अपने अंदर के हीरे की करें तलाश
एक आत्मज्ञानी मनुष्य के लिए पूजा-पाठ, कर्मकांड, यज्ञ, साधना तथा भगवान की भक्तिकी कोई आवश्यकता नहीं है. उसके लिए तो उसकी आत्मा ही मार्गदर्शन के लिए पर्याप्त है. आज लोग शांति की प्राप्ति के लिए विभिन्न धर्मस्थानों और धर्मगुरुओं की शरण में जाते हैं, लेकिन वे कभी अपने अंदर झांक कर नहीं देखते. यदि वे […]
एक आत्मज्ञानी मनुष्य के लिए पूजा-पाठ, कर्मकांड, यज्ञ, साधना तथा भगवान की भक्तिकी कोई आवश्यकता नहीं है. उसके लिए तो उसकी आत्मा ही मार्गदर्शन के लिए पर्याप्त है.
आज लोग शांति की प्राप्ति के लिए विभिन्न धर्मस्थानों और धर्मगुरुओं की शरण में जाते हैं, लेकिन वे कभी अपने अंदर झांक कर नहीं देखते. यदि वे अपने अंदर झांक कर देखना शुरू कर देंगे, तो उन्हें अपने अंदर का हीरा खुद-ब-खुद मिल जायेगा. जिस मार्गदर्शन के लिए लोग धर्मगुरुओं की शरण में जाते हैं, वही उन्हें कुमार्ग पर भटकाने का प्रयास करता है.
गीता में खुद भगवान श्रीकृष्ण आत्मज्ञानी को ही सच्च ज्ञानी बताते हैं. यह बात पूरी तरह सच है. यदि लोग अपने धर्मग्रंथों की बातों का ही सही मायने में अनुसरण करें, तो उन्हें कहीं जाने की जरूरत ही नहीं पड़ेगी और न ही पाखंडियों का जन्म होगा.
चेतलाल रहीम, मांडू