फैलिन से मुकाबला और श्रेय की होड़

अकसर कहा जाता है कि भारत में मानव जीवन की कीमत कौड़ी के बराबर मानी जाती है. मध्यप्रदेश के दतिया जिले में जिस तरह भगदड़ में करीब सवा सौ लोगों की जान चली गयी, या जून में उत्तराखंड में आयी प्राकृतिक आपदा में हजारों लोग काल के गाल में समा गये, उसे देखते हुए यह […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | October 16, 2013 3:42 AM

अकसर कहा जाता है कि भारत में मानव जीवन की कीमत कौड़ी के बराबर मानी जाती है. मध्यप्रदेश के दतिया जिले में जिस तरह भगदड़ में करीब सवा सौ लोगों की जान चली गयी, या जून में उत्तराखंड में आयी प्राकृतिक आपदा में हजारों लोग काल के गाल में समा गये, उसे देखते हुए यह कथन सही ही लगता है. पर, बीते शनिवार को ओड़िशा तट पर करीब 200 किलोमीटर प्रतिघंटा की रफ्तार से टकराये फैलिन तूफान का सामना जिस मुस्तैदी से किया गया, उसे इनसानी जीवन के प्रति सरकारों के लापरवाह रवैये की परंपरा में एक सुखद बदलाव माना जा सकता है.

महाचक्रवात की पूर्व चेतावनी के बाद युद्ध स्तर पर राहत और बचाव कार्य चलाने और तीन दिनों की समयावधि में नौ लाख से ज्यादा लोगों को सुरक्षित स्थानों पर पहुंचाने का श्रेय ओड़िशा की नवीन पटनायक सरकार को दिया जाना चाहिए. हालांकि तारीफ के हकदार भारतीय मौसम विभाग, राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन तंत्र, सेना और दूसरी एजेंसियां भी हैं. महाचक्रवात के सटीक पूर्वानुमान के बगैर इतना बड़ा राहत और बचाव कार्य नहीं चलाया जा सकता था. आज ओड़िशा देश के सामने ‘रोल मॉडल’ की तरह उभरा है. सुखद आश्चर्य यह भी है नवीन पटनायक इस सफलता के लिए श्रेय लेने की किसी होड़ में नहीं दिख रहे हैं.

इसके उलट केंद्रीय मंत्रियों में केंद्र सरकार को इसका श्रेय देने की होड़ सी दिख रही है. यह विचार गायब दिख रहा है कि फैलिन से मुकाबला करने का अभियान एक राष्ट्रीय ऑपरेशन था, जिसे जमीन पर अंजाम देने में सबसे बड़ी भूमिका राज्य सरकार ने निभायी है. इस ऑपरेशन में केंद्रीय एजेंसियों की भूमिका सहयोगी या ‘फेसिलिटेटर’ की रही है.

विडंबना यह भी है कि जो मंत्री केंद्र को श्रेय देने की कोशिश कर रहे हैं, उनका ध्यान केंद्रीय मंत्रलयों के घोटालों या सीमापार की चुनौतियों के प्रति केंद्र के लचर रवैये की ओर नहीं जाता. फैलिन से निबटने में राज्य सरकार की मुस्तैदी और बीते वर्षो में केंद्रीय मंत्रलयों के निराशाजनक प्रदर्शन की तुलना असल में सरकारों से की जानेवाली अपेक्षा और इसकी हकीकत के बीच के अंतर को बयान कर रहा है. वक्त की जरूरत यह है कि केंद्रीय मंत्री श्रेय की राजनीति करने की बजाय बेघर हुए लाखों लोगों के पुनर्वास की चुनौतियों पर ध्यान दें.

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