हिंदी में त्रुटियों का बढ़ना चिंताजनक

हिंदी भारत की राष्ट्रीय भाषा है. यह देश के अधिकांश क्षेत्रों में मुख्य भाषा, कार्यालयी भाषा और पारिवारिक भाषा के रूप में प्रयोग की जाती है. आम आदमी के साथ ही शिक्षा जगत भी समाचार पत्र-पत्रिकाओं के माध्यम से हिंदी भाषा का ज्ञान व उसके शब्दों के भंडार को बढ़ाने की जरूरत महसूस करता है, […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | September 5, 2015 12:43 AM
हिंदी भारत की राष्ट्रीय भाषा है. यह देश के अधिकांश क्षेत्रों में मुख्य भाषा, कार्यालयी भाषा और पारिवारिक भाषा के रूप में प्रयोग की जाती है. आम आदमी के साथ ही शिक्षा जगत भी समाचार पत्र-पत्रिकाओं के माध्यम से हिंदी भाषा का ज्ञान व उसके शब्दों के भंडार को बढ़ाने की जरूरत महसूस करता है, ताकि इस उपयोग अधिक से अधिक और सही तरीके से किया जा सके.
इन सबके बावजूद बीते दो-तीन दशकों में गुरुओं के साथ-साथ समाचार पत्र-पत्रिकाओं ने भी हिंदी भाषा के जिज्ञासुओं को हतोत्साहित किया है. समाचार पत्र-पत्रिकाओं को हजारों-करोड़ों लोग पढ़ते हैं, उनमें भाषाई त्रुटियां सामान्य होती जा रही हैं.
समाचार पत्रों में सहज भाषा के नाम पर जिस किस्म की भाषा का प्रयोग हो रहा है, वह कहीं से भी सराहनीय नहीं है. हिंदी के अखबारों के लिए व्याकरण अब गैरजरूरी हो गया है. नयी पीढ़ी के पत्रकार, चाहे रिपोर्टिग में हों या डेस्क पर, प्रूफ संबंधी त्रुटियों को बहुत गंभीरता से लेते नहीं दिखते.
समाचार पत्रों की लोकप्रिय प्रतिस्पर्धा में स्थानीय बोलचाल की भाषा का उपयोग किया जा रहा है. इस भाषा की दुर्दशा यहीं तक सिमटी नहीं है. प्रखंड स्तर से लेकर सचिवालय स्तर के लेखों और पत्रों में भी भाषाई त्रुटियां आम होती जा रही हैं. पदाधिकारी इसमें ध्यान नहीं देते या उन्हें इसकी जानकारी नहीं है.
बीते कुछ महीनों में भारतीय शिक्षा के संदर्भ में अनेक लेख लिखे गये, पर किसी ने ध्यान नहीं दिया. सरकारी कर्मी, शिक्षा व समाचार जगत आदि किसी ने इस पर ध्यान देना मुनासिब नहीं समझा. हिंदी के पुरोधाओं व समाचार पत्र-पत्रिकाओं समेत तमाम बुद्धिजीवियों से अनुरोध है कि वे इस ओर ध्यान आकर्षित करें और जरूरी कदम उठायें .
मंजू संडील, जमशेदपुर

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