बंद हो शिक्षा का व्यवसायीकरण

वेदों में कहा गया है, ‘साविद्या या विमुक्तये’. आशय यह है कि विद्या वह है जो मुक्ति देती हो, किंतु अहम सवाल यह है कि मुक्ति किससे? मुक्ति का अर्थ मानव जीवन में व्याप्त अंधकार, भय, निराशा एवं हताशा के बंधनों से स्वतंत्रता का होता है और सब से अधिक अज्ञानता से आजादी का होता […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | September 3, 2015 12:10 AM
वेदों में कहा गया है, ‘साविद्या या विमुक्तये’. आशय यह है कि विद्या वह है जो मुक्ति देती हो, किंतु अहम सवाल यह है कि मुक्ति किससे?
मुक्ति का अर्थ मानव जीवन में व्याप्त अंधकार, भय, निराशा एवं हताशा के बंधनों से स्वतंत्रता का होता है और सब से अधिक अज्ञानता से आजादी का होता है. हर साल पांच सितंबर को शिक्षक दिवस मनाते हैं, तो यह प्रश्न और भी मुखर हो उठता है कि क्या शिक्षा अपने इन पवित्र उद्देश्यों को साकार करने में सफल हो पा रही है?
वैश्वीकरण तथा उदारीकरण के मॉडर्न युग में जबकि पूरी दुनिया हिंसा, अत्याचार, अनाचार, घृणा, निरक्षरता तथा अमानवीय आचरणों के मकड़जाल में फंसी है, तो शिक्षक, शिक्षा तथा शिक्षार्थी के परंपरागत उच्च आदर्शात्मक मूल्यों की आवश्यकता को फिर से एक नये सिरे से समझने की नितांत दरकार है. शिक्षा का व्यवसायीकरण वर्तमान युग की सबसे बड़ी समस्या है.
संतोष कुमार, बिहारशरीफ

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