एक उन्माद बन कर प्यार का
अभी अभी नींद को चीर कर एक उन्माद बन कर, प्यार का वो दिल के रास्ते से लबों पर मुस्काई है. सिरहाने से कुछ दूर दरीचे से एक धूप हल्का एहसास लिए पलकों पर दस्तक लेकर तुम्हारे ख्याल की चिट्ठी लायी है. अभी कुछ देर पहले दर्पण देखा है न रु कनेवाले घड़ी के कांटे […]
अभी अभी नींद को चीर कर
एक उन्माद बन कर, प्यार का
वो दिल के रास्ते से लबों पर मुस्काई है.
सिरहाने से कुछ दूर दरीचे से
एक धूप हल्का एहसास लिए
पलकों पर दस्तक लेकर
तुम्हारे ख्याल की चिट्ठी लायी है.
अभी कुछ देर पहले दर्पण देखा है
न रु कनेवाले घड़ी के कांटे ठहर से गये हैं
अभी तो हवा के झोखे से उलटते-पलटते
भरे कुछ पन्नों का खालीपन दूर हुआ है
दूर तलक एक मुरझायी कली की अंगड़ाई से
खुशियां यौवन से भर आयी हैं.
कार्तिक सागर, इमेल से