सतत विकास के लिए आय व खपत जरूरी

महेश झा संपादक, डॉयचे वेले हिंदी संयुक्त राष्ट्र के सदस्यों ने सतत विकास के जो 17 लक्ष्य तय किये हैं, उनमें लैंगिक बराबरी, भुखमरी की समाप्ति, शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य और पर्यावरण संरक्षण शामिल है. नये लक्ष्य सहस्नब्दी लक्ष्यों को पूरा करने में मिले अनुभवों के आधार पर तय किये गये हैं. पिछले 15 वर्षो […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | August 11, 2015 11:47 PM
महेश झा
संपादक, डॉयचे वेले हिंदी
संयुक्त राष्ट्र के सदस्यों ने सतत विकास के जो 17 लक्ष्य तय किये हैं, उनमें लैंगिक बराबरी, भुखमरी की समाप्ति, शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य और पर्यावरण संरक्षण शामिल है.
नये लक्ष्य सहस्नब्दी लक्ष्यों को पूरा करने में मिले अनुभवों के आधार पर तय किये गये हैं. पिछले 15 वर्षो में बहुत से देशों ने गरीबी कम करने और लोगों को स्वास्थ्य सेवा उपलब्ध कराने में महत्वपूर्ण सफलता पायी है.
सतत विकास के जो लक्ष्य इस साल तय किये गये हैं, वे तभी पूरे हो सकेंगे, जब संभावनाओं में बराबरी की गारंटी हो. मसलन, लैंगिक बराबरी के लिए जरूरी है हर लड़की और हर लड़के को शिक्षा और उसके बाद रोजगार की संभावना मिले.
काम से गुजारा करने लायक वेतन ही भुखमरी खत्म करने और स्वास्थ्य सेवा की गारंटी कर पायेगा. और यह सब होने के बाद ही लोग पर्यावरण संरक्षण को गंभीरता से ले पायेंगे और उस पर जरूरी खर्च भी कर पायेंगे. इस समय यह सब मृगमरीचिका समान है. यदि कुछ देश कुछ कदम उठाते भी हैं, तो संभावनाओं के अभाव में उनका लाभ कोई और उठा ले जाता है.
सहस्नब्दी कार्यक्रम के तहत पिछले पंद्रह वर्षो में एक अरब से ज्यादा लोग गरीबी से बाहर निकाले गये हैं. संयुक्त राष्ट्र की एक रिपोर्ट में इसमें चीन व भारत की भूमिका के लिए उनकी सराहना की गयी है.
इस कार्यक्रम ने दुनिया में अत्यंत गरीबों की संख्या घटाने के लिए एक उत्साह पैदा किया है. लेकिन स्वावलंबी विकास के लिए सरकारों को और मेहनत करनी होगी और उसका ठोस ढांचा तैयार करना होगा.
भारत में भी दस या पांच रुपये में पेटभर खाना खा सकने की बहस सबको याद होगी. भारत सरकार के अनुसार, 2012 में देश की लगभग 30 प्रतिशत आबादी गरीब थी. 2009 के मुकाबले 9 करोड़ से ज्यादा लोगों को गरीबी से बाहर निकाला गया.
पियू रिसर्च सेंटर के अनुसार, पिछले दशक में बहुत से लोग गरीबी से बाहर निकले हैं, लेकिन वे निम्न आय वर्ग तक ही पहुंच पाये हैं. रोजाना 10-20 डॉलर कमानेवालों की संख्या दस वर्षो में एक से बढ़ कर सिर्फ तीन प्रतिशत हुई है. ढाई डॉलर प्रतिदिन की आय की गरीबी रेखा पर पौष्टिक खाना और दूसरी जरूरतें पूरी करना असंभव है.
चीन के आर्थिक विकास की वजह से 1990 के बाद से पूर्व एशिया में गरीबों की संख्या 61 प्रतिशत से गिर कर 4 प्रतिशत रह गयी है. भारत ने भी अच्छे नतीजे दिये हैं. एक बानगी भारत के ताजा सामाजिक आर्थिक और जाति जनगणना से मिलती है.
रिपोर्ट के लिए 30 करोड़ लोगों का सर्वे किया गया, जिनमें 73 प्रतिशत गांवों में रहते हैं. इनमें से सिर्फ 5 प्रतिशत टैक्स देते हैं, सिर्फ ढाई प्रतिशत के पास गाड़ी है और सिर्फ दस प्रतिशत के पास नौकरी है. भारत काम करनेवालों को पर्याप्त आय की गारंटी देने के बदले मजदूरी पर रख कर विकास चाहता है.
लेकिन विकास के लिए खपत जरूरी है. खपत के लिए आय और आय के लिए रोजगार. सरकार को सब्सिडी का तंत्र चलाकर लोगों को गरीब रखने के बदले उन्हें स्वावलंबी बनाने की नीति को लागू करना होगा, तभी 2030 तक सम्यक विकास का ताजा लक्ष्य पूरा हो पायेगा.

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