लालसेना में कटौती का अर्थ क्या
एक प्रबल आर्थिक महाशक्ति बनने से कहीं पहले चीन एक सैन्य महाशक्ति बनना चाहता है. आर्थिक मंदी का शिकार होकर भले ही चीन दुनिया की आर्थिक दौड़ में कुछ पिछड़ जाये, किंतु सैन्य महाशक्ति बनने की प्रबल महत्वाकांक्षा को चीन कदापि नहीं छोड़ेगा. चीन की राजधानी बीजिंग के थ्यानमैन चौक पर दूसरे महायुद्ध की समाप्ति […]
एक प्रबल आर्थिक महाशक्ति बनने से कहीं पहले चीन एक सैन्य महाशक्ति बनना चाहता है. आर्थिक मंदी का शिकार होकर भले ही चीन दुनिया की आर्थिक दौड़ में कुछ पिछड़ जाये, किंतु सैन्य महाशक्ति बनने की प्रबल महत्वाकांक्षा को चीन कदापि नहीं छोड़ेगा.
चीन की राजधानी बीजिंग के थ्यानमैन चौक पर दूसरे महायुद्ध की समाप्ति की 70वीं सालगिरह के अवसर पर चीन की साम्यवादी सरकार द्वारा बीते 3 सितंबर को चीन की लालसेना (रेडआर्मी) की भव्य परेड का आयोजन किया गया. सैन्य परेड की सलामी चीनी राष्ट्रपति कॉमरेड शी जिनपिंग द्वारा ली गयी. इस भव्य सैन्य परेड में रूस के राष्ट्रपति ब्लादिमीर पुतिन के अतिरिक्त दक्षिण अफ्रीका के राष्ट्रपति जैकब जूमा, भारत के विदेश राज्यमंत्री जनरल वीके सिंह के अलावा कई देशों के राष्ट्रपति विद्यमान थे.
इस ऐतिहासिक अवसर पर चीन के राष्ट्रपति ने ऐलान किया कि चीन सैनिकों की संख्या में तीन लाख की कटौती करेगा. चीन की लालसेना में पूर्णकालिक सशस्त्र सैनिकों की संख्या तकरीबन तीस लाख है. चीन में प्रत्येक नौजवान के लिए सैन्य प्रशिक्षण पाना अनिवार्य है, जिसके कारण चीन में पीपुल्स मिलिशिया (जन-सेना) के सैनिकों की अनुमानित संख्या तकरीबन तीन करोड़ है, जो विभिन्न व्यवसाय में संलग्न हैं, किंतु जिनको जंग के आपातकाल में सरकार द्वारा बुलाया जा सकता है. चीन में यह सैन्य स्थिति कॉमरेड माओ के काल से ही बदस्तूर चली आ रही है.
इस कटौती का सबसे बड़ा कारण है कि चीन की कम्युनिस्ट सरकार विश्व को यह पैगाम देना चाहती है कि दुनिया की किसी सैन्य महाशक्ति से मुकाबला करने के लिए उसकी लाललेना अपने सैन्य संख्याबल के बलबूते पर नहीं, वरन आधुनिकतम सैन्य अस्त्र-शस्त्रों के दमखम पर करने के लिए तैयार है. इसीलिए लालसेना की भव्य सैन्य परेड में चीन द्वारा अपनी सैन्य क्षमताओं का भरपूर प्रदर्शन किया गया. पहली बार चीन की लाललेना द्वारा परमाणु क्षमता से पूर्णत: लैस लंबी दूरी तक मार कर सकनेवाली इंटरकांटिनेंटल ब्लास्टिक मिसाइलों का परेड में प्रदर्शन किया गया. ये मिसाइलें 12 हजार किमी की दूरी तक मार करने की क्षमता से लैस हैं. और कई युद्धक विमानों का भी प्रदर्शन हुआ. एक राष्ट्र के तौर पर आर्थिक तौर पर समृद्ध होकर सबसे पहले चीन ने अपनी सैन्य क्षमताओं को विश्व की सैन्य महाशक्तियों के समकक्ष खड़ा किया है. हालांकि, चीन का रक्षा बजट भारत से तकरीबन पांच गुना बड़ा है और अमेरिका एवं रूस के रक्षाबजट से टक्कर लेने के कगार पर खड़ा है.
