स्मार्ट सिटी : भारत दुर्दशा देखी न जाई
प्रो प्रदीप भार्गव निदेशक, जीबीपीएसएसआइ राजा अपने ऑफिस से अपनी चमकती स्मार्ट सिटी को निहार रहा था. राजा ने चीफ सांख्यिकी अधिकारी अन्नत को बुला कर पूछा कि स्मार्ट सिटी का क्या सैंपल होगा, कितने फ्लैट, कितने मॉल, कितनी पार्किग वगैरह, क्या-क्या होंगे? अन्नत साहब चकराये, यह तो उनके दिमाग में था ही नहीं. बोले, […]
प्रो प्रदीप भार्गव
निदेशक, जीबीपीएसएसआइ
राजा अपने ऑफिस से अपनी चमकती स्मार्ट सिटी को निहार रहा था. राजा ने चीफ सांख्यिकी अधिकारी अन्नत को बुला कर पूछा कि स्मार्ट सिटी का क्या सैंपल होगा, कितने फ्लैट, कितने मॉल, कितनी पार्किग वगैरह, क्या-क्या होंगे?
अन्नत साहब चकराये, यह तो उनके दिमाग में था ही नहीं. बोले, सर आपको एक महीने में रिपोर्ट दूंगा. राजा बोला, नहीं अगले हफ्ते चाहिए. मीटिंग खत्म हुई!
अन्नत के जाते ही बेताल राजा के कंधों पर आ बैठा. बोला, चल मुङो भारत दर्शन करा और पहले अपनी स्मार्ट सिटी के दक्षिणी छोर पर लेकर चल. रास्ते में बोला, नहीं तो तेरे सिर के हजार टुकड़े हो जायेंगे.
स्मार्ट सिटी के दक्षिण में झुग्गी बस्तियां थीं, बीच-बीच में स्मार्ट अट्टालिकाएं भी थीं. बेताल ने कहा देश में करीब 88 लाख परिवार, 33,000 झुगियों में रहते हैं. शहर में रह रहे दस में से एक परिवार झुग्गी में रहता है. जैसे-जैसे गांव खाली होते जा रहे हैं, इनकी संख्या बढ़ती जा रही है.
मरते क्या न करते. शहर के नियम तोड़ने पड़ते हैं. पैसा-पैसा जोड़ पक्का ठिया भी कर लिया, पर डर में जीते हैं कि कब बुलडोजर चल जाये. झुग्गीयों में शौचालय नहीं हैं. हा-हा भारत दुर्दशा देखी न जाई. लेकिन सरकार देखती रहती है..
बेताल बोला- राजन, तू तो स्मार्ट सिटी पर स्मार्ट सिटी बनाये जा रहा है. माना यह अच्छी बात है. लोग भी गांव छोड़ कर शहर आने को बेताब हैं. अपने बच्चों को पढ़ा-लिखा रहे हैं, कि कहीं तो उन्हें नौकरी मिल जाये. किसानी में कोई दम न रहा. अब गांव खाली होकर शहर बस जायेंगे. क्या इसी को विकास कहते हैं राजन? हमारे गंवई लोक का क्या होगा? क्या यह पलायन रुकना नहीं चाहिए राजन? हमें शहर चाहिए या गांव? मेरे प्रश्नों का तुमने यदि उत्तर नहीं दिया, तो तेरे सिर के हजार टुकड़े हो जायेंगे.
राजा बेताल को कंधे पर लादे-लादे कुछ दूर तक चला. किसी से बात तो नहीं कर सकता था, पर उसने मोबाइल के वॉट्सएप्प पर नीति आयोग के सदस्य से सलाह ली. विद्वान सदस्य ने बताया कि वेदांत दर्शन कहता है कि न तू कुछ कर सकता है न मैं.
सरकार या नीति आयोग को बीच में नहीं पड़ना चाहिए. सब कुछ लोगों पर, या बाजार पर छोड़ देना चाहिए. यही वेदांत की शिक्षा है.
राजन बोला, प्रधानमंत्री ने कई एमओयू कर लिये हैं और कई पाइपलाइन में हैं. विदेश से बहुत पैसा आ रहा है. उससे कल-कारखाने खुलेंगे, बाजार लोगों को नयी दिशा देगा. स्थितियां बदलेंगी और हमारी संस्कृति अमेरिका जैसी या उससे भी अच्छी हो जायेगी. बड़ा बाजार होगा, सबके पास नौकरी, कार, एसी, पैसा सब होगा. पूरा राष्ट्र पैसे का इंतजार कर रहा है और साथ में योग-साधना भी.
इससे हमारी संस्कृति भी बची रहेगी. लेकिन हां, इस एनएसएसओ को बंद करना पड़ेगा, (यह बीच-बीच में आईना दिखाता रहता है, राजा धीरे से बुदबुदाया) यह फालतू के आंकड़े इकट्ठा करता है, जो देश के विकास में बाधक है.
राजा का मौन टूटने पर बेताल पुन: पेड़ पर जाकर टंग गया.एनएसएसओ रहे न रहे, सांख्यिकी दिवस तो हर साल आयेगा. हमें-आपको कल्कि अवतार बनना होगा. इंतजार बेमानी है.