बच्चों को सही दिशा देने का करें प्रयास

आज की युवा पीढ़ी इतना अधिक एकाकीपन में क्यों जीना चाहती है? इसके लिए कहीं हम खुद ही जिम्मेदार तो नहीं हैं? बच्चे अक्सर किशोरावस्था में कदम रखते ही समझदार बनने की कोशिश करने लगते हैं, जबकि उनकी उमर इसकी इजाजत नहीं देती है. वे ऐसा अक्सर संभवत: इसलिए भी करने लगते हैं, क्योंकि उन्हें […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | August 7, 2015 11:51 PM
आज की युवा पीढ़ी इतना अधिक एकाकीपन में क्यों जीना चाहती है? इसके लिए कहीं हम खुद ही जिम्मेदार तो नहीं हैं? बच्चे अक्सर किशोरावस्था में कदम रखते ही समझदार बनने की कोशिश करने लगते हैं, जबकि उनकी उमर इसकी इजाजत नहीं देती है.
वे ऐसा अक्सर संभवत: इसलिए भी करने लगते हैं, क्योंकि उन्हें अपने माता-पिता का भरपूर सान्निध्य नहीं मिल पाता.
यह दुनिया का समाजशास्त्र ही नहीं, बल्कि देश-दुनिया के मनोवैज्ञानिक भी मानते हैं कि अभिभावकों को अपने बच्चों के साथ रहना बेहद जरूरी होता है. यदि वे उन्हें अकेला छोड़ देते हैं, तो उनमें अवसाद उत्पन्न होने लगता है और वे एकाकीपन के शिकार हो जाते हैं. कामकाजी महिलाओं के बच्चों के साथ भी यही हो रहा है.
कामकाजी महिलाओं के बच्चे बाल्यावस्था से जब किशारोवस्था में कदम रखते हैं, तो मां के रूप में मिलने वाला एक अच्छे दोस्त या सलाहकार की कमी होती है. ऐसे समय में उन बच्चों को एक अच्छे दोस्त की जरूरत होती है, जो समाज से नहीं मिल पाता है. ऐसे में या तो वे एकाकी रहना ज्यादा पसंद करते हैं या फिर अच्छे दोस्त की तलाश में राह भटक जाते हैं.
ऐसे ही समय में किशारों की मानसिक स्थिति को समझने की जरूरत होती है. ऐसे बच्चों को एक ऐसी मां की जरूरत होती है, जो उन्हें अधिक से अधिक वक्त देकर उनके दुख-दर्द को समझ सके.
उनके साथ घुल-मिल कर उनके तनाव को दूर करने का प्रयास करे. किशारावस्था में उचित संस्कार और सही शिक्षा का मिलना भी बेहद जरूरी है. बच्चों पर अभिभावकों का नियंत्रण नहीं होने की वजह से भी किशोरावस्था में अक्सर लोग राह भटक जाते हैं. यदि किशारों को नयी दिशा देनी है, तो अच्छी परवरिश भी करनी होगी.
मनोरमा सिंह, जमशेदपुर

Next Article

Exit mobile version