हिंद महासागर में नयी बयार
दीपक मलिक, विचारक व विश्लेषक श्रीलंका दक्षिण एशिया के नक्शे पर एक नये किस्म के जनतंत्र के रूप में उभर रहा है. इस क्षेत्र के अन्य देशों के मुकाबले श्रीलंका में वैश्वीकरण की बयार पहले ही आ चुकी थी जिसका असर कोलंबो शहर पर दिखता है. कोलंबो दक्षिण एशिया का सबसे खूबसूरत व समृद्ध शहर […]
दीपक मलिक, विचारक व विश्लेषक
श्रीलंका दक्षिण एशिया के नक्शे पर एक नये किस्म के जनतंत्र के रूप में उभर रहा है. इस क्षेत्र के अन्य देशों के मुकाबले श्रीलंका में वैश्वीकरण की बयार पहले ही आ चुकी थी जिसका असर कोलंबो शहर पर दिखता है. कोलंबो दक्षिण एशिया का सबसे खूबसूरत व समृद्ध शहर लगता है. यह विश्व के किसी भी चमकते हुए महानगर से प्रतिद्वंद्विता कर सकता है. पर इस चमकते हुए शहर में राजनीतिक अस्थिरता और खूनी गृहयुद्ध का भी एक लंबा इतिहास रहा है.
श्रीलंका में जो राजनीतिक स्थिरता आयी है, उसके शुरुआती कदम में ही एक स्वस्थ, स्वतंत्र और बेहद संवेदनशील जनतांत्रिक चेतना उभरती दिखती है. जिसकी एक तसवीर नेपाल और बांग्लादेश में भी नजर आती है. बांग्लादेश में शेख हसीना ने धुर दक्षिणपंथी और धार्मिक कट्टरपंथ के सहारे वोट की राजनीति पर सवार खालिदा जिया को पिछले चुनाव में पराजित किया. नेपाल में नेपाली कांग्रेस ने सुशील कोइराला के नेतृत्व में छद्म माओवादियों को पराजित किया. माओवादी शुरुआत में नेपाल के पुराने राजतंत्रीय-सामंती ढांचे के विकल्प के रूप में उभरे, पर जल्दी ही वे आपसी गुटबाजी, बेलगाम शासन और नायकवाद के हथकंडों में लिप्त हो गये, जिसका परिणाम था पराजय.
श्रीलंका संभवत: इन तीनों दक्षिण एशियाई देशों में सबसे अधिक जनचेतना की परीक्षण भूमि है. बीते जनवरी माह में हुए राष्ट्रपति चुनाव में चौंकानेवाली घटना हुई. महिंद्र राजपक्षे, जिन पर लिट्टे पर विजयश्री का सेहरा बांधा जाता है, चुनाव हार गये. श्रीलंका में संसदीय जनतंत्र का ढांचा 70 के दशक के अंत में राष्ट्रपति व्यवस्था में बदल गया. इस मायने में पिछला चुनाव, जिसमें महिंद्र राजपक्षे के भारी-भरकम कद के बावजूद मैत्रीपाला सिरिसेना चुने गये, निश्चित तौर पर श्रीलंका की जनता की बढ़ी हुई समझ का परिचायक है. यहां तक कि सिंहली जनता के बहुमत ने भी राजपक्षे के सिंहलीवाद को नकार दिया. ‘डेली न्यूज’ जैसे महत्वपूर्ण दैनिक ने राजपक्षे को फासीवादी तानाशाह की संज्ञा दी. राजपक्षे पर परिवारवाद, तानाशाही और चीन से अपने चुनाव में आर्थिक मदद और सरकारी धन के दुरुपयोग के आरोप हैं. 2014 तक वे राष्ट्रपति थे. उन्होंने सरकारी संसाधनों का अपने चुनाव में मनमाना खर्च किया. राष्ट्रीय टेलीविजन को बाध्य किया था कि वह केवल उन्हीं के प्रचार में लगे. इस 17 अगस्त के संसदीय चुनाव में परिस्थिति बदल गयी है. इस बार सभी दलों को सरकारी टीवी पर जगह मिली.
श्रीलंका मे हमबनटोटा बंदरगाह का निर्माण चीन की एक सरकारी कंपनी कर रही है. आरोप है कि इस कंपनी ने राजपक्षे को राष्ट्रपति चुनाव के अवसर पर 11.4 करोड़ रुपये दान खाते में दिये. कंपनी के खाते से फ्रांसिस्को नामक व्यक्ति के नाम पर चेक दिया गया. फ्रांसिस्को ने राजपक्षे के चुनावी अभियान में यह रकम खर्च की. लिट्टे के खिलाफ सैनिक अभियान फील्ड मार्शल फोनेस्का ने चलाया था. उनका दावा है कि राजपक्षे की कोई भूमिका लिट्टे के खात्मे में नहीं रही. असली लड़ाई तो श्रीलंका की सेना ने लड़ी. 2015 के संसदीय चुनाव में फील्ड मार्शल फोनेस्का ने एक नयी पार्टी गठित की है और वे चुनाव मैदान में हैं. इस चुनाव का भारत के लिए भी खास महत्व है क्योंकि राजपक्षे ने भारत विरोध का रास्ता अख्तियार किया था. इसके पीछे चीन का प्रोत्साहन भी है. श्रीलंका के राजनीतिक परिप्रेक्ष्य में भारत विरोध के लिए तमिलनाडु के मुख्य राजनीतिक दल बहुत हद तक जिम्मेदार हैं. चूंकि तमिलनाडु की राजनीति में श्रीलंका में तमिल प्रश्न लंबे समय से एजेंडे में रहा है. सभी तमिल राजनीतिक दल, कांग्रेस और कम्युनिस्ट जैसे राष्ट्रीय दलों को छोड़ कर, श्रीलंका में तमिल समस्या को सुलझाने में तमिल टाइगर्स की नकारात्मक भूमिका का समर्थन लगातार करते रहे हैं.
सिरिसेना की राष्ट्रपति चुनाव में विजय और 17 अगस्त के संसदीय चुनाव के पश्चात एक स्वस्थ संसद का निर्माण की आशा की जा सकती है. यह भारत के लिए विशेष महत्व का है. चीन के नये राष्ट्रपति जिनपिंग ने हिंद महासागर को चीनी प्रभाव क्षेत्र में बदलने के लिए समुद्री सिल्क रूट की योजना बनायी है. चीन ने इसके तहत लगभग 46 बिलियन डॉलर का पाकिस्तान में निवेश का एलान किया है. बलूचिस्तान में ग्वादर बंदरगाह को चीनी बंदरगाह के रूप में विकसित किया जा रहा है. हिंद महासागर में छोटे-छोटे स्वतंत्र द्वीपों जैसे मारिशस, सेशेल्स, मालदीव और मैडागास्कर पर चीनी वर्चस्व का असर दिख रहा है. पूर्वी अफ्रीका के हिंद महासागर के तटवर्ती देशों में चीन के पैर मजबूती से जम रहे हैं. पड़ोस की बात करें, तो भारत से करीबी रिश्तों के बावजूद उसका चीनी दबाव से पूरी तरह मुक्त होना कठिन है. ठीक यही स्थिति बांग्लादेश की भी है. संभवत: भारत के इस चीनी घेराव में श्रीलंका की स्थिति सबसे महत्वपूर्ण होगी.