विपक्ष के रवैये से देश का नुकसान

भारतीय संसद का मानसून सत्र एक बार फिर विपक्ष की अनावश्यक, अशोभनीय व अनियंत्रित हंगामे और विरोध की भेंट चढ़ गया और इस तरह देश के कोटि-कोटि जनों के खून-पसीने के 230 करोड़ रुपये भी अकारण बरबाद कर दिये गये. एक विकासशील देश में पानी की तरह बहाये गये ये रुपये लाखों भूखों, बेरोजगारों व […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | August 18, 2015 7:03 AM
भारतीय संसद का मानसून सत्र एक बार फिर विपक्ष की अनावश्यक, अशोभनीय व अनियंत्रित हंगामे और विरोध की भेंट चढ़ गया और इस तरह देश के कोटि-कोटि जनों के खून-पसीने के 230 करोड़ रुपये भी अकारण बरबाद कर दिये गये.
एक विकासशील देश में पानी की तरह बहाये गये ये रुपये लाखों भूखों, बेरोजगारों व अन्य जरूरतमंदों का कल्याण करने में सक्षम थे, लेकिन दुर्भाग्यवश उचित प्रबंधन के अभाव में यह विपक्ष की हठधर्मिता की भेंट चढ़ गया.
आखिर कौन देगा इस मोटी रकम का हिसाब? लोकतंत्र की रीढ़ समङो जानेवाले जनप्रतिनिधि अपनी साधारण-सी नैतिकता भी खोते जा रहे हैं. जिस संसद भवन में देश के विकास की पटकथा लिखी जाती है, वहां हमारे माननीय स्वयं नाटक का मंचन कर रहे हैं. आखिर कब तक चलेगा दायित्वहीनता का यह नाटक? संसद सत्र के बेनतीजा रहने से एक बार फिर आम जनता की आशाओं और आकांक्षाओं पर तुषारापात हुआ है.
जनादेश का अपमान कर राजनीतिक लाभ के लिए संसद सत्र को बाधित करना देशहित में नहीं है. हमारे नेताओं को समझना होगा कि उनके द्वारा लगाये गये राजनीतिक आग से अंततोगत्वा आम जनता को ही झुलसना पड़ रहा है. विपक्ष की नासमझी के कारण वस्तु और सेवा कर जैसे जनहितैषी विधेयक का भविष्य भी अधर में लटक गया है.
आज विश्व के 193 देशों में से 163 देशों ने जीएसटी को लागू किया है. भारत सरकार भी इस महात्वाकांक्षी विधेयक को लागू करना चाहती है, तो इसमें किसी को आपत्ति क्यों है? इस कदम से देश में रोजगार सृजित होंगे. जीडीपी में वृद्धि होगी व आर्थिक संवृद्धि होगी, लेकिन विपक्ष के अड़ियल रवैये के आगे सरकार बेबस दिखी.
सुधीर कुमार, इ-मेल से

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