चीन में आजकल आर्थिक मंदी का दौर जारी है और उसकी राष्ट्रीय विकास दर 11 फीसदी से घट कर तकरीबन सात फीसदी पर आ गयी है. चीन में विद्यमान समस्त उद्योग अपने उत्पादित वस्तुओं के अंतरराष्ट्रीय निर्यात पर टिके हुए हैं. चीन में उत्पादित माल की घरेलू खपत काफी कम रही है, क्योंकि कम मजदूरी के चलते चीनियों की क्रयशक्ति बहुत ही कम है. चीनी उद्योगों में निर्मित उत्पादित वस्तुओं के सबसे बड़े खरीदार यूरोप और अमेरिका में हैं, किंतु वहां पर आर्थिक मंदी के चलते चीनी माल की मांग में भारी गिरावट दर्ज की जा रही है. चीनी सरकार द्वारा निर्यात में वृद्धि करने की गरज से अपनी राष्ट्रीय मुद्रा का अवमूल्यन किया गया, जिससे विश्वभर का शेयर मार्केट लड़खड़ाया हुआ है.
कॉमरेड माओ के सत्ताकाल से ही चीन अपने समाजवादी राजसत्ता चरित्र का देश रहा है. हाल के वर्षो में चीनी राजसत्ता ने स्वयं को समाजवाद के कठोर आर्थिक सिद्धांतों से बाकायदा पृथक करके उदारवादी बाजार अर्थव्यवस्था को अपना लिया है, किंतु उसके आक्रामक राष्ट्रवाद में कोई कमी नहीं आयी है. चीन जब दुनिया के बेहद गरीब राष्ट्रों में शुमार किया जाता था, तब भी चीन की साम्यवादी सरकार ने सदैव ही अपनी आर्थिक औकात से कहीं आगे बढ़ कर अपना रक्षाबजट बनाया था और 1960 के दशक में रूस और अमेरिका को सैन्य चुनौती दी थी. विश्व के समक्ष अपनी सैन्य क्षमता साबित करने के लिए चीन द्वारा भारत पर 1962 में आक्रमण अंजाम दिया गया था. आजकल भी दक्षिण चीन सागर में अधिकार और आधिपत्य को लेकर जापान और चीन के मध्य गंभीर विवाद जारी है.
भारत की सरहद पर चीनी लालसेना का अतिक्रमण प्राय: जारी रहता आया है. तकरीबन सभी पड़ोसी राष्ट्रों के साथ चीन का सीमा-विवाद है. समाजवादी अर्थव्यवस्था का परित्याग करके चीन और रूस अवश्य ही निकट मित्र बन चुके हैं. वस्तुत: एक प्रबल आर्थिक महाशक्ति बनने से कहीं पहले चीन एक सैन्य महाशक्ति बनना चाहता है. चीन की प्रबल आर्थिक शक्ति वस्तुत: चीन को एक सैन्य महाशक्ति बनने में मदद कर रही है. आर्थिक मंदी का शिकार होकर भले ही चीन दुनिया की आर्थिक दौड़ में कुछ पिछड़ जाये, किंतु सैन्य महाशक्ति बनने की अपनी प्रबल महत्वाकांक्षा को चीन कभी नहीं छोड़ेगा. भले ही चीनी राष्ट्रपति यह ऐलान करते रहे कि चीन एक शांतिप्रिय राष्ट्र रहा है, जिसे कि आधिपत्य स्थापित करने और विस्तार करने पर चीन का चरित्र नहीं है, किंतु विगत 67 वर्षो का चीनी इतिहास कुछ अन्य ही तथ्यों को बयान करता है.
प्रभात कुमार रॉय
पूर्व सदस्य, एनएसएसी
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