सिर्फ नारों से ही तो नहीं चलेगा काम
इसमें कोई दो राय नहीं कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी बहुत ही आकर्षक और अच्छे नारे देते हैं. उनके अच्छे-अच्छे नारों में से ही एक नारा है-‘बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ.’ लेकिन सिर्फ नारे देने भर से ही तो काम नहीं चलेगा. प्रधानमंत्री के इस नारे से काम नहीं चलेगा. बेटी को बचाने के लिए सबसे पहले […]
इसमें कोई दो राय नहीं कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी बहुत ही आकर्षक और अच्छे नारे देते हैं. उनके अच्छे-अच्छे नारों में से ही एक नारा है-‘बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ.’ लेकिन सिर्फ नारे देने भर से ही तो काम नहीं चलेगा.
प्रधानमंत्री के इस नारे से काम नहीं चलेगा. बेटी को बचाने के लिए सबसे पहले देश में राजनीतिक इच्छाशक्ति मजबूत होनी चाहिए. इसके बाद देश से दो प्रमुख कुरीतियों को समाप्त करना होगा. पहली, तो दहेज प्रथा और दूसरी, कन्या भ्रूण हत्या. दहेज प्रथा का विभत्स रूप कन्या भ्रूण हत्या है.
अक्सर हमारे समाज के लोग बेटों को पैदा करने के पीछे इसलिए बेदम रहते हैं, क्योंकि उन्हें दहेज न देना पड़े और वंशबेल बढ़े, वो अलग से. हालांकि, हमारे देश के कानून में दहेज प्रथा पर रोक लगाने के लिए अनेक कानून बने हैं और उस पर अमल भी हो रहा है, मगर सब दिखावटी. आम तौर या तो उस कानून का लोग अनुपालन नहीं कर रहे हैं या फिर उस कानून की आड़ में बेगुनाह परिवार को सजा दिला दी जाती है.
हालांकि, बीते कुछ सालों में सरकार की कार्रवाई और लोगों की जागरूकता के बाद कन्या भ्रूण हत्या और दहेज प्रताड़ना के मामलों के आंकड़ों में कुछ कमी जरूर आयी है, पर यह अभी शून्य तक नहीं पहुंचा है. लड़कियों के साथ हो रहे अपराध के खिलाफ समाज को शून्य स्तर की सहिष्णुता बरतनी होगी. लड़कियों के हित में हमारे देश में कई योजनाएं चलायी जा रही हैं, लेकिन अभी अन्य कई योजनाएं चलाने की जरूरत है.
इन सबके बावजूद हमारे समाज के लोगों को भी लड़कियों के प्रति अपने नजरिये को बदलना होगा. उन्हें हीन भावना और बोझ के रूप में देखने के बजाय प्रगति के लिए प्रोत्साहित करना होगा.
अभिषेक रंजन, मलकोको, हजारीबाग