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..तो ऐसे थे गांधी के राम

शिवानंद तिवारी पूर्व सांसद बहुतों को गांधी जी बहुत बेतुका लगते हैं. आधुनिकता विरोधी, पुरातनपंथी. लेकिन गांधी मुङो वामपंथियों से भी ज्यादा वामपंथी दिखते हैं. यह भाव गांधी जी का ‘ग्राम स्वराज्य’ पढ़ने के बाद मेरे अंदर पैदा हुआ था. मुङो लगता है कि गांधी जी की यह पुस्तक ‘हिंद स्वराज’ से कम महत्वपूर्ण नहीं […]

शिवानंद तिवारी
पूर्व सांसद
बहुतों को गांधी जी बहुत बेतुका लगते हैं. आधुनिकता विरोधी, पुरातनपंथी. लेकिन गांधी मुङो वामपंथियों से भी ज्यादा वामपंथी दिखते हैं. यह भाव गांधी जी का ‘ग्राम स्वराज्य’ पढ़ने के बाद मेरे अंदर पैदा हुआ था. मुङो लगता है कि गांधी जी की यह पुस्तक ‘हिंद स्वराज’ से कम महत्वपूर्ण नहीं है. संयोग से शिक्षा पर भी गांधी जी की एक पुस्तक बहुत पहले देखने को मिली थी.
उन दिनों बच्चों को यौन शिक्षा दी जानी चाहिए या नहीं, इस पर देश में बहस चल रही थी. उस पुस्तक में इस विषय पर भी गांधी जी की राय थी. अगर मैंने उसे नहीं पढ़ा होता और कोई मुझसे पूछता कि इस विषय पर उनकी क्या राय रही होगी, तो मेरा स्वाभाविक उत्तर होता कि गांधी जरूर इसके विरोधी होंगे. लेकिन मुङो घोर आश्चर्य हुआ, जब इस विषय पर उनसे सवाल पूछा गया, तो उन्होंने बच्चों को यौन शिक्षा देने का न सिर्फ समर्थन किया, बल्कि बताया कि 1908 या 09 में दक्षिण अफ्रीका के आश्रम में उन्होंने इसका प्रयोग किया था. आश्रम में वे लड़के और लड़कियों को एक-साथ सुलाते थे.
बरामदे के एक छोर पर वे स्वयं सोते थे, दूसरे पर कस्तूरबा. उन्होंने कबूल किया था कि यह प्रयोग जोखिम वाला था. बावजूद इसके, गांधी जी यौन शिक्षा का समर्थन करते हैं. हां, शिक्षक ब्रह्मचर्य व्रत का कठोरता से पालन करनेवाला होना चाहिए, यह वे जरूर कहते हैं.
गांधी जी के व्यक्तित्व और उनकी बनावट को सही तरीके से समझ नहीं पाने के कारण अकसर बेतुका विवाद खड़ा किया जाता है.
अभी संयोगवश गांधी स्मृति एवं दर्शन समिति की ओर से प्रकाशित पत्रिका ‘अंतिम जन’ का दिसंबर 2013 का अंक पढ़ने को मिल गया. बिहार आंदोलन की जुझारू नेता रहीं मणिमाला पत्रिका की संपादक हैं.
पत्रिका के इस अंक में मणि बेन की पुस्तक ‘बापू मेरी मां’ का एक अंश छापा गया है. उसको पढ़ने के बाद मुङो लगा कि इसे आपके साथ साझा करूं. मैंने स्वयं यह पुस्तक नहीं पढ़ी है. आज पहली बार उसका यह अंश पढ़ा. मुङो लगता है कि गांधी के व्यक्तित्व को समझने के लिए उनमें रुचि रखनेवाले हर व्यक्ति को मणि बेन की यह पुस्तक अवश्य पढ़नी चाहिए.
मणि बेन लिखती हैं कि गांधी उनकी मां थे! मां का वात्सल्य भाव उनके अंदर था. उनकी एक-एक जरूरतों का वह एक मां की तरह ध्यान रखते थे. उनको शिक्षा देने की जिम्मेवारी भी उन्होंने अपने ऊपर ले ली थी. मुङो ध्यान आ रहा है, विनोबा जी ने भी गांधी जी के इस मातृ गुण का उल्लेख किया है. इसीलिए स्त्रियां गांधी जी के सान्निध्य में बहुत सहज रहती थीं.
आधुनिक भारत में औरतों को बड़ी संख्या में घरों से बाहर निकाल कर पहली बार गांधी जी ने ही उनको सार्वजनिक कर्म से जोड़ा था. यहां तक कि घर के अंदर चरखा चलानेवाली महिला भी समझती थी कि उसका यह काम अंगरेजों के खिलाफ गांधी के संघर्ष का हिस्सा है. मणि बेन लिखती हैं कि गांधी जी कहते थे, ‘मैं चिल्ला कर कहता हूं कि बहनें ही हिंदुस्तान में स्वराज और सुराज ला सकती हैं. क्योंकि मैं मानता हूं कि जैसे बिना गृहिणी के घर की व्यवस्था अधूरी रहती है, वैसे बिना बहनों के देश की व्यवस्था भी अधूरी ही रहेगी.’
गांधी पर यह लिखने के लिए मुङो जिसने सबसे ज्यादा प्रेरित किया, वह है- राम सचमुच में हुए हैं या काल्पनिक हैं, इस पर उनका दृष्टिकोण. राम के साथ उनका जीवन बहुत गहराई से जुड़ा था.
राम नाम के बगैर उनके जीवन की कल्पना मुश्किल है. मृत्यु से भय है या नहीं, मृत्यु जब प्रत्यक्ष हो तब राम का नाम उनके मुंह से निकलता है या नहीं, राम के प्रति श्रद्धा की यही कसौटी उन्होंने बनायी थी. उनकी हत्या का मुकदमा दर्ज करानेवाले नंद लाल मेहता ने लिखवाया है कि गोली लगने के बाद उनके मुंह से अंतिम शब्द ‘हे राम’ निकला था. हालांकि, उनके हत्यारे नाथूराम का बयान है कि मरते समय उनके मुंह से राम का नाम नहीं निकला था. जो भी हो, यह सच है कि राम का नाम उनके जीवन का अभिन्न अंग था.
मणि बेन के अनुसार, औरतों के लिए गांधी सीता को आदर्श मानते हैं. एक संदर्भ में वे कहते हैं कि सीता की पवित्रता ऐसी प्रबल थी कि रावण उनको छू भी नहीं सकता था. रामायण में वर्णन किये हुए राम-सीता सचमुच हुए हैं या नहीं, हम ऐसी शंका करें और उन्हें काल्पनिक भी मानें, तो भी यह कल्पना कितनी भव्य है! और उसे आचरण में उतारा जा सकता है.
सचमुच सीता का पात्र हर बहन के लिए समझने जैसा है.
गांधी जी अपनी आत्मकथा में लिखते हैं कि जिस चीज ने मेरे दिल पर गहरा असर डाला, वह था रामायण का परायण. उनका कहना था कि मैं रामनाम से ही सत्य को पहचानता हूं.
उन्होंने लिखा है ‘हमारे घर के नजदीक राम का एक मंदिर था. मैं बड़े भाव से नित्य वहां जाता था. मुङो विश्वास था कि वहां जाकर मैं निष्पाप हो जाता हूं और पाप से बचने की शक्ति का नित्य कुछ न कुछ संचय करता हूं. मेरे लिए वह मंदिर अत्यंत पवित्र था. राम से मिलने का धाम था.’ ..तो ऐसे थे गांधी के राम.

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