-लिखे तथा ज्ञानी समाज अपने ही पैरों पर कुल्हाड़ी मारे जा रहा है.
आज विकास, औद्योगीकरण और शहरीकरण के नाम पर निरंतर जंगलों की कटाई हो रही है. पर्वतों की बेतरतीब खुदाई की जा रही है. हम अपने चारों ओर कंक्रीट के जंगल खड़े करते जा रहे हैं, जो अत्यंत चिंताजनक है. प्रकृति से बेतहाशा छेड़छाड़ के कारण प्राकृतिक असंतुलन बढ़ता जा रहा है.
जंगल खत्म होने से पर्यावरण के संतुलन में सहायक कई प्रकार के जीव-जंतु विलुप्त हो चुके हैं, तो कई विलुप्तावस्था में हैं. ऊपर से हर साल कहीं सूखा, तो कहीं बाढ़ का प्रकोप. कहीं सुनामी, तो कहीं भूकंप का खतरा बना ही रहता है.
इन भयंकर विनाशकारी प्राकृतिक आपदाओं से प्रकृति हमें समय-समय पर आगाह करती है, मगर हम किसी कीमत पर चेतने को तैयार ही नहीं हैं. पेड़-पौधों के अभाव में धरती के तापमान में भी वृद्धि हो रही है, जिसके चलते ग्लोबल वार्मिग का खतरा मुंह बाये खड़ा है. हिमालय और अंटार्कटिका में बर्फ का पिघलना जारी है.
इससे समुद्र का जलस्तर लगातार बढ़ रहा है.इन सबसे अनभिज्ञ, अपनी ही धुन में मग्न इंसान अपना ही दुश्मन बन विकास के नाम पर अपनी ही विनाश लीला रच रहा है. इस गंभीर मसले पर सरकार, मीडिया, जनता हर किसी को समान रूप से ध्यान देने की जरूरत है. अब भी वक्त है. पेड़-पौधों के महत्व को समङों. भस्मासुर न बनें. कहीं ऐसा न हो, मानव जाति खुद ही विलुप्ति के कगार पर आ जाये.
प्रसेनजीत महतो, सरायकेला