हमने बचपन से लेकर आज तक रावण का वध होते हर साल देखा है. यह वही रावण है, जिसने मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम चंद्र की अर्धागिनी देवी सीता का हरण किया था. उसके किये की सजा वह आज भी भोग रहा है. लेकिन घोर कलयुग में आज रावण की कमी नहीं है.
आज के मानवरूपी रावणों के कुकर्म की चर्चा हर मुख से होती है, पर वे सजा के भागी नहीं बनते. न सिर्फ वक्त बदल गया बल्कि लोग बदल गये और राज भी बदल गया. आज के रावण अपहरण ही नहीं बल्कि, दुष्कर्म और हत्या तक करते हैं. लेकिन दुख की बात है कि उनको उचित सजा देनेवाले के पास श्रीराम जैसी ताकत और हिम्मत नहीं है. प्रजा की रक्षा के लिए प्रशासन, न्यायालय और सरकार सहित पूरी व्यवस्थाएं मौजूद हैं, पर कलयुगी रावण के अट्टहास के आगे सब के सब लाचार और विवश हैं.
माणिक मुखर्जी, हुड़ांग, कांड्रा