इतने संवेदनहीन क्यों हो गये हम?
झारखंड के पास रांची के मांडर इलाके के एक गांव में कुछ दिन पूर्व पांच महिलाओं की डायन के नाम पर नृशंस हत्या कर दी गयी और उन्हें बिना दाह संस्कार के ही छोड़ दिया गया. यह मानवता को शर्मसार करनेवाला घिनौना अपराध था, जो आजादी के 68 साल बाद आज भी पूरे समाज को […]
झारखंड के पास रांची के मांडर इलाके के एक गांव में कुछ दिन पूर्व पांच महिलाओं की डायन के नाम पर नृशंस हत्या कर दी गयी और उन्हें बिना दाह संस्कार के ही छोड़ दिया गया. यह मानवता को शर्मसार करनेवाला घिनौना अपराध था, जो आजादी के 68 साल बाद आज भी पूरे समाज को कलंकित कर रहा है.
इससे भी ज्यादा दुर्भाग्यपूर्ण बात तो यह है कि इस राज्य में बीते एक दशक के दौरान 12 सौ से भी अधिक महिलाओं की हत्या डायन के नाम पर कर दी गयी. यह समस्या अकेले झारखंड की ही नहीं है.
डायन के नाम पर असम, बंगाल, बिहार, उत्तर प्रदेश, राजस्थान, ओड़िशा और अन्य राज्यों में भी है. इस अंधविश्वास पर कराये गये एक अध्ययन में यह कहा गया है कि हर साल करीब डेढ़ से दो सौ महिलाएं डायन के नाम पर मौत के घाट उतार दी जाती हैं. इनमें अधिकतर परित्यक्ता, विधवा, नि:संतान, विक्षिप्त और अशक्त वृद्ध महिलाएं शामिल हैं.
पहले उनका दैहिक शोषण किया जाता है और बाद में उन्हें डायन का तमगा पहना कर मार दिया जाता है. यह कोई और नहीं करता, बल्कि उनकी ही जाति-बिरादरी के दबंग लोग ऐसा अपराध करते हैं. इस महापाप के पीछे सबसे बड़ा कारण संपत्ति को हड़पना ही है. समाज की कमजोर महिलाओं की संपत्ति को हड़पने के लिए कई प्रकार के हथकंडे अपनाये जाते हैं. अंधविश्वास की चंगुल में फंसे लोगों में पाखंड जरिये जन-विस्फोट कराया जाता है.
समाज में बदलाव के नाम पर निरीह महिलाओं की बलि चढ़ा दी जाती है. इस बीच असम में वीरूबाला राणा और झारखंड के सरायकेला में छुटनी महतो व रांवी में पूनम टोप्पो उम्मीद की किरण के रूप में उभरी हैं. ऐसे में सरकार को भी गंभीर विचार करना चाहिए.
वेद, मामूरपुर, नरेला