जीएसटी बिल पर पढ़े शेयर मंथन के संपादक राजीव रंजन झा का लेख
राजीव रंजन झा संपादक, शेयर मंथन संसद के मॉनसून सत्र में कांग्रेस की आक्रामकता नये उफान पर है और इसमें सबसे खास पहलू यह है कि खुद कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी और उपाध्यक्ष राहुल गांधी ने इस आक्रामकता की कमान संभाल रखी है. लोकतंत्र में विपक्ष आक्रामक तेवर के साथ सत्तापक्ष को घेरने की कोशिश […]
राजीव रंजन झा
संपादक, शेयर मंथन
संसद के मॉनसून सत्र में कांग्रेस की आक्रामकता नये उफान पर है और इसमें सबसे खास पहलू यह है कि खुद कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी और उपाध्यक्ष राहुल गांधी ने इस आक्रामकता की कमान संभाल रखी है.
लोकतंत्र में विपक्ष आक्रामक तेवर के साथ सत्तापक्ष को घेरने की कोशिश करे, यह बिल्कुल स्वाभाविक है, लेकिन ऐसा लगता है कि कांग्रेस इस समय आक्रामकता के अपने ही जाल में उलझ गयी है. जहां एक तरफ लोकसभा में अपनी बेहद कम संख्या की भरपाई वह अतिरेकी आक्रामकता से करना चाहती है, वहीं राज्यसभा में विपक्ष के बहुमत को वह सरकार के हर कदम में रोड़े अटकाने के लिए इस्तेमाल कर रही है.
कांग्रेस गतिरोध के ऐसे बिंदु पर आ गयी है, जहां खुद विपक्षी दलों को उसे सावधान करना पड़ रहा है. कांग्रेस से अकसर नरम संबंध रखनेवाले मुलायम सिंह जैसे वरिष्ठ नेता ने उसे सचेत किया है कि लोकतंत्र में मनमानी नहीं चलती. अब अगर इन संकेतों को नजरअंदाज करके कांग्रेस ने अपना हठी रवैया जारी रखा, तो बहुत संभव है कि संसद में वह अलग-थलग पड़ जाये.
जो ताजा खबरें आ रही हैं, उनसे लगता है कि जीएसटी विधेयक पर समर्थन के लिए केंद्र सरकार ने ज्यादातर विपक्षी दलों को मना लिया है. थोड़ी-बहुत मनुहार अन्नाद्रमुक की करनी पड़ रही है, लेकिन जयललिता से खुद नरेंद्र मोदी की मुलाकात के बाद यह माना जा रहा है कि थोड़े मान-मनौवल के बाद अन्नाद्रमुक का भी समर्थन मिल जायेगा. इसके बावजूद संविधान संशोधन विधेयक पारित करने के लिए जरूरी है कि राज्यसभा में सरकार दो-तिहाई बहुमत हासिल कर पाये. फिलहाल कांग्रेस के समर्थन के बिना ऐसा होता मुश्किल लगता है.
आज अरुण जेटली ने कांग्रेस के रवैये पर तीखी प्रतिक्रिया जताते हुए कहा कि जीएसटी पर एक तरह से राष्ट्रीय सहमति पहले ही बन चुकी है. लोकसभा में यह विधेयक पारित हो चुका है. राज्यसभा की चयन समिति ने जीएसटी पर विचार करके प्रस्तावित संशोधनों के साथ अपनी सिफारिशें दे दी हैं. सरकार उन संशोधनों पर राजी है. यानी जिस ऐतिहासिक कर सुधार के लिए वर्षो से तैयारी चल रही थी, अब कांग्रेस की जिद के कारण इसके फिर से टल जाने का खतरा बन चुका है.
सरकार ने पहले ही घोषणा कर रखी है कि वह 1 अप्रैल, 2016 से जीएसटी को लागू कर देना चाहती है. लेकिन, मॉनसून सत्र में इसके पारित नहीं हो पाने पर इस समय-सीमा का पालन कर पाना शायद संभव नहीं रह जायेगा.
दिलचस्प यह है कि जीएसटी विधेयक पर कांग्रेस का कोई सैद्धांतिक विरोध नहीं है, लेकिन केवल सदन नहीं चलने देने की राजनीतिक जिद के तहत वह इसमें अड़ंगा डाल रही है. कांग्रेस राजनीतिक प्रतिशोध की लड़ाई लड़ रही है. वह भाजपा के आचरण की दुहाई दे रही है कि विपक्ष के रूप में भाजपा ने भी तो बारंबार सदन ठप करने की रणनीति अपनायी थी. तो क्या उस समय भाजपा सही थी? या वह भाजपा की उस समय की गलती की नकल उतारना चाहती है?
दरअसल, कांग्रेस ने सदन को लगातार ठप कर देने के ब्रह्मास्त्र का इस्तेमाल ऐसे प्रसंग में किया है, जो उसे राजनीतिक रूप से कोई खास बढ़त नहीं देनेवाला है.
