आइ लव यू माय डियर प्याज!
अंशु माली रस्तोगी सक्रिय ब्लॉगर कहने में कैसी शर्म- हां, मुङो प्याज से ‘इश्क’ है. प्याज से मेरा इश्क कोई साल-दो-साल पुराना नहीं, बल्कि ‘बचपन’ से है.घर वाले बताते हैं- मैंने जन्म लेते ही, सबसे पहला शब्द ‘प्याज’ ही बोला था. यही वजह है कि मेरा प्याज के प्रति इश्क निरंतर ‘जवान’ ही होता गया. […]
अंशु माली रस्तोगी
सक्रिय ब्लॉगर
कहने में कैसी शर्म- हां, मुङो प्याज से ‘इश्क’ है. प्याज से मेरा इश्क कोई साल-दो-साल पुराना नहीं, बल्कि ‘बचपन’ से है.घर वाले बताते हैं- मैंने जन्म लेते ही, सबसे पहला शब्द ‘प्याज’ ही बोला था. यही वजह है कि मेरा प्याज के प्रति इश्क निरंतर ‘जवान’ ही होता गया. कहा जा सकता है कि मैं और प्याज एक-दूसरे के ‘पूरक’ बन चुके हैं. प्याज के प्रति मेरे इश्क का यह आलम है कि मैं खाना बिना प्याज के खा ही नहीं सकता.
एक बार को रोटी-दाल-चावल-सब्जी खाना छोड़ सकता हूं, किंतु प्याज खाना नहीं. मेरी जीभ को जब तक प्याज का ‘स्वाद’ न लगे ‘तृप्त’ होती ही नहीं. प्याज खाने में जो ‘आनंद’ है, उसे शब्दों में बयान करना मेरे तईं जरा मुश्किल काम है. प्याज पर मैं जान छिड़कता हूं.
मेरी सेहत पर इससे कोई फर्क नहीं पड़ता कि प्याज 80 रुपये किलो बिके या 800 रुपये किलो. मुङो तो मतलब केवल प्याज खाने से है. प्याज मेरी आत्मा, मेरे दिल में बसती है.
प्याज को लेकर इधर तमाम तरह की खबरें पढ़ने-सुनने को मिल रही हैं. लोगबाग प्याज के 80 पार जाने से बड़े परेशान व स्तब्ध हैं. कह रहे हैं- प्याज का 80 रुपये किलो बिकना सरकार, लोकतंत्र व रसोई के लिए ‘खतरे की घंटी’ है. सरकार से अपील कर रहे हैं कि जल्द से जल्द प्याज की कीमतों पर काबू पाये.
मेरा उनसे बस इत्ता पूछना है कि प्याज 80 रुपये किलो क्यों नहीं बिक सकती, जब दालें 150 रुपये किलो और आम सब्जियां 80 रुपये किलो तक बिक सकती हैं? प्याज के महंगे बिकने पर ही पाबंदी क्यों लगनी चाहिए?
आखिर प्याज ने किसी का क्या बिगाड़ा है? सिंपल-सी बात है, अगर आपका दिल चाहता है तो प्याज खाइए, नहीं चाहता है तो न खाइए. कोई प्याज चल कर आपसे कहने तो नहीं आ रही कि आप मुङो जरूर खाएं.
जब भी प्याज के दाम थोड़े से बढ़ते हैं, लोगों के पेट में बेइंतहा दर्द शुरू हो जाता है. एंवई प्याज को गरियाने लग जाते हैं.
कुछ तो इत्ते ‘क्रांतिकारी’ हो जाते हैं कि फेसबुक पर स्टेटस डाल देते हैं कि वे महंगी प्याज नहीं खायेंगे, या प्याज के महंगे होने पर वे खुश हैं. अब उनसे मैं क्या कहूं! यह तो वैसा ही है कि बंदर क्या जाने अदरक का स्वाद!
प्याज में ही बंदे को रुलाने की कूवत होती है. वरना, कोई और फल या सब्जी आदमी को रुलाके तो दिखा दे.
इसीलिए ज्यादातर लोग प्याज से सीधे-सीधे पंगा नहीं लेना चाहते. पहले बंदे को प्याज काटते समय आंखों में पानी आ जाता था, अब नहीं काटनी पड़ती है (घर में प्याज हो, तब तो काटें), तो इसके भाव सुन कर ही उनका दिल रोने लगता है.
मुङो तो प्याज के लिए रोने में भी उतना ही मजा आता है. सच बताऊं, मैंने जित्ते आंसू पूर्व प्रेमिकाओं के वियोग में नहीं बहाये, उससे कहीं ज्यादा प्याज के इश्क में बहा चुका हूं.
जब-जब प्याज महंगी होती है, तो मेरे दिल को बड़ा ‘सुकून’ मिलता है. तभी पता चलता है कि प्याज से ‘असली इश्क’ करनेवाले कित्ते हैं और ‘नकली’ कित्ते.
जिन्हें प्याज के महंगा होने पर ऐतराज है, उनकी वे जाने. मुङो तो प्याज हर रूप-रंग-कीमत में ‘सुंदर’ ही लगती है. प्याज के प्रति मेरे इश्क का रंग गाढ़ा ही हुआ है. आइ लव यू माय डियर प्याज!