शुभ्रा जी और शेख हसीना की मित्रता
विवेक शुक्ला वरिष्ठ पत्रकार कहते हैं, सच्चा मित्र वही होता है, जो कष्ट के दिनों में साथ खड़ा हो. जरा देखिए, बांग्लादेश की प्रधानमंत्री शेख हसीना वाजिद, अपनी बहन शेख रेहाना और छोटी बेटी साईमा वाजिद के साथ, दिल्ली आ गयीं अपने कष्ट के दिनों की सच्ची सहेली शुभ्रा मुखर्जी के अंतिम संस्कार में भाग […]
विवेक शुक्ला
वरिष्ठ पत्रकार
कहते हैं, सच्चा मित्र वही होता है, जो कष्ट के दिनों में साथ खड़ा हो. जरा देखिए, बांग्लादेश की प्रधानमंत्री शेख हसीना वाजिद, अपनी बहन शेख रेहाना और छोटी बेटी साईमा वाजिद के साथ, दिल्ली आ गयीं अपने कष्ट के दिनों की सच्ची सहेली शुभ्रा मुखर्जी के अंतिम संस्कार में भाग लेने.
हसीना उन्हें बाउदी कहती थीं. बांग्ला में बाउदी भाभी के लिए इस्तेमाल होता है. दोनों के बीच घनिष्ठ संबंध उस दौर में बने थे, जब हसीना दिल्ली में 1975 से 81 के बीच निर्वासित जीवन बिता रही थीं. तब उनके साथ पति डॉ एमए वाजिद, बेटा साजिद वाजिद जॉय और पुत्री सईमा हुसैन पुतुल भी थे. बच्चे बहुत छोटे थे.
जॉय को दार्जिलिंग के सेंट पॉल स्कूल में दाखिला दिलाया गया था, जबकि पुत्री शेख हसीना के साथ ही रही. दिल्ली में शेख हसीना गिनती के लोगों से ही मिलती-जुलती थीं, पर शुभ्रा जी से उनका करीबी रिश्ता बन गया था. बांग्ला साहित्य, कला, संगीत वगैरह पर दोनों में लंबी चर्चाएं होती थीं. तब प्रणब मुखर्जी, जो कांग्रेस नेता के रूप में स्थापित हो चुके थे, और डॉ वाजिद के बीच भी मुलाकातें होती थीं. डॉ वाजिद भारत के एटॉमिक एनर्जी कमीशन से जुड़ गये थे. उनका 9 मई, 2009 को निधन हो गया.
बांग्लादेश में हसीना के पिता और परिजनों के कत्ल के बाद भारत सरकार ने उन्हें और उनके परिवार को यहां शरण दी थी. तब श्रीमती इंदिरा गांधी प्रधानमंत्री थीं. हसीना पहले 56, लाजपत नगर के घर में रहीं.
फिर उन्हें सरकार ने पंडारा पार्क में फ्लैट दिया था. मुखर्जी दंपति के तीनों बच्चे- शर्मिष्ठा, अभिजीत व इंद्रजीत और हसीना के पुत्र-पुत्री भी आपस में घनिष्ठ हो गये थे. दोनों परिवारों के बच्चे पंडारा पार्क या तालकटोरा रोड स्थित मुखर्जी के बंगले में खेलने के लिए मिलते थे.
तब शेख हसीना के साथ उनके पिता के एक करीबी एएल खातिब भी रहते थे. पेशे से पत्रकार खातिब ने मुजीब की हत्या पर एक अहम पुस्तक ‘हू किल्ड मुजीब’ लिखी थी.
बांग्लादेश से अवामी लीग के नेता शेख हसीना से मिलने दिल्ली आते रहते थे. वे उनसे पार्टी की कमान संभालने का आग्रह कर रहे थे. पहले तो हसीना मना कर रही थीं, पर बाद में मान गयीं. कहते हैं, शुभ्रा जी ने ही उन्हें अपने देश के हित में फिर से राजनीति में सक्रिय होने की सलाह दी थी. हालांकि, अपने पिता व परिजनों के कत्ल से वह सन्न थीं.
उनके पिता बांग्लादेश के संस्थापक शेख मुजीब-उर-रहमान, मां और तीन भाइयों का 15 अगस्त, 1975 को उनके ढाका के धनमंडी स्थित आवास में कत्ल कर दिया गया था. उस भयावह कत्लेआम के वक्त शेख हसीना अपने पति डॉ एमए वाजिद और दो बच्चों के साथ जर्मनी में थीं. डॉ वाजिद जर्मनी में न्यूक्लियर साइंटिस्ट के रूप में कार्यरत थे. हसीना जब अपने जीवन के सबसे संकटपूर्ण दिनों में भारत आयी थीं, शुभ्रा जी और मुखर्जी परिवार ने उन्हें अपने गम के आंसू बहाने के लिए कंधा दिया था.
जाहिर है, अब जब मुखर्जी परिवार शोक में है, शेख हसीना उनसे मिलने पहुंची हैं. इससे पहले वे जब 2010 में दिल्ली आयी थीं, शुभ्रा जी से मिलने खास तौर पर तालकटोरा रोड वाले उसी बंगले में पहुंची थीं. बेशक, तब दोनों के गुजरे दौर की यादें ताजा हो गयी होंगी.