ललित मोदी को सुषमा स्वराज की कथित मदद के आरोप की तुलना अगर कांग्रेस अपने कार्यकाल के कॉमनवेल्थ, 2जी और कोयला घोटाले से कर रही है, तो यही कहना होगा कि उसके रणनीतिकार बेहद भ्रम में हैं. हास्यास्पद यह है कि आक्रामक दिखने के चक्कर में खुद सोनिया और राहुल गांधी सदन के अंदर नारे लगा रहे हैं, जिससे कांग्रेस की भद पिटने का असर सीधे शीर्ष नेतृत्व तक जा रहा है.
कांग्रेस के विरोध के खोखलेपन के कारण ही अरुण जेटली को यह आरोप लगाने का मौका मिला है कि कांग्रेस ने जीएसटी को रोकने के लिए ही सुषमा स्वराज और दो मुख्यमंत्रियों पर आरोपों के बहाने से गतिरोध पैदा किया. जेटली यह संदेश दे रहे हैं कि कांग्रेस देश के विकास का रास्ता रोकना चाहती है. कांग्रेस की ईर्ष्या स्वाभाविक है. यूपीए के 10 वर्षो के दौरान कांग्रेस जीएसटी के प्रावधानों पर आम सहमति नहीं बना सकी और इसे लागू करने की तारीखें टलती रहीं. यूपीए ने इसके लिए जमीन तो बनायी, लेकिन फसल काटने की स्थिति में वह नहीं आ पायी.
अब एनडीए सरकार ने इसे लेकर राज्यों के साथ आम सहमति बनाने का काम पूरा कर लिया है. अब अगर वह इसे जल्दी लागू करा ले, तो एक ऐतिहासिक कर सुधार का श्रेय उसके खाते में आयेगा. साथ ही यह आम मान्यता है कि जीएसटी लागू करने से देश की आर्थिक विकास दर में तेजी आयेगी.
विकास मोदी सरकार का प्रमुख राजनीतिक नारा है. यानी जीएसटी लागू करने से मोदी सरकार को राजनीतिक बढ़त मिलेगी. ऐसे में कांग्रेस क्यों चाहेगी कि मोदी सरकार इतनी आसानी से यह लड्डू अपनी झोली में डाल पाये? हालांकि, कांग्रेस की ऐसी बदनीयती है या नहीं, यह कहना तो संभव नहीं है. लेकिन, अब भाजपा इसी बात का जोर-शोर से ढिंढोरा पीटेगी, इसमें कोई शक नहीं. मंगलवार को राज्यसभा की कार्यवाही फिर से स्थगित होने के बाद अरुण जेटली के तीखे बयान इसी रणनीति की बानगी पेश करते हैं.
अगर कांग्रेस लगातार संसद ठप रखने की इस रणनीति पर आगे भी चलती रही, तो बहुत संभव है कि धीरे-धीरे बाकी विपक्षी दल उससे किनारा कर लें और कम-से-कम जीएसटी के मुद्दे पर उसका साथ छोड़ दें. ऐसा होने के बाद अगर कांग्रेस झुकती है और जीएसटी पारित कराने में बेमन से सहयोग देती है, तो उसकी किरकिरी ही होगी.
अगर वह अपनी जिद से जीएसटी को बिल्कुल रोक ही देती है और ऐसी स्थिति ला देती है कि 1 अप्रैल, 2016 से इसका लागू हो पाना संभव नहीं रह जाये, तो उसे राजनीतिक रूप से नुकसान ही होगा.
उसने विरोध के लिए जो मुद्दे चुने हैं, उनकी तुलना कॉमनवेल्थ, 2जी और कोयला घोटाले से तो जाने दें, पवन बंसल और अश्विनी कुमार के प्रसंगों से भी नहीं की जा सकती. पवन बंसल के भांजे को उन्हीं की सरकार रहते हुए सीबीआइ ने गिरफ्तार किया था और उस भांजे के साथ बंसल की संलिप्तता जगजाहिर थी. अश्विनी कुमार को कोयला घोटाले की सीबीआइ जांच में हस्तक्षेप करने के लिए खुद सुप्रीम कोर्ट ने फटकार लगायी थी. कांग्रेस के इन सारे प्रसंगों में उसके विरुद्ध काफी उग्र जनमत बन चुका था.
इसके बाद भी उस समय जनता का एक बड़ा हिस्सा सदन ठप करने के भाजपाई तरीके से सहमत नहीं था. हालांकि, यह कतई नहीं कहा जा सकता कि भाजपा के विरुद्ध वैसा ही जनमत बना है, जैसा तब कांग्रेस के खिलाफ था. ऐसे में कांग्रेस का यह अतिरेकी कदम राजनीतिक रूप से नुकसानदेह ही होनेवाला है.