वैश्विक अर्थव्यवस्था में अस्थिरता और उसके भारत पर पड़ रहे प्रभाव के चिंताजनक माहौल में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने मंगलवार को प्रमुख उद्योगपतियों, बैंकरों और नीति-निर्धारकों के साथ बेहद अहम बैठक की है. इस बैठक का उद्देश्य अंतरराष्ट्रीय आर्थिक परिदृश्य की अनिश्चितता को भारत के लिए सकारात्मक स्थिति में बदलने की संभावनाओं और उपायों पर विचार-विमर्श था. पिछले दिनों दुनियाभर के स्टॉक बाजारों में गिरावट का असर भारतीय शेयर बाजार और निवेश पर भी पड़ा है.
रुपये की गिरती कीमतों के बीच सकल घरेलू उत्पादन में मौजूदा वित्त वर्ष की पहली तिमाही में विकास दर के सात फीसदी पर आने की खबर ने चिंताओं को बढ़ा दिया है. हालांकि सरकार की ओर से वित्त मंत्री अरुण जेटली ने लगातार यह भरोसा दिलाया है कि हमारे आर्थिक आधार मजबूत हैं और अगले वित्त वर्ष में विकास दर को आठ फीसदी तक बढ़ाया जा सकता है. रिजर्व बैंक के गवर्नर रघुराम राजन ने भी निवेशकों को आश्वस्त करते हुए कहा था कि जरूरत पड़ने पर विदेशी मुद्रा भंडार का भी उपयोग किया जा सकता है.
लेकिन, इन आश्वासनों के बावजूद विश्लेषकों ने कंपनियों की आमदनी में कमी होने का आकलन प्रस्तुत किया है. आंकड़ों के अनुसार, पहली तिमाही में कृषि में विकास दर 1.9 फीसदी रही है. इस दौरान मैन्यूफैक्चरिंग में 7.2 फीसदी, कंस्ट्रक्शन में 6.9 फीसदी तथा वाणिज्य, होटल व यातायात में 12.8 फीसदी की बढ़त संतोषजनक तो है, पर अगस्त महीने और सितंबर के पहले सप्ताह में औसत से बहुत कम बारिश, उपभोक्ता वस्तुओं की मांग में कमी और सरकारी व्यय में अपेक्षानुसार बढ़त का न होना ऐसे कारक हैं जो आनेवाले दिनों में अर्थव्यवस्था पर नकारात्मक असर डाल सकते हैं. ऐसे में सरकार के सामने लंबित परियोजनाओं, कर्ज में फंसे बैंकों के धन, सुधार के उपायों पर राजनीतिक खींचतान जैसी भारी चुनौतियां हैं.
सत्ता संभालने के साथ ही मोदी सरकार ने स्पष्ट कर दिया था कि लंबित परियोजनाओं को चालू कराना उसकी प्राथमिकताओं में है. संतोष की बात है कि इस मसले पर कुछ प्रगति हुई है. लेकिन, आर्थिक सुधार के लिए की गयी कई सरकारी पहलें राजनीतिक गतिरोध के कारण रुकी पड़ी हैं. स्वाभाविक रूप से इस माहौल का निवेश पर विपरीत असर पड़ रहा है.
मोदी सरकार की कोशिशों से सार्वजनिक और निजी क्षेत्र के बड़े कर्जदाता बैंकों तथा वित्तीय संस्थाओं ने छह सेक्टरों के लिए समूह बनाया है, ताकि 282 लंबित और फंसी परियोजनाओं को चालू किया जा सके. रिजर्व बैंक के अनुसार, बैंकों की कुल राशि का 4.1 फीसदी ऐसे कर्जों में फंसा है जिनकी वसूली की कोई संभावना फिलहाल नजर नहीं आ रही है.
ऐसे कर्जों का 36 फीसदी धन अर्थव्यवस्था के छह प्रमुख सेक्टरों में फंसा है. इन कोशिशों पर सरकार भी प्रोजेक्ट मॉनीटरिंग ग्रुप के जरिये नजर रख रही है. रिजर्व बैंक की रिपोर्ट के अनुसार मई, 2015 तक 766 परियोजनाएं पूरी होने की प्रक्रिया में हैं, जबकि 4.83 ट्रिलियन रुपये लागत की 237 परियोजनाएं लंबित हैं. बैंकों के लिए उन कंपनियों और प्रोमोटरों को अधिक कर्ज या नयी परियोजनाओं के लिए कर्ज देना मुश्किल हो रहा है, जिन पर भारी कर्ज पहले से ही है. अर्थव्यवस्था को गति देने के लिए उद्योग जगत रिजर्व बैंक से ब्याज दरों में कटौती की मांग भी कर रहा है जिस पर इस महीने के अंत में निर्णय लिया जाना है.
ऐसी स्थिति में बैंकों के पास बहुत कुछ करने के लिए नहीं है. सुधार के उपायों को लागू करने और उन्हें कारगर बनाने की जिम्मेवारी सरकार की ही है. इस संदर्भ में मंगलवार को प्रधानमंत्री के नेतृत्व में सरकार और उद्योग जगत तथा वित्तीय संस्थाओं की सीधी बातचीत सराहनीय और महत्वपूर्ण पहल कही जायेगी. इस बैठक में जहां सरकार ने निवेशकों और बाजार की बेहतरी की कोशिशों के बारे में जानकारी उपलब्ध करायी, वहीं आर्थिक जगत के विशिष्ट प्रतिनिधियों ने अपनी अपेक्षाओं से सरकार को अवगत कराया है.
उद्योग जगत ने सरकार से भूमि और कराधान से जुडे कानूनों में समुचित संशोधन कर व्यापार-वाणिज्य के लिए अनुकूल वातावरण बनाने का निवेदन किया है. प्रधानमंत्री ने सरकार के सहयोग का भरोसा दिलाते हुए उद्योग जगत और वित्तीय संस्थाओं से भयमुक्त होकर अधिक-से-अधिक निवेश की अपील की है.
सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रमों को इंफ्रास्ट्रक्चर की कुछ परियोजनाओं को हाथ में लेने तथा चीनी उत्पादों पर अधिक आयात कर लगाने के सुझाव भी बैठक में दिये गये, जिन पर बहुत गंभीरता से विचार करने की आवश्यकता है.
उम्मीद है कि इस विचार-विमर्श में आये सुझावों को अमली जामा पहनाते हुए सभी संबद्ध पक्ष अर्थव्यवस्था की मजबूती के लिए प्रयासरत होंगे, ताकि विकास के लक्ष्य प्राप्त किये जा सकें.