खेलों में उम्मीद
भारतीय महिला हॉकी टीम अगले वर्ष ब्राजील के रिओ में होनेवाले ओलंपिक खेलों में भाग लेगी. इससे पहले महिला टीम ने 1980 में ओलंपिक में हिस्सा लिया था. हॉकी हमारा राष्ट्रीय खेल है, पर पिछले कई बरसों से अंतरराष्ट्रीय स्तर पर हमारी टीमों का प्रदर्शन निराशाजनक रहा है. ऐसे में 36 वर्षो बाद आया यह […]
अगर टेनिस में सानिया मिर्जा और बैडमिंटन में सायना नेहवाल का नाम इन उपलिब्धयों में शुमार कर लें, तो यह समय भारतीय खेलों, खास कर महिला खिलाड़ियों, के लिए उत्साहवर्धक है. यह समय हमारे लिए यह सोचने का भी है कि खेलों में हम वैश्विक स्तर पर इतने पिछड़े हुए क्यों हैं. कहीं क्रि केट के ग्लैमर और लोकप्रियता में हमने अन्य खेलों को नजरअंदाज तो नहीं किया है? 1.80 खरब रुपये के साथ भारतीय क्रिकेट कंट्रोल बोर्ड दुनिया का सबसे धनी क्रि केट संस्थान है. इस वर्ष के बजट में खेलों के लिए केंद्र सरकार ने 886.57 करोड़ रुपये आवंटित किये हैं. अगर राज्य सरकारों के आवंटन और विभिन्न खेलों की संस्थाओं की विज्ञापनों एवं प्रायोजकों की आय को जोड़ लें, तो पूरी राशि दो हजार करोड़ रु पये तक भी नहीं पहुंचती है. पिछले साल क्रि केट बोर्ड ने सिर्फ कानूनी खर्चे के लिए ही 334.55 करोड़ का बजट रखा था.
यह सही है कि तमाम अनियमतिताओं और विवादों के बावजूद क्रिकेट बोर्ड सरकारी नियंत्रण से परे एक गैर-सरकारी संस्था है और उसकी गतिविधियां पेशेवर अंदाज में संचालित की जाती हैं, पर इससे सबक लेकर सरकार और खेल संस्थाएं समुचित प्रबंधन से बेहतर नतीजे हासिल कर सकती हैं. प्रतिभाओं की परख की क्षमता और उन्हें प्रशिक्षित करने की गुणवत्ता को लेकर अक्सर सवाल उठते हैं.
प्रशिक्षण संस्थान शोषण के अड्डे बन गये हैं. संस्थाओं पर कब्जे को लेकर राजनीति होती रहती है. खिलाड़ियों के हिस्से का आवंटन प्रबंधन चट कर जाता है. अंतरराष्ट्रीय आयोजनों में खिलाड़ियों से अधिक संख्या अधिकारियों की होती है. हमारे खिलाड़ियों ने हमेशा यह साबित किया है कि उन्हें सही संसाधन मिलें, तो वे शानदार प्रदर्शन करने से नहीं चूकेंगे. उम्मीद है कि सरकार जल्दी ही खेलों की दशा में सुधार की पहल करेगी और समाज भी इसमें अग्रणी भूमिका निभायेगा.