पूरा देश 69वां स्वतंत्रता दिवस मना रहा है. चारों ओर विशेष इंतजाम किये गये हैं. इस बीच मध्यम और गरीब वर्ग के लोगों के जेहन में एक सवाल जरूर उठता है कि क्या हम सही मायने में आजाद हैं? किताब के पन्नों और बुजुर्गो की जुबानी कहानियां हमें अंगरेजों की यातनाएं बताती हैं.
उनको भारत से गये जमाना बीत गया, मगर देश के गरीब परिवारों के जीवन में आज तक खुशियां नहीं आयीं. पहले भारत गोरों की जंजीरों से बंधा था. उनके इशारों पर काम होता है. आज आजादी के 69 साल बाद भी देश में इशारों पर ही काम होता है, मगर अब विदेशी नहीं, बल्कि अपने ही घर के लोग यह काम कर रहे हैं.
आज स्थिति यह है कि गुलामी के वक्त में अंगरेजों ने जितना इस देश को नहीं लूटा, उससे कहीं अधिक घरवालों ने ही लूटने का काम किया है. हमें एक फिर से जागरूक होना होगा, तभी भारतीय आजाद होंगे.
हरिश्चंद्र महतो, बेलपोस, प सिंहभूम