क्रिकेट का कलंक

संसद के मॉनसून सत्र में सत्ता पक्ष और विपक्ष के टकराव के कारण जरूरी कामकाज लगातार बाधित हुआ है. विदेश मंत्री सुषमा स्वराज, राजस्थान की मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे और मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के इस्तीफे पर अड़ी कांग्रेस तथा उसके साथ खड़े अन्य विपक्षी दल, दोनों सदनों को सुचारु रूप से चलने […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | August 7, 2015 11:53 PM
संसद के मॉनसून सत्र में सत्ता पक्ष और विपक्ष के टकराव के कारण जरूरी कामकाज लगातार बाधित हुआ है. विदेश मंत्री सुषमा स्वराज, राजस्थान की मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे और मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के इस्तीफे पर अड़ी कांग्रेस तथा उसके साथ खड़े अन्य विपक्षी दल, दोनों सदनों को सुचारु रूप से चलने देने के सरकार के निवेदन को लगातार अनसुना कर रहे हैं.
इस बीच विदेश मंत्री सुषमा स्वराज ने पूर्व आइपीएल क्रिकेट कमिश्नर ललित मोदी को कथित रूप से मदद करने के आरोपों को खारिज करते हुए अपनी स्थिति स्पष्ट कर दी है. सुषमा की सफाई से अगर विपक्ष असंतुष्ट है, तो उसे आरोपों के पक्ष में ठोस सबूत संसद और जनता के सामने रखना चाहिए. लेकिन इस हंगामे के बीच क्रिकेट में भ्रष्टाचार की गहराई तक फैली जड़ों से हमारा ध्यान विमुख नहीं होना चाहिए.
ललित मोदी द्वारा कथित रूप से की गयीं अनियमितताएं बताती हैं कि क्रिकेट के प्रबंधन के तौर-तरीकों में व्यापक खामियां हैं. मोदी की मदद करने या उनके लाभार्थी होने के आरोप कई अन्य नेताओं पर भी हैं. ये नेता किसी एक दल के नहीं, कई प्रमुख राजनीतिक दलों से संबद्ध हैं.
भारतीय क्रिकेट कंट्रोल बोर्ड से लेकर राज्यस्तरीय संगठनों तक के प्रबंधन में विभिन्न दलों के राजनेता और नौकरशाह शामिल हैं. आइपीएल में भ्रष्टाचार क्रिकेट बोर्ड के तौर-तरीकों के साथ-साथ सट्टेबाजी, हवाला, ठेकों में घपला जैसे कई आयामों से जुड़ा है. इस संबंध में चल रही जांच और बोर्ड में सुधार की कोशिशों को तेज और प्रभावी बनाने की जरूरत है.
क्रिकेट में फैले भ्रष्टाचार के गंभीर मुद्दे को सिर्फ दो लोगों के त्यागपत्र तक सीमित कर देना मामले की गंभीरता को कम करना होगा. ललित मोदी से जुड़े पूरे प्रकरण पर एक सार्थक एवं व्यापक बहस होगी, तभी विपक्ष सरकार के तर्को की आलोचना कर सकेगा और अपनी बात मजबूती के साथ संसद और देश के सामने प्रस्तुत कर सकेगा.
संसद में हंगामा जारी रहने पर यह नकारात्मक संदेश भी निकल सकता है कि राजनेता बहस को सिर्फ सुषमा और वसुंधरा के इस्तीफे तक सीमित रख कर राजनीति और क्रिकेट की साठगांठ को चर्चा के केंद्र में नहीं आने देना चाहते हैं.
राजनीतिक आरोप-प्रत्यारोप लोकतांत्रिक प्रक्रिया का अहम हिस्सा हैं, पर वे स्वस्थ और मर्यादित बहसों का विकल्प नहीं हो सकते हैं. जरूरी है कि दोनों पक्ष परस्पर नरमी के भाव के साथ क्रिकेट में भ्रष्टाचार पर गंभीरता से विचार कर इसके निवारण का प्रयास करें.

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