क्या भ्रष्टाचार को मिल गयी स्वीकृति?

क्या भ्रष्टाचार और चुनावों में मिथ्या प्रचार को सचमुच सामाजिक स्वीकृति मिल गयी है? क्या सत्ता में बैठे लोग और सरकारी पदों पर आसीन अफसरों द्वारा किये जा रहे भ्रष्ट आचरण को परंपरा और संस्कृति मान लिया गया है? कम से कम मध्यप्रदेश और राजस्थान में स्थानीय निकाय के चनुावी नतीजों से तो प्रेक्षकों का […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | August 25, 2015 11:31 PM
क्या भ्रष्टाचार और चुनावों में मिथ्या प्रचार को सचमुच सामाजिक स्वीकृति मिल गयी है? क्या सत्ता में बैठे लोग और सरकारी पदों पर आसीन अफसरों द्वारा किये जा रहे भ्रष्ट आचरण को परंपरा और संस्कृति मान लिया गया है?
कम से कम मध्यप्रदेश और राजस्थान में स्थानीय निकाय के चनुावी नतीजों से तो प्रेक्षकों का यही अनुमान है कि अब भ्रष्टाचार के आरोप साबित होने पर भी मतदाताओं पर कोई असर नहीं पड़ता.
अब देखिये न, मध्यप्रदेश का ‘व्यापमं घोटाले’ को हर घोटाले का सरताज माना गया. ललित गेट का संबंध सीधे-सीधे वसुंधरा राजे से जुड़ा हुआ पाया गया, मगर जनता पर इसका लेशमात्र भी असर नहीं पड़ा.
अगर सिंहावलोकन किया जाये, तो अभी पिछला आम चुनाव भी भ्रष्टाचार के कारण ही कांग्रेस बुरी तरह हारी. तो क्या व्यापमं को घोटाला का दर्जा नहीं मिला है?
जंग बहादुर सिंह, गोलपहाड़ी

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