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बाजार की चिंता करने की जरूरत

बीते दिनों वित्त मंत्री से लेकर मुख्य आर्थिक सलाहकार तक एक साथ यह दोहरा रहे थे कि देश की अर्थव्यवस्था को लेकर चिंता करने की कोई जरूरत नहीं है. वे यह भी कहते रहे कि चीन की मुद्रा युआन के अवमूल्यन से भारत पर कोई प्रभाव नहीं पड़ेगा.अगर पड़ेगा भी, तो वह न के बराबर […]

बीते दिनों वित्त मंत्री से लेकर मुख्य आर्थिक सलाहकार तक एक साथ यह दोहरा रहे थे कि देश की अर्थव्यवस्था को लेकर चिंता करने की कोई जरूरत नहीं है. वे यह भी कहते रहे कि चीन की मुद्रा युआन के अवमूल्यन से भारत पर कोई प्रभाव नहीं पड़ेगा.अगर पड़ेगा भी, तो वह न के बराबर होगा. जहां तक महंगाई का सवाल है, तो तत्काल वह आंकड़ों में नियंत्रित दिखायी दे रही है. इसके बावजूद अर्थव्यवस्था को लेकर किये जा रहे दावों पर सवालिया निशान लग गया है.
यूं तो शेयर बाजार में उतार-चढ़ाव लगा ही रहता है, लेकिन पिछले दिनों बाजार में जो गिरावट दर्ज की गयी, वह असामान्य थी. बंबई का शेयर बाजार इस महीने 1625 अंकों से भी नीचे गिर गया. गिरावट में प्रतिशत की अगर बात करें तो यह वर्ष 2009 के बाद सबसे बड़ी करीब छह फीसदी की गिरावट है.
हालांकि, गिरावट का यह सिलसिला बीते 11 अगस्त से ही शुरू हो गया था, जिस दिन चीन ने युआन में अवमूल्यन किया था. 25 अगस्त को इस क्रम में अचानक तेजी आ गयी, तो शंघाई के शेयर बाजार में बीते आठ साल में आयी सबसे बड़ी गिरावट का असर पड़ा. इन सबके बावजूद शेयर बाजार में एक अन्य वजह से चिंता की लहर फैली है. डॉलर के मुकाबले रुपये में कमजोरी रिकॉर्ड स्तर पर जा पहुंची है.
लोकसभा चुनाव के दौरान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने रुपये के अवमूल्यन के लिए आज की विपक्षी पार्टी को जम कर कोसा था, मगर अब वे रुपये की हालत पर बोलना उचित नहीं समझते.
आज स्थिति यह है कि एक डॉलर 66.75 रुपये के स्तर पर पहुंच चुका है. इसके साथ ही, खाद्य पदार्थों की कीमतें भी आसमान छू रही हैं. आज विदेश व्यापार से लेकर घरेलू बाजारों की स्थिति ठीक नहीं है. आज सरकार को विकास की नहीं, बल्कि बाजार की ज्यादा चिंता करने की जरूरत है.
– चिंटू तिवारी, झरिया

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