धीरे-धीरे अपनों से जुदा हो रहे हैं हम
रोटी, कपड़ा और मकान हर इनसान की मूलभूत जरूरतें हैं, परंतु आज के दौर में आधुनिक इनसान की सबसे बड़ी जरूरत इंटरनेट और मोबाइल बन गया है. आधुनिक युग में विज्ञान और तकनीक से गहरा रिश्ता रखने में कोई बुराई नहीं है. इस बीच हम मशीनों के बीच रहने के इतने अधिक आदी हो गये […]
रोटी, कपड़ा और मकान हर इनसान की मूलभूत जरूरतें हैं, परंतु आज के दौर में आधुनिक इनसान की सबसे बड़ी जरूरत इंटरनेट और मोबाइल बन गया है. आधुनिक युग में विज्ञान और तकनीक से गहरा रिश्ता रखने में कोई बुराई नहीं है.
इस बीच हम मशीनों के बीच रहने के इतने अधिक आदी हो गये हैं कि खुद ही मशीन बन कर घर, परिवार और समाज से दूर होते जा रहे हैं.
आज के समय में आधुनिक तकनीक से लैस आदमी अपने संस्कार और अंदर के इनसान को खोता जा रहा है. कभी-कभी तो आधुनिक युवक-युवतियों को देख कर हंसी आती है कि राह चलते, बस-ट्रेनों में सफर करते, परिवार में बैठ कर भोजन करते समय भी मोबाइल और इंटरनेट से चिपके रहते हैं.
यहां तक कि यदि घर का कोई बड़ा-बुजुर्ग उनसे बात करना चाहता है, तो वे बात करने से भी कतराते हैं. उन्हें ऐसा लगता है कि इंटरनेट की दुनिया में उन्होंने जिन दोस्तों को अपने दायरे में शामिल किया है, वे सभी बेहतर हैं. उनके आस-पड़ोस, समाज और परिवार के बाकी लोग उनसे बेहतर हो ही नहीं सकते. कई बार तो इंटरनेट की धुन में चलनेवाले युवक-युवतियों की वजह से बड़ी दुर्घटनाएं भी घटित हो जाती हैं.
लोगों को जान से भी हाथ धोना पड़ जाता है. जान की परवाह किये बगैर भी इसका इस्तेमाल करने से लोग बाज नहीं आ रहे. यह समझ में नहीं आता कि आखिर इंटरनेट और मोबाइल के जाल में फंस कर लोग अपनों से जुदा क्यों होते जा रहे हैं.
यह सबको पता है कि हमारा समाज, परिवार व आसपास के लोग ही सच्च सुख दे सकते हैं. देश-दुनिया के दूसरे कोने में बैठा आदमी चंद लमहों की खुशियां तो दे सकता है, परंतु भौतिक जरूरतें पूरी नहीं कर सकता. इसके लिए अपनों की ही जरूरत पड़ती है.
आस्था मुकुल, रांची