भारत-पाक संबंधों में नया मोड़

भारत का स्पष्ट मानना है कि कश्मीर भारत और पाकिस्तान के बीच का विवाद है और इसमें किसी तीसरे पक्ष के हस्तक्षेप की गुंजाइश नहीं है. यह तीसरा पक्ष कोई अन्य देश हो सकता है या खुद को भारतीय नहीं माननेवाले तत्व हो सकते हैं. ना था. उसका छल-कपट उस धमकी में भी दिखाई देता […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | August 24, 2015 9:08 AM

भारत का स्पष्ट मानना है कि कश्मीर भारत और पाकिस्तान के बीच का विवाद है और इसमें किसी तीसरे पक्ष के हस्तक्षेप की गुंजाइश नहीं है. यह तीसरा पक्ष कोई अन्य देश हो सकता है या खुद को भारतीय नहीं माननेवाले तत्व हो सकते हैं.

ना था. उसका छल-कपट उस धमकी में भी दिखाई देता है जो एजेंडे पर किसी विवाद में वह देता है- कश्मीर के बारे में बात करों, नहीं तो! कभी-कभी तो लगता है कि 15 सालों में भाषा भी नहीं बदली है. सरताज अजीज ने पाकिस्तान में संवाददाताओं से कहा कि अगर भारत ने कश्मीर पर बात नहीं की, तो उसे इसके अंजामों का पता जल्दी ही लग जायेगा. दूसरे शब्दों में, हिंसा की कमान इसलामाबाद से नियंत्रित होती है, और उसी के इशारे में चलती या रुकती है. लेकिन स्थिति अब बदल गयी है. भारत और पाकिस्तान दोनों ही अब उस जगह नहीं हैं, जहां वे 15 साल पहले थे. माहौल में संभावनाओं की आहट है.

पाकिस्तान के प्रधानमंत्री नवाज शरीफ की समस्या भारत को लेकर उनके देश का चिर-परिचित रवैया है जिसके कई मुंह हैं. इस रूपक पर ध्यान देने की जरूरत है. यूनानी पौराणकि साहित्य में हाइड्रा एक विलक्षण गुणोंवाला जलीय सांप है. एक सिर कटने पर उसके दो और सिर प्रकट हो जाते थे. हरक्यूलिस ने इसका समाधान खोज निकाला था. इस नायक ने सांप का सिर काटने के बाद उसकी गरदन जला दी थी. लेकिन अभी ऐसा कर सकनेवाला कोई हरक्यूलिस नहीं है क्योंकि सांप को पाकिस्तानी सेना के ताकतवर खेमों द्वारा दूध पिलाया जाता है और वह भारत के खिलाफ युद्ध में संलिप्त आतंकी समूहों द्वारा मुहैया कराये गये विशाल इंफ्रास्ट्रक्चर में विचरण करता है. अपने पूर्ववर्ती कार्यकाल में नवाज ने वाजपेयी के साथ लाहौर शिखर वार्ता के जरिये ईमानदारी से संबंधों को बेहतर करने की कोशिश की, तो करगिल की घटना हो गयी. आज उफा की अपेक्षाकृट बहुत कम नाटकीय समझदारी ने उसी गुट को सीमा-पार आतंकवाद और युद्धविराम के उल्लंघन के लिए उकसा दिया है. हाइड्रा को तुष्ट करने के लिए नवाज के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार सरताज अजीज ने खेल बिगाड़ना शुरू कर दिया, जब उन्होंने यह बयान दिया कि भारत के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजीत डोभाल से बातचीत के लिए उफा में तैयार एजेंडे में कश्मीर का उल्लेख भी है. उफा के साझा बयान में कश्मीर का कोई उल्लेख नहीं है. अब पाकिस्तान का कहना है कि अगर आतंकवाद से जुड़े सभी मामलों पर बात होना तय है, तो स्वाभाविक रूप से कश्मीर उसमें शामिल है. भारत और पाकिस्तान के संदर्भ में वार्ताओं के सही अर्थ को लेकर कुछ भ्रम है. भारत का स्पष्ट मानना है कि कश्मीर भारत और पाकिस्तान के बीच का विवाद है और इसमें किसी तीसरे पक्ष के हस्तक्षेप की गुंजाइश नहीं है. यह तीसरा पक्ष कोई अन्य देश हो सकता है या खुद को भारतीय नहीं माननेवाले तत्व हो सकते हैं.

सुरक्षा सलाहकारों की बैठक का उद्देश्य संयोजित संवाद के राह की बाधाओं को हटाने की कोशिश थी. अगर पाकिस्तान आतंकवाद का सामना करने के बारे में ईमानदार है, तो उसे अलगाववादियों को समर्थन का संकेत नहीं देना चाहिए या आतंक की हौसलाआफजाई नहीं करनी चाहिए. ऐसी ढीठ नीति जानबूझ कर की गयी उकसावे की हरकत है और इससे बड़े स्तर पर संभावित आगामी प्रयासों के लिए जनमत बनाने में मदद नहीं मिलेगी. पाकिस्तान से बातचीत हमेशा शीशे पर चलने की तरह रहा है, आपको यह पता नहीं होता है कि यह कब टूट जाये. इस असुविधाजनक सच को कहने का यह अच्छा अवसर नहीं हो सकता है, पर पाकिस्तान ने मोदी सरकार के इस राय को पहले ही स्वीकार कर लिया है- उसी दिन जिस दिन प्रधानमंत्री ने अपना पदभार संभाला था.

भारत और पाकिस्तान के संबंधों में यह एक चिंताजनक मोड़ है. हमने शायद एक महत्वपूर्ण तथ्य को नजरांदाज कर दिया है : उफा में नवाज शरीफ ने नरेंद्र मोदी को अगले वर्ष होनेवाले सार्क शिखर सम्मेलन के लिए पाकिस्तान आमंत्रित किया था, जिसे हमारे प्रधानमंत्री ने स्वीकार किया था. अगर वह यात्र होती है, तो यह इतिहास की बड़ी परिघटना होगी. इस कठिन दिशा में सुरक्षा सलाहकारों की बैठक पहला कदम थी जिसमें हर बात पर गहराई से बातचीत होनी थी और भारत को पाकिस्तान के भीतर आतंक और दाऊद इब्राहिम जैसे सरगना को मिल रहे प्रश्रय पर ठोस सबूत देने थे. अगर पाकिस्तान इन पर कार्रवाई करता है, तो वह न सिर्फ भारत की, बल्कि अमेरिका की चिंताओं को भी संतुष्ट करेगा, जो पाकिस्तानी सेना का सबसे नियमति धन प्रबंधक है. अभी से लेकर 2016 के बीच फिसलन के कई मौके आयेंगे, पर पहली ही सीढ़ी पर लड़खड़ा जाना दुर्भाग्य को को एक अफसोसनाक आमंत्रण भेजने जैसा है.

एमजे अकबर

प्रवक्ता, भाजपा

delhi@prabhatkhabar.in

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